शिक्षक दिवस-हर्ष नारायण दास

शिक्षक दिवस

          बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में जब वैज्ञानिक प्रगति अपने चरम पर थी, तब विश्व को अपने दर्शन से विमुग्ध करने वाले महान आध्यात्मिक नेताओं में डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन सर्वप्रमुख थे। उन्होंने कहा “चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद, अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना भी सीखना है।” इसी क्रम में मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना उसका चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है। वे अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता थे जो सभी धर्मावलंबियों के प्रति गहरा आदरभाव रखते थे।

डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर तमिलनाडु राज्य के तिरुतनी नामक गाँव में हुआ था। उनका परिवार अत्यंत धार्मिक था। उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल तिरुपति तथा बेलोर कॉलेज बेलोर से प्राप्त की। राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा शिष्टमंडलों का नेतृत्व किया।1909 ई० में वे मद्रास के एक कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए। बाद में उन्होंने मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालयों में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।कुछ समय तक वे आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। 1952-62 ई० के अवधि में वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे। बाद में वे1962 में राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हए और इस पद पर 1967 ई०तक बने रहे। उन्होंने दर्शन और संस्कृति पर अनेक ग्रंथों की रचना की “द फिलोसोफी ऑफ द उपनिषद, भगवतगीता, ईस्ट एन्ड वेस्ट-सम रिफ्लेक्शनस, ईस्टर्न रिलीजन एन्ड वेस्टर्न थॉट, इंडियन फिलोसोफी, एन्ड अडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ, हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ, इत्यादि प्रमुख हैं। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयो ने डॉ० राधाकृष्णन को मानद उपाधियाँ प्रदान की। दुनिया भर के सौ से अधिक विश्व विद्यालयों ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने उन्हें 1954 ई० में भारत के सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया।
डॉ०राधाकृष्णन भाषणकला में इतने निपुण थे कि उन्हें विभिन्न देशों में भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन पर भाषण देने के लिए बुलाया जाता था।उनमें विचारों, कल्पना तथा भाषा द्वारा लोगों को प्रभावित करने की ऐसी अद्भुत शक्ति थी कि उनके भाषणों से लोग मंत्र मुग्ध रह जाते थे।
उनके प्रसिद्ध विचार हैं- दर्शनशास्त्र एक रचनात्मक विद्या है। प्रत्येक व्यक्ति ही ईश्वर की प्रतिमा है। अन्तरात्मा का ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता है। दर्शन का उद्देश्य जीवन की व्याख्या करना नहीं बल्कि जीवन को बदलना है। एक शताब्दी का दर्शन ही दूसरी शताब्दी का सामान्य ज्ञान होता है। दर्शन का अल्पज्ञान मनुष्य को नास्तिकता की ओर झुका देता है परन्तु दार्शनिकता की गहनता में प्रवेश करने पर मनुष्य का मन धर्म की ओर उन्मुख हो जाता है।
डॉ०राधाकृष्णन की मृत्यु 16 अप्रैल1975 को हो गई परन्तु अपने जीवनकाल में अपने ज्ञान से जो आलोक उन्होंने फैलाया था, वह आज भी पूरी दुनिया को आलोकित कर रहा है। वे उदारता, कर्तव्यपरायणता, सनातन मंगलभावना, ईमानदारी और सहजता इन सबके साकार प्रतिबिम्ब थे। वे एक महान शिक्षाविद भी थे और शिक्षक होने का उन्हें गर्व था। यही कारण है कि उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाया जाता है। वे एक निर्विवाद निष्काम कर्मयोगी थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति के उपासक तथा राजनीतिज्ञ दोनों ही रूपों में एक विश्व नागरिक की भाँति मानव समाज का प्रतिनिधित्व किया।वे आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनका ज्ञानालोक सदा हमारा मार्ग प्रदीप्त करता रहेगा। उनके जयन्ती पर उन्हें कोटिशः नमन।

हर्ष नारायण दास
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय घीवहा
फारबिसगंज(अररिया)

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