सोहन नामक एक छोटा सा बालक, जिसका जन्म एक साधारण निर्धन परिवार में हुआ था।वह बालक बचपन में तो पढ़ने-लिखने में कम अपने दोस्तों के साथ खेलने कूदने में अधिक ध्यान देता था।अन्य बच्चों की तरह सोहन भी पढ़ने तो जाता था लेकिन बचपन की हरकतों के कारण कभी-कभी विद्यालय से कक्षा समाप्त हो जाने के बाद बिना पूछे कहीं बाहर घूमने चला जाता था।बचपन में वह अपने घर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्रतिदिन पैदल पढ़ने जाता था,तथा जीवन में वह अच्छा करना चाहता था,लेकिन वह अच्छा नहीं कर पाने में सफल नहीं हो पाता था।धीरे-धीरे बड़ा होने के बाद उस लड़के के मन में कुछ अच्छा काम करने की ललक होने लगी।गरीबी की मार से त्रस्त सोहन के पिताजी की मृत्यु उसके जन्म के बाद सातवें वर्ष में ही हो जाती है।उसके बाद उसकी माता जी जिसकी जिन्दगी भूखमरी के मझधार में फंस जाती है,जो कि अपना तथा अपने दो बच्चों के लालन-पालन के लिये टोकरी में सब्जी भरकर बेचने का काम करती है।दिन भर के कामकाज के थकान से परेशान होकर वह अपने बच्चों के साथ कहीं फुटपाथ पर रात को रूक जाती है।सोहन की माता जी अपने साथ एक डिबरी भी रखती है जो कि शाम के समय अपने बच्चों के पढ़ने के लिये एक”डिबरी”जला देती है तथा स्वंय भी अखबार का टुकड़ा निकाल कर पढ़ने लगती है,जिससे कि उनके बच्चों को ऐसा महसूस हो कि मेरी माता जी भी पढ़ रही है।सोहन की माता रात में बच्चों के लिये खाने के कुछ समान की व्यवस्था कर देती है।एक शाम जब सोहन की माता बच्चों को”डिबरी”जलाकर पढ़ा रही है,तभी उस होकर वहाँ के जिलाधिकारी की गाड़ी पार हो रही थी,जो कि सोहन और मोहन को पढ़ते देखकर रूक जाती है,जिसे
देखकर जिलाधिकारी महोदय का दिल द्रवित हो जाता है और यह देखकर वह सोहन की माता को मुफ्त में एक सरकारी आवास रहने देने की बात कह कर उसे रहने के लिये दे देते हैं।इसके बाद सोहन की माता जी अपने दोनों बच्चों के साथ सरकारी आवास में रहने लगती हैं।अब सोहन और उसका भाई मोहन धीरे-धीरे बड़ा और समझदार होने लगा है।दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ने जाता है तथा दोनों दसवीं की परीक्षा में अच्छा अंक प्राप्त करके अपने विद्यालय से जिला में अव्वल स्थान प्राप्त करता है।दसवीं की वार्षिक माध्यमिक परीक्षा में अव्वल अंक प्राप्त करने के कारण उन दोनों को जिलाधिकारी के द्वारा सम्मानित करते हुये आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिये 500 रूपया प्रतिमाह छात्रवृत्ति देने की घोषणा की जाती है।सोहन की माता जी इस सरकारी छात्रवृत्ति के रूपये को इन दोनों बच्चों के शिक्षा-दीक्षा में खर्च करती है।अब ये दोनों बच्चे युवा हो चुके हैं तथा इन दोनों के मन में कुछ करने की”चिंगारी “सी धधक रही है।दोनों लगातार जोर-शोर से पढ़ने तथा जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।सोहन और उसका भाई मोहन दोनों अधिक-से-अधिक मेहनत करने का प्रयास तो करता है लेकिन भयानक गरीबी उसके पथ में रोड़ा बनकर बाधा डालने की कोशिश करती है। इसके बावजूद भी महानता तो उस माता की है, जो कि लगातार एक छोटी सी टोकरी में चौक पर बैठकर सब्जी बेचकर अपने बच्चों का भविष्य संवारने की कोशिश करती है। बहुत सारे समय अर्थाभाव सोहन और मोहन के विकास को पीछे धकेलने का प्रयास करती है।इसके बावजूद भी सोहन की माता जी बच्चों को प्रेम पूर्वक आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है।बच्चे जब अध्ययन करने बैठते हैं तो माता जी उनलोगों के पास बैठकर उनके पुस्तकों को उल्टा ही सही पढ़ने की कोशिश करती है ताकि सोहन और मोहन प्रोत्साहित होकर आगे बढ़ने की कोशिश करे।इस बीच एक दिन अचानक उसकी माता जी गिर पड़ती है और उसकी पैर टूट जाती है,जो कि मानो सोहन और मोहन दोनों भाई की जिन्दगी में काली नागिन बनकर डंसने जैसी लगने लगती है। ऐसी विपत्ति की घड़ी में सोहन सुबह विद्यालय पढ़ने के नाम पर निकल जाता है,लेकिन वह अपनी आर्थिक तंगी से उबरने के लिये ट्रैक्टर पर ईंट लादने का काम करके दो-चार सौ रूपया कमा कर किसी प्रकार से बीमार माता की सेवा तथा दोनों भाई के भोजन की किसी प्रकार से व्यवस्था कर लेता है। बिमारी से ग्रसित होने के बावजूद भी सोहन की माता जी सोहन और मोहन को जीवन में बहुत अच्छा करने के लिये प्रोत्साहित करने का अथक प्रयास करती रहती है। सोहन और मोहन को आगे बढ़ते हुये देखकर उसके जिला के शिक्षा पदाधिकारी जो कि अपने जीवन में गरीबी से पल कर आगे बढ़े थे को अपनी गरीबी भरी जिन्दगी,की याद आती है।एक दिन वह पदाधिकारी सोहन को जब ट्रैक्टर पर काम करते देखते हैं तो उसको अपने कार्यालय में मिलने के लिये बुलाते हैं और उसे आगे बढ़कर जीवन में तरक्की करने को प्रोत्साहित करते हैं।साथ ही उसे जीवन में अच्छा करने के लिये सहयोग करने की बात करते हैं।जीवन में संघर्ष करता हुआ सोहन और मोहन दोनों संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में सफलता प्राप्त कर दो जिले में “जिलाधिकारी”के गौरवपूर्ण पद को सुशोभित करने लगते हैं।
इन दोनों के कठिन परिश्रम तथा जीवन में संघर्ष की”दास्तां-ए-संघर्ष” की चर्चा चारों दिशा में फैलने लगती है जो कि आने वाले कल के नौनिहाल बच्चों के लिये एक प्रेरणास्रोत बनकर उभरती है।
श्री विमल कुमार”विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार) की लेखनी से।
दास्तां-ए-जिन्दगी – श्री विमल कुमार”विनोद”
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