फोटो नं- 1
राज धर्म
एक जंगल था, बहुत बड़ा और घना जंगल! इस जंगल मे सभी प्रकार के जीव जन्तु,पक्षी,जानवर आनंद से विचरण करते थे ।सामान्य स्वभाव के अनुरूप आपसी स्पर्धा और अस्तित्व की लड़ाई भी होती थी। इस प्रकार जंगल में सह – अस्तित्व के साथ सामान्य स्थिति कायम थी। लेकिन जैसा कि सामान्य जीवन मे भी अनुशासन हेतु नियम और शासन यंत्र कि आवश्यकता होती है, जंगल मे भी थी अतः जंगल जा राजा सिंह जंगल में अनुशाशन कायम रखने के लिए उत्तरदायी था।
शेर का नाम राजबीर था उसे सब राजा साहब के सम्बोधन से पुकारते थे ।इस सम्बोधन से वो बहुत आनंदित भी होता था।वो अपनी सत्ता मे न्याय स्थापित करने को कृत – संकल्पित था।
एक दिन कि बात है राजा का बड़ा बेटा दुर्गेश ने जंगल मे गरीब बेसहारा नीलगाय के घर को तहस – नहस कर उसके बच्चों पर अनायास ही आक्रमण कर दिया, जबकी उसकी जरूरते आसानी से पूरी हो रहीं थी।नीलगाय श्रुति ने बहुत मनाया वो नहीं माना।स्थिति विकट देखकर श्रुति राजा साहब के दरबार मे पहुँची।यह मामला गंभीर था और राजा के बेटा के बिरुद्ध था इसलिए और भी गंभीर बन गय।इस पर राजा को न्याय देना था।एकतरफ पिता धर्म तो दूसरी तरफ राजधर्म।
राजा ने सबसे पहले अपनी प्रजा श्रुति की सुरक्षा सुनिश्चित की और उसके बच्चों को बुलाकर अपने संरक्षण में रखा।अब राजसभा बैठी ।राज सभा मे कुछ मंत्रियों ने शेर प्रजाति के सहज स्वभाव के अनुरूप राजकुमार के आचरण को बताया और तदनुसार इसे जायज बतलाने की वकालत की।तब राजा ने सभासदों से पूछा क्या राजकुमार केवल शेर प्रजाति का सामान्य शेरे हैं? क्या राजकुमार ने अपनी जरूरत पूरी करने के लिए हमला किया था? क्या राजकुमार पर राज्य का अनुशासन लागू नहीं होता? क्या राजकुमार राजधर्म से बंधे नहीं हैं? क्या आज उनको सजा नहीं देने से जंगल में गलत सन्देश नहीं जाएगा?
न्याय के इस आसन पर बैठे हमें क्या निर्णय लेना चाहिए, आप सब निःसंकोच बताएं।आधे घंटे के बाद हम सब फिर मिलते हैँ.. ऐसा कह कर राजा ने तत्काल बैठक स्थगित की।
सबलोग अचंभित और गर्वित थे।सभा से अधिकतर लोग राजा के इस प्रकार के प्रश्नों की उम्मीद नहीं कर रहे थे।लेकिन उनके लिए यह एक सहज मार्गदर्शन था और स्पष्ट संकेत की राजधर्म सर्वोच्च हैँ.. कुछ लोग किंकर्तव्यविमूढ़ भी थे।
आधे घंटे बाद फिर सभा शुरू हुई।राजा ने राजकुमार से उनका पक्ष जानना चाहा। राजकुमार से पूछा गया कि नीलगाय या उसके बच्चों ने नीति के बिरुद्ध ऐसा क्या किया कि राजकुमार को गुस्सा आया।राजकुमार निरुत्तर थे।इस के बाद राजकुमार पर आरोप स्वतः सिद्ध हो गए। तब राजा ने सभा सदों की राय से राज्य के क़ानून के अनुसार राजकुमार को पांच वर्षो के लिए राज्य से निष्कासित किए और आदेश दिया कि वापसी के बाद उनके आचरण की समीक्षा के उपरांत ही उनके अधिकार वापस किये जायेंगे।
सभी लोग राजा साहब के न्याप की तारीफ कर रहे थे। सब ने कहा कि राजा के लिए प्रजा भी संतान के समान होती है अतः राजधर्म ही राजा का मूल धर्म है। इसप्रकार किसी भी दायित्व का निर्वहन निरपेक्ष होकर करना ही राजधर्म है।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार