“वट बाबा”
-…✍🏻 शैलेन्द्र कुमार.
औसानी नाम का एक छोटा-सा गाँव था, जो हरे-भरे बगीचों और नदियों-नहरों से घिरा हुआ था। इस गाँव के बीचोंबीच एक प्राचीन बरगद का वृक्ष खड़ा था, जिसे सब “वट बाबा” कहते थे। यह वृक्ष न सिर्फ गाँव का सबसे पुराना और बुजुर्ग निवासी था, बल्कि यहाँ पर पीढ़ियों से कहानियाँ सुनाई जाती थीं, पंचायती होती थी, त्योहार मनाए जाते थे और मेला लगता था। गाँव में पाँच दोस्त रहते थे—राकेश, पिंटू, संध्या, निशा, और दीपु। ये सभी दोस्त “वट बाबा” के नीचे खेलते, हँसते, और कहानियाँ सुनाते थे।
एक दिन, जब वे खेल रहे थे, तो निशा ने देखा कि एक सुंदर सफेद-गले वाला कबूतर, जिसका एक पंख टूटा था, जमीन पर कूद रहा है। बच्चों ने उसे उठाया और “गूगू” नाम दिया उसका। राकेश उसे अपने घर ले जाकर एक घोंसला बना कर रखा। उसके जख्मों पर मरहम पट्टी की और उसे दाना-पानी देकर उसकी देखभाल करने लगा। कुछ दिन बाद गूगू ठीक हो गया। बच्चों ने उससे बहुत कुछ सीखा। उन्होंने धैर्य रखा, ध्यान रखा, उसकी देखभाल की, और उससे दोस्ती कर ली। अब गूगू उड़ने लगा। बच्चों ने सुना कि गाँव के कुछ लोग “वट बाबा” को काटकर एक नया सामुदायिक भवन बनाना चाहते हैं जिसपर गूगू का घोसला था। बच्चों ने फैसला किया कि वे इस वृक्ष को बचाएँगे। उन्होंने एक नूक्कड़ तैयार किया, जिसमें वृक्ष की ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्व को दिखाया। उन्होंने गाँव के बुजुर्गों से बात की और उन्हें मनाने की कोशिश की। गूगू भी उनके साथ था। बच्चों ने कहा, “हम गूगू को बचाएं हैं, तो इसके घर को भी बचाएंगे।” अंत में, गाँव के बुजुर्गों ने वट बाबा को नहीं काटने का फैसला किया। गूगू खुशी से चहचहाती हुई उड़ गई। उस दिन से, “वट बाबा” और भी अधिक महत्वपूर्ण बन गए, और बच्चों ने उसकी रक्षा करने का वादा किया।
शिक्षा:- बच्चों ने सीखा कि दयालुता, सहयोग, और प्रकृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है।
– शैलेन्द्र कुमार….
Govt. UMS औसानी, बगहा-2, प. चम्पारण.