नित नई-नई कहानी रचता,नित नया-नया आविष्कार करता यह मानव आगे बढ़ता, सरपट चांद को छूने के पश्चात मंगल की ओर कदम बढ़ाने के रास्ते पर उन्मुख। इन सारी सफलताओं, इन सारी उपलब्धियां की और बढ़ाने के पश्चात भी शिक्षा का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू संवेदना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति या शिक्षा का अधिकार कानून चाहे हम कितने भी प्रयोग क्यों न कर ले अगर संवेदना की शिक्षा नहीं दी जाए, अगर नैतिकता का जामा नहीं पहनाया जा सके तो शिक्षा पूरी तरह व्यर्थ है। शिक्षा की सार्थकता व्यक्ति को संवेदनशील बनाने, मानव के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ाये जाने में ही है। हम प्रगति के इस पथ पर चलते वक्त धीरे-धीरे संवेदना के शिक्षा देने या यूं कहें कि संवेदनशील बनने के मामले में पिछड़ते चले जा रहे हैं। रास्ता में किसी के एक्सीडेंट होने पर उसका वीडियो बना लेते हैं, परंतु उसे अस्पताल पहुंचाने की अपनी जवाबदेही मात्र कुछ हीं लोगों द्वारा समझा जाता है। आता वर्तमान पाठ्यक्रम में संवेदनशीलता और नैतिकता की शिक्षा अत्यंत ही आवश्यक हो गया है।
हम खुद संवेदनशील बने और एक मानव की भांति मानव से प्रेम करें साथ ही अन्य जीव और पेड़ पौधों की सुरक्षा के प्रति भी जवाब देह बने, क्योंकि इस पृथ्वी पर जितना हमारा अधिकार है अन्य जीव जंतुओं और पेड़ पौधों का भी उतना ही अधिकार है। हम ईश्वर की पूजा करते हैं अथवा अन्य धर्म के लोग भी किसी न किसी रूप में अपने अल्लाह या वाहेगुरु की आराधना या उपासना करते ही हैं, परंतु सुविधा युक्त जीवन के निर्माण के निमित्त पेड़ काटने , पत्थर तोड़ने और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने को अपनी शान समझते हैं, कहीं ना कहीं पर्यावरण संरक्षण और, प्रकृति की रक्षा हीं असली पूजा है।
इस संवेदनशीलता इस प्रकृति पूजा की भी आज नितांत आवश्यकता है इस नैतिक शिक्षा की भी आज के समाज को जरूरत है।
अरविंद कुमार, प्रधानाध्यापक
गौतम मध्य विद्यालय न्यू दिलियां देहरी, रोहतास ,बिहार