परिचय: हर वर्ष 5 जून को सम्पूर्ण विश्व में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह केवल एक दिवस नहीं, बल्कि पृथ्वी की पुकार है — जीवन के संतुलन की रक्षा हेतु मानव से उसके उत्तरदायित्व की पुनः स्मृति। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1972 में इसकी स्थापना की गई थी, और तब से यह एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है।
इस वर्ष की थीम (2025)
(भूमि पुनरुद्धार, मरुस्थलीकरण और सूखा प्रतिरोध)
यह विषय स्पष्ट करता है कि केवल वनों की रक्षा नहीं, बल्कि बंजर होती भूमि को पुनर्जीवित करना, जल संचयन को बढ़ाना और भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित वातावरण देना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
पर्यावरण का वर्तमान संकट:
- जंगलों की कटाई और अंधाधुंध शहरीकरण
- जल स्रोतों का प्रदूषण और क्षय
- वायु गुणवत्ता में गिरावट
- जैव विविधता का ह्रास
- जलवायु परिवर्तन का व्यापक प्रभाव
इन सबने हमारी धरती को चेतावनी दी है। यह केवल मौसम या तापमान की बात नहीं, बल्कि जीवन की समग्र व्यवस्था पर संकट है।
एक शिक्षक, एक छात्र, एक नागरिक का दायित्व:
- पर्यावरण शिक्षा को व्यवहार से जोड़ना: केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रहें; विद्यालय में वृक्षारोपण, अपशिष्ट प्रबंधन, जल संरक्षण आदि गतिविधियाँ अनिवार्य बनाएं।
- प्रकृति के साथ संवाद करें: बच्चों में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करें। एक पेड़ को मित्र की तरह जानें, नदियों को माँ की तरह मानें।
- स्थानीय समाधान अपनाएं: प्लास्टिक का प्रयोग त्यागें, साइकिल या पैदल चलें, वर्षाजल संचयन करें, जैविक खेती को बढ़ावा दें।
- पर्यावरणीय कविता, गीत और कहानियाँ: भावात्मक स्तर पर जुड़ाव अत्यंत आवश्यक है। छात्रों को प्रेरित करें कि वे प्रकृति को लेकर कविताएँ, कहानियाँ या चित्र बनाएं।
भावनात्मक संदेश:
धरती हमारी माँ है। यदि हमने उसकी उपेक्षा की, तो वह भी मौन नहीं रहेगी। बाढ़, सूखा, महामारी जैसे संकेत उसकी पीड़ा के प्रतिफल हैं।
अब भी समय है —
“नियंत्रण नहीं, सामंजस्य बनाएं!”
“शोषण नहीं, संवर्धन करें!”
“प्रकृति को उपभोग की वस्तु नहीं, उपासना का विषय मानें!”
निष्कर्ष: विश्व पर्यावरण दिवस हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ, सुरक्षित और सुंदर पृथ्वी दे पाएंगे? यदि हाँ, तो हमें आज ही संकल्प लेना होगा —
छोटे प्रयासों से बड़ा परिवर्तन लाना है।
“प्रकृति के साथ मिलकर ही, भविष्य की राह बनानी है।”
शिक्षाप्रद संदेश:
“हर दिन को पर्यावरण दिवस मानें,
हर बच्चे को प्रकृति का मित्र बनाएं।”
-सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक
उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)