एक लड़की थी उसका नाम था रूपा। रूपा रोज स्कूल जाती थी। जब स्कूल से घर आती तो उसको घर आने का मन नहीं करता क्योंकि स्कूल में बहुत सारे रंग- बिरंगे पेड़ लगे थे। मीठी-मीठी ठंढ़ी आनंददाई हवा चलती रहती थी। रूपा का मन करता कि इसी पेड़ के नीचे सो जाऊं। रूपा छुट्टी के बाद कुछ देर तक पेड़ के नीचे बैठकर हवा खाती और बाद में घर जाती ।
रूपा गरीब परिवार में पली बढ़ी थी। आधा कट्ठा जमीन में दो छोटा-सा कमरा था। उस घर में न खिड़की थी और घर के अंदर हवा भी नहीं आती थी। गर्मी का समय था , दरवाजे पर पेड़-पौधे भी नहीं जो घर आँगन में हवा आए।
एक दिन रूपा सोची कि अगर दरवाजे पर दो- चार पेड़ लगा देंगे तो यहाँ भी स्कूल की तरह मीठी- मीठी हवा आने लगेगी। रूपा रोज स्कूल जाती हीं थी। जब स्कूल से घर आती तो रास्ते में सड़क किनारे बेकार पड़े कोई पौधे देखती तो उसको वह उखाड़ कर लें आती और अपने दरवाजे पर लगा देती। जैसे किसी दिन उसको कदम्ब का पेड़ मिल गया, कभी अमरुद का पेड़ मिल गया, कभी आम का पेड़ मिल गया।
अब रोज रूपा सुबह-शाम उस पेड़ में पानी देती , समय-समय पर उसको साफ़ करती , देखते-हीं-देखते पेड़ बड़े हो गए और पेड़ से हवा आने लगी , साथ हीं साथ फल भी उसमें आने लगे , यह देख रूपा खुशी से झूम उठी कि पेड़ लगाने से पर्यावरण भी शुद्ध हो गया।
अब रूपा को घर बैठे पेड़ से शुद्ध हवा मिलने लगी, पेड़ से फल मिलने लगे, जलावन मिलने लगे। रूपा की माँ फल तोड़कर बाजार बेचने जाती और बहुत सारे पैसे हो जाते ,अब रूपा का दुखी जीवन सुधरने लगा। रूपा और रूपा का परिवार सुखी से रहने लगे स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण में।
नीतू रानी
म०वि०सुरीगाँव
बायसी, पूर्णियाँ बिहार।