“औघड़”- ,पार्ट-02- श्री विमल कुमार “विनोद”

Bimal Kumar

संक्षिप्त सार-महेश एक साधारण गरीब परिवार का लड़का जो कि गणित से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद लगातार नौकरी की तलाशी में रहता है लेकिन रोजगार नहीं प्राप्त होने के बाद उसे परिवार,समाज,सरकार तथा जीवन से विरक्ति हो जाती है तथा वह गृह त्याग कर घर से बाहर चला जाता है तथा जीवन में निःशुल्क शिक्षा बाँटने का प्रयास करता है,जिसकी जिन्दगी में अब अपना कुछ भी नहीं रह गया है।
कथा विस्तार-बिहार के एक जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में महेश नामक एक असाधारण बालक जिसका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था।अपने जन्म से 04 वर्ष की उम्र में ही इनके पिता जी का एक सड़क दुर्घटना में असामयिक निधन हो जाती है।इसके बाद इसका जीवन”पतवार विहीन नाव” की तरह लड़खड़ाने लगता है।उसके बाद उसकी माँ दूसरे के घर में चौका बर्तन का काम करके कुछ रूपया कमा लेती है,जिससे कि महेश की पढ़ाई-लिखाई हो पाती है।जीवन में कठिनाई से शिक्षा ग्रहण करते समय महेश जीवन में रोजगार प्राप्त करने के लिये बहुत उत्साही रहता है।आगे चलकर महेश गणित विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर लेता है,पुनः वह जीवन में रोजगार की तलाश में लग जाता है लेकिन उसे रोजगार नहीं प्राप्त होती है।समाज में पढ़ -लिखकर रोजगार नहीं मिल पाने के कारण महेश को परिवार, समाज और देश की गतिविधियों से घृणा हो जाती है और वह एक रात घर से अचानक बाहर निकल जाता है।
समाज तथा अपनी पारिवारिक स्थिति से विरक्त होकर महेश अपने घर से बहुत दूर तक भटकता हुआ चला गया जहाँ पर उसे सुनसान जगह में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक मंदिर मिली जहाँ पर थका हुआ महेश ठहर जाता है।कई दिनों से भूखा,थका हुआ महेश बगल में बहती एक पहाड़ी नदी की पानी को पीकर कई दिनों तक यूँ ही लेटा हुआ है,तभी कुछ चरवाहा लोग उधर से गुजरते हैं तो एक व्यक्ति को इस तरह पड़े हुये देखते हैं।इसके बाद इसकी खबर लोग अपने-अपने गाँवों में देते हैं।इसके बाद अगल-बगल के गाँव के लोग महेश को देखने आते हैं तथा गाँव में चलने को कहते हैं,जिसे वह इन्कार कर देता है।ग्रामीणों के द्वारा बहुत प्रयास किये जाने के बाद वह उनके द्वारा लाये गये भोजन को ग्रहण करते हैं।इसके बाद वह लकड़ियों को चुनकर आग लगाकर उसी के पास बैठकर कुछ चिंतन करते हैं।
पुनः दिन में कुछ चरवाहे उस मंदिर के पास आते हैं तथा महेश के इर्द-गिर्द आकर बैठते हैं।महेश उन चरवाहों को कहता है कि तुम लोग पढ़ोगे तो बच्चे कहते हैं कि “नहीं”।जब महेश पूछते हैं कि क्यों नहीं पढ़ोगे तो बच्चे कहते हैं कि हमलोग तो गरीब घर के बच्चे हैं,घर में खाने को कुछ भी नहीं है।यह सुनकर हमेश एक योगी की तरह बच्चों को उसी मंदिर में रहकर तथा वहाँ की बंजर भूमि में कृषि कार्य करके शिक्षा ग्रहण करने को प्रेरित करता है।
महेश नित्य उस मंदिर के पास आग जला कर धूनी रमाता है तथा उस आग की निकलती हुई
चमकती लौ की तरह विश्व में शिक्षा का अलख जगाने के लिये प्रयास करता है। साथ ही वह कहता है कि मैंने अपने जीवन को दूसरों के लिये समर्पित कर अपनी वृद्ध माता जिसने की दूसरों के घर में काम करके शिक्षा दिलाने का प्रयास किया,जिसको मैंने ठुकराकर जगत कल्याण हेतु एक औघड़ का रूप धारण किया हूँ।
महेश जो कि अपनी पारिवारिक जिन्दगी से उपर उठकर अकेले में रात को लकड़ी को चुनकर उसमें आग जलाकर विश्व में शिक्षा का अलख जगाने के लिये चिंतन करता ही रहता था,उसे अपने जीवन की किसी भी प्रकार की चिंता नहीं थी।दाढ़ी तथा बाल बड़े-बड़े हो गये हैं,नदियों के सुख जाने के कारण कई दिनों से नहाया भी नहीं है तथा जब पीने को पानी नहीं मिल पाती है तो आसन लगाकर बैठ जाते हैं,जहाँ उसे किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं होती है।अब धीरे-धीरे वृद्धावस्था आने लगी है।महेश जो कि अब सांसारिक चीजों तथा सुख-सुविधाओं से उपर उठ चुका था,जीवन में किसी भी चीज को पाने की लालसा नहीं रह गई है,बस एक ही बात की चिंता रह गई है कि दुनियाँ के लोगों को किस प्रकार से शिक्षित किया जाय जिसके लिये इन्होंने अपने कुछ शिष्य बना रखे हैं जो कि दूर-दूर तक जाकर लोगों को ज्ञान बाँटने का काम कर रहे हैं।
इस लघुकथा को लिखने के साथ ही इसके लेखक विमल कुमार “विनोद”को लगा कि हम शिक्षकों को भी जीवन में अपने सुख और हित से उपर उठकर निःस्वार्थ रूप से आने वाले कल के भविष्य के निर्माण के लिये अधिक-से- अधिक लोगों तक पहुँच कर शिक्षा का अलख जगाने का प्रयास करना चाहिये ताकि शिक्षक रूपी”औघड़”अपना ज्ञान लोगों के बीच बाँटकर जीवन के सुन्दर लक्ष्य को प्राप्त कर सके।हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब हम अपने कर्म पथ पर लगातार सच्ची लगन तथा नि:स्वार्थ रूप में बच्चों में ज्ञान को बाँटते रहें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय
पंजवारा,(बांका)।

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