बचपन में माता-पिता से किसे प्यार नहीं होता परन्तु जब बालक वयस्क बन जाता है और उसकी शादी हो जाती है तब विरले ही ऐसे संतान होते हैं जो माता-पिता को आँखों में बसाए रहते हैं। अधिकांश तो माता-पिता के किए कर्म पर ही पूरी तरह से पानी फेर देते हैं। अधिकतर का अपने माता पिता से यही सवाल होता है कि आपने मेरे लिए किया ही क्या है ? ऐसा लगता है कि नई नवेली दुल्हन ने ही उसका परवरिश किया हो। इतनी कृतघ्नता जब माता-पिता को अपने जवान बेटा से मिलता है तब उसका कलेजा मानों फट पड़ता है, दिल चीत्कार कर उठता है। काश! इसी दिन के लिए बेटे को पाला-पोसा, अपने रात की नींद खराब की, इसे पढ़ाया लिखाया पर आज सब व्यर्थ हो गया। तेजू बचपन से ही शरारती था लेकिन माता पिता का अत्यंत दुलारा। वह कुछ गलती भी कर बैठता तब भी उसके पिता शुभंकर उसे कुछ भी नहीं कहता था। शुभंकर की सोच यही थी कि बचपना जाते ही वह स्वयं ठीक हो जाएगा। तेजू पढ़ने में नाम के अनुसार ही तेज था। उसे जो सबक याद करने को मिलते तुरंत याद कर लेता। अन्य बच्चे इतने तेज नहीं थे कि वे तेजू का मुकाबला कर सकें। जिस कारण अन्य बच्चे दंडित भी होते। समय की सीमा होती है। कुछ वर्षों बाद वह पढ़-लिख कर जवान हो चुका था। उसे नौकरी भी लग चुकी थी। शादी के योग्य होने पर लड़की वाले भी शुभंकर को दिन-रात की नींद छीन चुके थे। इससे वह भी चाहता था कि तेजू की शादी जल्द ही कर दें। मालती एक खूबसूरत लड़की थी उसे ही शुभंकर अपनी पतोहू बनाने के लिए राजी हो गया।शुभ मुहूर्त देख तेजू की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई। तेजू की माँ गौरी को अपनी सुंदर पतोहू देख काफी प्रसन्नता हुई।कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा परन्तु बाद में मालती के तेवर गरम होने लगे। तेजू भी धीरे-धीरे उसी के बहकावे में आने लगा। यह देख शुभंकर को पहले विश्वास ही नहीं हुआ परन्तु जब गौरी और तेजू की तेज आवाज सुनी तो उसके भी कान खड़े हो गए। यह सुन शुभंकर के पैर तले की जमीन खिसक चुकी थी। अब उसे और कोई साक्ष्य की आवश्यकता न थी।जीवन के सारे अरमान आज धूल धूसरित दिखे। जो बेटा यह कहता हो कि माँ के बिना मन नहीं लगता, वह आजकल कई सप्ताह से माँ से भेंट नहीं किया। ससुराल से ही जाकर वह नौकरी करने जाता और फिर वहीं वापस लौट जाता।बचपन के प्यारे माँ बाप आज पूरी तरह से उपेक्षित हो चुके थे। आज तेजू को अपनी पत्नी मालती और ससुराल के अलावे और कुछ नहीं सूझ रहा था। माँ बाप के लिए अवगुणों की सूची लंबी हो चली थी। कुछ समय के लिए तेजू घर पर आता भी तो शिकायतों का अम्बार लगा देता। इससे माँ-बाप दोनों को बड़ा सदमा लगता पर दोनों अब तक शारीरिक रूप से लाचार हो चुके थे इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते थे।मालती जब ससुराल आती तब उसकी चाल ढाल देख सास ससुर भी अचंभित रह जाते। लगता ही न था कि वह आज की नई नवेली बहू हो। तेजू भी उससे इस संबंध में कुछ न कह पाता। बेटा पतोहू की बेरुखी ने शुभंकर और गौरी के दिल को बड़ा ठेस पहुँचाया। अब उसके लिए जीना अब मरने से भी अधिक कष्टप्रद हो चला था।वे दोनों ऊपर जाने के दिन गिन रहे थे।इसी बीच तेजू जब घर आया तब माता- पिता की यह हालत देख आज वह घर पर ही रुक गया लेकिन मालती मैके में ही थी।