वृक्ष की व्यथा- श्री विमल कुमार “विनोद”

Bimal Kumar

एक लघु नाटिका

कास्टिंग सीन-जंगल का दृश्य। (अंधेरी रात,जंगल में शेर,चीता, भालू,सियार तथा अन्य जानवरों की आवाज,इसी बीच जंगल में लकड़ी काटने की आवाज) काटो, जल्दी काटो। मोटी-मोटी सीसम, सागवान,महोगनी,आम,जामुन की मोटी,मोटी वृक्षों को काटो।
(नेपथ्य से)जल्दी काटो,देखो सुबह होने जा रही है।(इतने में किसी की आहट सुनाई देती है) (फिर नेपथ्य से)देख लेंगे कोई भी हो,हम लकड़ी काटते रहेंगे।(पुनः) जल्दी लकड़ी काटो सुन्दर-सुन्दर मोटे-मोटे वृक्षों को काटो।(इतने में सुबह हो जाती है)पर्दा गिरता है।

प्रथम अंक,प्रथम दृश्य

जंगल का दृश्य-(जंगल में आम, जामुन,खैर,सीसम,महोगनी के अनेक वृक्षों कटे हुये हैं। बाकी हरे वृक्ष कटने के पहले डरे सहमें
हुये हैं)
आम-अरे भाई यह क्या हो रहा है? लगता है मनुष्य के जीवन की दुर्दशा सामने दिखाई पड़ रही है।
जामुन-हाँ भाई आम,मुझे तो ऐसा ही लगता है।देखो इन मनुष्यों ने हमलोगों के जैसे बेजुबान वृक्षों को निर्दयता के साथ काटकर अपना स्वार्थ पूरा कर रहा है।
(तभी सीसम का डरे-सहमे प्रवेश)
बचाओ,बचाओ,मुझे इन लकड़ी काटने वालों से बचाओ।ये लोग बहुत निर्दयी हैं,सिर्फ हमारे जैसे वृक्षों को काटकर अपने लिये धन कमाने का प्रयास करते हैं।
जामुन-अरे भाई मेरी तो स्थिति सबसे अधिक दयनीय है।
आम-क्या हुआ भाई जामुन, बताओ,मुझे जरा बताओ।
जामुन-(रोते हुये)भाई आम,मैं वर्षों से अपने खून को पानी की तरह बहाकर लोगों को सुन्दर- सुन्दर काले-काले जामुन खिलाता आ रहा हूँ।बच्चे हमें तोड़ने के लिये ईंट,पत्थर से मारते हैं,फिर भी हम उसे दवा की तरह सुन्दर-सुन्दर,मीठे-मीठे फल खिलाते हैं।
मैं जेठ की दुपहरी में भी गर्मी सहकर अपने शरीर का रसास्वादन कराकर अपने फलों को बड़ा करके लोगों को खिलाती
हूँ,फिर भी।
नीम-फिर क्या हुआ।
जामुन-(कपसते हुये)फिर भी इन हैवान मनुष्यों ने मेरे जैसे बेजुबान वृक्ष को जड़ से काट डाला।आह, आह कोई मुझे बचाने वाला नहीं था। मैं अपनी बेबफाई पर रोती हुई दुनिया से सदा के लिये चली गई।(पर्दा गिरता है)

द्वितीय अंक,द्वितीय दृश्य

गाँव का दृश्य-मोहन का घर,रामू लगभग बीस वर्ष के बाद दिल्ली से घर आया है।
रामू-(आश्चर्यचकित होकर) भाई मोहन गाँव के छोर पर एक आम का गाछ था,क्या हुआ?
मोहन- भैया,गाँव का जो लालू है न,वह अपना घर बनाने के लिये विशाल आम के गाछ को काट डाला,और जानते हैं भैया।
रामू-(आश्चर्य से) बताओ।
मोहन-लालू ने सुन्दर घर बनाने के लिये आम के गाछ को बेदर्दी के साथ काट डाला और तो और घर भी नहीं बनाया,भैया।
रामू-ओह,हाय रे जमाना,हाय रे मानव की बदनसीबी,जिसने तुझे सुन्दर फल दिया,तुमने उसे काट डाला। जा,तुम्हारा दुर्दिन नजदीक है,एक दिन तुम ऑक्सीजन,जल, फूल,फल के लिये तरसते रहोगे। गर्मी से छटपटाते रह जाओगे।
(दोनों दोस्त का प्रस्थान)
पर्दा गिरता है।


तृतीय अंक,प्रथम दृश्य

सड़क का दृश्य,गर्मी का महीना।
(लोग गर्मी से परेशान हैं।कुछ लोग गर्मी से बचने के लिये एक छोटा सा नीम के पेड़ के नीचे जाते हैं)
नीम-(तेज हवा के झोंके से हिलते हुये कहता है)जैसी सी करनी वैसी भरनी।जो तुम बोओगे वही तुम्हें मिलेगा।बुरा काम का बुरा नतीजा।(इतने में खजूर का प्रवेश)
खजूर-(ठहाका मार कर हँसते हुये)हा,हा,हा।वाह क्या मजा आ रहा है,जब मनुष्य गर्मी की चिलचिलाती धूप की आग में जल रहा है।जा रे मूढ़ मानव,हम वृक्ष तो तुम्हें सुन्दर फल,फूल दे रहे थे लेकिन तुम तो निकले मूर्ख,गंवार जिसने मेरे जैसे बदनसीब बेजुबान वृक्षों को भी काट डाला। जा एक दिन तू भी मेरे तरह ही तड़प-तड़प कर मर जायेगा।

अंतिम दृश्य

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जंगल का दृश्य-(एक दो आम,सीसम,सागवान के वृक्ष बचे हुये हैं,फल खाने के लिये लोग लालायित हो रहे हैं)
(सभी वृक्ष एक साथ मिलकर)
देखा भाई हमलोगों को काटकर मनुष्यों को क्या मिला?
सभी-हाँ,हाँ गर्मी,तबाही,प्रदूषण, धूलकण से भरी हवा।
(सभी वृक्ष मिलकर दर्द की हँसी के साथ)हा,हा,हा तुम मनुष्यों ने जिस तरह बेदर्दी के साथ मुझे काटा है,एक दिन हमलोगों के अभाव में तुमलोगों को भी बर्बाद कर दूँगा।
(सभी वृक्ष मिलकर,गुस्से में) जा रे मूढ़ मनुष्य,हम वृक्षों के बिना तेरा जीवन जीना दुर्लभ हो जायेगा, क्योंकि हमारे जैसे वृक्ष नहीं,तो जल नहीं,और जल नहीं तो कल नहीं)
पर्दा गिरता है।(समाप्त)
(नेपथ्य से)वृक्ष लगाओ,जीवन बचाओ,वृक्ष नहीं तो जल नहीं)
वृक्ष काटना महापाप है,वृक्ष बिना जीवन जीना दुर्लभ है।जंगल बचाओ जीवन को मंगलमय बनाओ)।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,
बांका(बिहार)

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