पृष्ठभूमि-सरोज नाम का एक लड़का है,जिसके पिता जी व्यवसाय करते हैं,माता जी गृहिणी हैं।पिता सुबह उठकर अपने दुकान पर चले जाते हैं, सरोज पढ़ने के नाम पर घर से निकलता है,लेकिन किशोरावस्था में पदार्पण होते हो उसकी संगति समाज के मादक द्रव्यों के सेवन करने वालों से हो जाती है।आगे चलकर वह पढ़ तो लेता है,लेकिन शराब पीने की लत उसके जीवन की तबाही का कारण बन जाता है।बड़ा होने के बाद वह एक दुकान में काम करने लगता है,जहाँ पर उसे लगभग दस हजार मजदूरी मिलती है।शराब पीने की बुरी लत के कारण वह रात में शराब पीकर घर आता है,जिससे उसके परिवार के लोग बहुत परेशान होते हैं,पर आधारित लघुकथा “नालायक बेटा”प्रस्तुत है।
विस्तृत कथा- एक छोटा कस्बा जहाँ पर एक मध्यम दर्जे का परिवार जिसमें सरोज ,विजय दोनों भाई के साथ-साथ उसके माता-पिता रहते हैं। दोनों भाई ग्रामीण विद्यालय में शिक्षण प्राप्त करते हैं।माता-पिता बहुत कष्ट से एक छोटी सी व्यवसाय करके दोनों भाई को पढ़ाने का प्रयास करते हैं,लेकिन छोटा भाई सरोज को नशा सेवन की बुरी लत सी लग जाती है तथा वह प्रतिदिन नशा का सेवन करने लगता है।स्वभाव से जिद्दी,किसी की बात नहीं मानने वाला जिसे धोरे-धीरे नशा अपशे आगोश में समा लेने का प्रयास करती है।शराब पीने के कारण से कई बार वह मोटर साइकिल से दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है।बहुत मुश्किल से वह ठीक हो पाता है,उसके बाद भी वह शराब पीने की लत से बाज नहीं आता है।
प्रतिदिन शराब पीकर वह अपने परिवार को परेशानी के जाल में उलझा देता है,जिससे उसका परिवार तबाही के शिखर पर पहुँच जाता है।जब रात के समय सरोज के परिवार वाले आराम करने जाते हैं,के समय तक सरोज का घर न लौट के आना परिवार के लिये मानसिक तनाव का कारण बना हुआ रहता है,जिसके चलते संपूर्ण परिवार तबाही के चरम शिखर पर रहता है।अपने छोटे पुत्र सरोज की हरकतों से परेशान माता-पिता का सुख-चैन छीना हुआ सा लगता है।ऐसी परिस्थिति में एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का बालक जिसे माता-पिता अपने बुढ़ापा का सहारा समझकर समाज का एक लायक,समझदार,इन्सान बनाने का प्रयास कर रहे थे,वह एक “नालायक बेटा”के रूप मे समाज का एक सिरदर्द के रूप में उभर कर समाज के सामने आ रहा है।
एक लेखक,समीक्षक के रूप में मैंने एक बालक जिसे माता-पिता बड़ी अरमान के साथ एक सुन्दर व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहता है,वह एक”नालायक बेटा” बनकर माता-पिता के अरमानों पर पानी फेर देता है,के कारणों की समीक्षा करने का प्रयास कर रहा हूँ इस प्रकार है-
(1)माता-पिता,परिवार तथा समाज की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि बच्चों का सुन्दर तरीके से निर्माण किया जाय तथा उसमें सामाजिकता, नैतिकता,अनुशासन,शिक्षा का पूरी तरह से समावेश कराया जा सके।लेकिन मुझे लगता है कि माता का अंधा प्यार तथा पिता की अनदेखी बच्चों को किशोरावस्था के संक्रमणकालीन दौर से बचा नहीं पाती है,तथा वह अपने मूल रास्ते से भटक जाता है।इसलिये माता-पिता,परिवार, समाज,विद्यालय,शिक्षक का उत्तरदायित्व होता है कि बच्चों के विकास में पूरी तरह से योगदान दें तथा बच्चों को एक सुन्दर व्यक्तित्व का रूप प्रदान करें।
(2)एक कहावत है कि पान क्यों सड़ा,बेटा क्यों बिगड़ा तथा घोड़ा क्यों अड़ा तीनों के पीछे एक ही कारण है,अविभावक तथा संरक्षक की अनदेखी।इसलिये बेटा की प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान देने की जरूरत है,नहीं तो बेटा बिगड़ेगा ही तथा नालायकी का शिकार होना लगभग तय है।
(3) बच्चों को शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था,प्रौढ़ावस्था में संभाल कर विकास कराने की आवश्यकता होती है ताकि आने वाली पीढ़ी संस्कार,नैतिकवान तथा सद्व्यवहार युक्त बन सके।
(4) समाज को भी आने वाली पीढ़ी को संस्कार युक्त बनाने का प्रयास करना चाहिये ताकि कल का भविष्य नालायक नहीं लायक बन सके।
संदेश-यह लघुकथा आज की वर्तमान परिस्थिति पर आधारित है,जहाँ पर कि परिवार के लोगों को अपने बाल-बच्चों को लगातार सुन्दर तथा एक चरित्रवान व्यक्तित्व प्रदान करने का प्रयास करना चाहिये।आप यदि बच्चों पर लगातार ध्यान देने की कोशिश करेंगे तो निश्चित रूप से आपकी आने वाली पीढ़ी लायक तथा कामयाबी के शिखर पर पहुँच पायेगी।
इसलिये आइये हम सभी मिलकर सुन्दर,सभ्य,अनुशासन युक्त छवि का निर्माण करते हुए बच्चों के सुनहरे भविष्य की कल्पना करें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार”विनोद” शिक्षाविद।