आज शुभंकर और मालती की हालत अधिक खराब थी। साँसे उल्टी चल रही थी। शुभंकर घबराया परन्तु अब घबराने से क्या फायदा। गौरी के प्राण पखेरू उड़ने के आधे घंटे पश्चात शुभंकर के प्राण पखेरू उड़ गए। यह बड़ी विचित्र बात थी परंतु शायद ईश्वर को भी यही मंजूर था। अमरनाथ त्रिवेदी पूर्व प्रधानाध्यापक उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर लघुकथा- कृतघ्नता बचपन में माता-पिता से किसे प्यार नहीं होता परन्तु जब बालक वयस्क बन जाता है और उसकी शादी हो जाती है तब विरले ही ऐसे संतान होते हैं जो माता-पिता को आँखों में बसाए रहते हैं। अधिकांश तो माता-पिता के किए कर्म पर ही पूरी तरह से पानी फेर देते हैं। अधिकतर का अपने माता पिता से यही सवाल होता है कि आपने मेरे लिए किया ही क्या है ? ऐसा लगता है कि नई नवेली दुल्हन ने ही उसका परवरिश किया हो। इतनी कृतघ्नता जब माता-पिता को अपने जवान बेटा से मिलता है तब उसका कलेजा मानों फट पड़ता है, दिल चीत्कार कर उठता है। काश! इसी दिन के लिए बेटे को पाला-पोसा, अपने रात की नींद खराब की, इसे पढ़ाया लिखाया पर आज सब व्यर्थ हो गया। तेजू बचपन से ही शरारती था लेकिन माता पिता का अत्यंत दुलारा। वह कुछ गलती भी कर बैठता तब भी उसके पिता शुभंकर उसे कुछ भी नहीं कहता था। शुभंकर की सोच यही थी कि बचपना जाते ही वह स्वयं ठीक हो जाएगा। तेजू पढ़ने में नाम के अनुसार ही तेज था। उसे जो सबक याद करने को मिलते तुरंत याद कर लेता। अन्य बच्चे इतने तेज नहीं थे कि वे तेजू का मुकाबला कर सकें। जिस कारण अन्य बच्चे दंडित भी होते। समय की सीमा होती है। कुछ वर्षों बाद वह पढ़-लिख कर जवान हो चुका था। उसे नौकरी भी लग चुकी थी। शादी के योग्य होने पर लड़की वाले भी शुभंकर को दिन-रात की नींद छीन चुके थे। इससे वह भी चाहता था कि तेजू की शादी जल्द ही कर दें। मालती एक खूबसूरत लड़की थी उसे ही शुभंकर अपनी पतोहू बनाने के लिए राजी हो गया।शुभ मुहूर्त देख तेजू की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई। तेजू की माँ गौरी को अपनी सुंदर पतोहू देख काफी प्रसन्नता हुई।कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा परन्तु बाद में मालती के तेवर गरम होने लगे। तेजू भी धीरे-धीरे उसी के बहकावे में आने लगा। यह देख शुभंकर को पहले विश्वास ही नहीं हुआ परन्तु जब गौरी और तेजू की तेज आवाज सुनी तो उसके भी कान खड़े हो गए। यह सुन शुभंकर के पैर तले की जमीन खिसक चुकी थी। अब उसे और कोई साक्ष्य की आवश्यकता न थी।जीवन के सारे अरमान आज धूल धूसरित दिखे। जो बेटा यह कहता हो कि माँ के बिना मन नहीं लगता, वह आजकल कई सप्ताह से माँ से भेंट नहीं किया। ससुराल से ही जाकर वह नौकरी करने जाता और फिर वहीं वापस लौट जाता।बचपन के प्यारे माँ बाप आज पूरी तरह से उपेक्षित हो चुके थे। आज तेजू को अपनी पत्नी मालती और ससुराल के अलावे और कुछ नहीं सूझ रहा था। माँ बाप के लिए अवगुणों की सूची लंबी हो चली थी। कुछ समय के लिए तेजू घर पर आता भी तो शिकायतों का अम्बार लगा देता। इससे माँ-बाप दोनों को बड़ा सदमा लगता पर दोनों अब तक शारीरिक रूप से लाचार हो चुके थे इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते थे।मालती जब ससुराल आती तब उसकी चाल ढाल देख सास ससुर भी अचंभित रह जाते। लगता ही न था कि वह आज की नई नवेली बहू हो। तेजू भी उससे इस संबंध में कुछ न कह पाता। बेटा पतोहू की बेरुखी ने शुभंकर और गौरी के दिल को बड़ा ठेस पहुँचाया। अब उसके लिए जीना अब मरने से भी अधिक कष्टप्रद हो चला था।वे दोनों ऊपर जाने के दिन गिन रहे थे।इसी बीच तेजू जब घर आया तब माता- पिता की यह हालत देख आज वह घर पर ही रुक गया लेकिन मालती मैके में ही थी।