जीत की हार-संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

मनोहर अपनी बूढ़ी मां को कोर्ट के फैसले की प्रतिलिपि दिखाते हुए जरा हास मुख से बोला- ‘ मां,देखो न! हमने मुकदमा जीत लिया है।आज हमारे लिए बेहद खुशी के दिन है।’
सीता अस्सी गुजार चुकी थी। अब उसकी याददाश्त भी मंद पड़ती जाती थी। वह अनभिज्ञता जाहिर करती हुई लड़के से पूछी- ‘ कौन-सा मुकदमा तूने जीत लिया है, मनोहर? मुझे तो कुछ याद नहीं ।’
‘ अरी मां, तुझे मालूम नहीं?वही सड़क किनारे की अपनी जमीन वाला मुकदमा जिसमें से रघु चाचा ने पांच धुर जमीन ज्यादा हड़प ली है। अब तो उन्हें यह जमीन देनी ही पड़ेगी।’- मनोहर मां की स्मृतियों को ताजा करते हुए समझाया ।
‘ लेकिन बेटा मनोहर, यह मुकदमा तो हम कब की हार चुके हैं। तुझे ज्ञात नहीं? इस थोड़ी-सी जमीन के लिए दोनों भाइयों में कितना खून-खराबा हुआ था! मुकदमे में हमारे रिश्ते तो बिगड़े ही, बीघा भर पुश्तैनी जमीन भी बिक गई थी।इस घटना के कुछ दिन बाद ही तुम्हारे पिता चल बसे थे।शायद इन सदमों को वे झेल नहीं पाये थे। और फिर रघु तो दो धुर देने को सहमत भी था। बेटा, इस तरह के मुकदमे लोग जीतते नहीं , बल्कि हार जाया करते हैं ‘- सीता एक सांस में अपनी पीड़ा और मुकदमे की खामियों को बेटे के समक्ष रख दी थी।
मां के तथ्यपूर्ण वचनों को सुन मनोहर को अब अपनी जीत भी हार प्रतीत होने लगी थी।

संजीव प्रियदर्शी

फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय,बरियारपुर, मुंगेर

Spread the love

Leave a Reply