आज शुभंकर और मालती की हालत अधिक खराब थी। साँसे उल्टी चल रही थी। शुभंकर घबराया परन्तु अब घबराने से क्या फायदा। गौरी के प्राण पखेरू उड़ने के आधे घंटे पश्चात शुभंकर के प्राण पखेरू उड़ गए। यह बड़ी विचित्र बात थी परंतु शायद ईश्वर को भी यही मंजूर था। अमरनाथ त्रिवेदी पूर्व प्रधानाध्यापक उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर लघुकथा- कृतघ्नता बचपन में माता-पिता से किसे प्यार नहीं होता परन्तु जब बालक वयस्क बन जाता है और उसकी शादी हो जाती है तब विरले ही ऐसे संतान होते हैं जो माता-पिता को आँखों में बसाए रहते हैं। अधिकांश तो माता-पिता के किए कर्म पर ही पूरी तरह से पानी फेर देते हैं। अधिकतर का अपने माता पिता से यही सवाल होता है कि आपने मेरे लिए किया ही क्या है ? ऐसा लगता है कि नई नवेली दुल्हन ने ही उसका परवरिश किया हो। इतनी कृतघ्नता जब माता-पिता को अपने जवान बेटा से मिलता है तब उसका कलेजा मानों फट पड़ता है, दिल चीत्कार कर उठता है। काश! इसी दिन के लिए बेटे को पाला-पोसा, अपने रात की नींद खराब की, इसे पढ़ाया लिखाया पर आज सब व्यर्थ हो गया। तेजू बचपन से ही शरारती था लेकिन माता पिता का अत्यंत दुलारा। वह कुछ गलती भी कर बैठता तब भी उसके पिता शुभंकर उसे कुछ भी नहीं कहता था। शुभंकर की सोच यही थी कि बचपना जाते ही वह स्वयं ठीक हो जाएगा। तेजू पढ़ने में नाम के अनुसार ही तेज था। उसे जो सबक याद करने को मिलते तुरंत याद कर लेता। अन्य बच्चे इतने तेज नहीं थे कि वे तेजू का मुकाबला कर सकें। जिस कारण अन्य बच्चे दंडित भी होते। समय की सीमा होती है। कुछ वर्षों बाद वह पढ़-लिख कर जवान हो चुका था। उसे नौकरी भी लग चुकी थी। शादी के योग्य होने पर लड़की वाले भी शुभंकर को दिन-रात की नींद छीन चुके थे। इससे वह भी चाहता था कि तेजू की शादी जल्द ही कर दें। मालती एक खूबसूरत लड़की थी उसे ही शुभंकर अपनी पतोहू बनाने के लिए राजी हो गया।शुभ मुहूर्त देख तेजू की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई। तेजू की माँ गौरी को अपनी सुंदर पतोहू देख काफी प्रसन्नता हुई।कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा परन्तु बाद में मालती के तेवर गरम होने लगे। तेजू भी धीरे-धीरे उसी के बहकावे में आने लगा। यह देख शुभंकर को पहले विश्वास ही नहीं हुआ परन्तु जब गौरी और तेजू की तेज आवाज सुनी तो उसके भी कान खड़े हो गए। यह सुन शुभंकर के पैर तले की जमीन खिसक चुकी थी। अब उसे और कोई साक्ष्य की आवश्यकता न थी।जीवन के सारे अरमान आज धूल धूसरित दिखे। जो बेटा यह कहता हो कि माँ के बिना मन नहीं लगता, वह आजकल कई सप्ताह से माँ से भेंट नहीं किया। ससुराल से ही जाकर वह नौकरी करने जाता और फिर वहीं वापस लौट जाता।बचपन के प्यारे माँ बाप आज पूरी तरह से उपेक्षित हो चुके थे। आज तेजू को अपनी पत्नी मालती और ससुराल के अलावे और कुछ नहीं सूझ रहा था। माँ बाप के लिए अवगुणों की सूची लंबी हो चली थी। कुछ समय के लिए तेजू घर पर आता भी तो शिकायतों का अम्बार लगा देता। इससे माँ-बाप दोनों को बड़ा सदमा लगता पर दोनों अब तक शारीरिक रूप से लाचार हो चुके थे इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते थे।मालती जब ससुराल आती तब उसकी चाल ढाल देख सास ससुर भी अचंभित रह जाते। लगता ही न था कि वह आज की नई नवेली बहू हो। तेजू भी उससे इस संबंध में कुछ न कह पाता। बेटा पतोहू की बेरुखी ने शुभंकर और गौरी के दिल को बड़ा ठेस पहुँचाया। अब उसके लिए जीना अब मरने से भी अधिक कष्टप्रद हो चला था।वे दोनों ऊपर जाने के दिन गिन रहे थे।इसी बीच तेजू जब घर आया तब माता-पिता की यह हालत देख आज वह घर पर ही रुक गया लेकिन मालती मायके में ही थी।आज शुभंकर और मालती की हालत अधिक खराब थी। साँसे उल्टी चल रही थी। शुभंकर घबराया परन्तु अब घबराने से क्या फायदा। गौरी के प्राण पखेरू उड़ने के आधे घंटे पश्चात शुभंकर के प्राण पखेरू उड़ गए। यह बड़ी विचित्र बात थी परंतु शायद ईश्वर को भी यही मंजूर था।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर