प्रकृति – रणजीत कुशवाहा

हम सभी मानते है कि प्रकृति हमेशा न्याय करती है और यह मानना भी चाहिए।जो घटनाएं घटित होती है प्रकृति उसको पहले लिख चुकी होती है। अगर प्रकृति न्याय करतीं हैं तो वह कैसे किसी छोटी-छोटी बच्चियों के जीवन में बलात्कार और हत्या लिखती हैं। कैसे लड़कियों के जीवन में आजीवन यौन दासी बनना लिख देती है जिसके शरीर से हजारों लोग खेलते हैं। बहुत सारे लोगों के साथ अन्याय होता है वे न्याय के आशा में मर जाते हैं। किसी के जीवन में सुख का सागर तो किसी के जीवन में दुखों का पहाड़।प्रश्न यह है कि प्रकृति न्यायाधीश है तो ऐसे मामलों का क्या न्याय करती है।ऐसे में पुनर्जन्म के आधार पर या स्वर्ग नर्क के आधार पर ही प्रकृति न्याय कर सकती हैं।मेरे विचार से पुनर्जन्म की सिद्धांत सही है।जिसे हिन्दू सहित अधिकतर धर्म के प्रवर्तक ने माना है।मनुष्य के साथ ही सभी प्राणी शरीर एवं आत्मा का संयुक्त रूप होते हैं। जिस प्रकार जीवात्मा (शरीर एवं आत्मा)का संयुक्त रूप हैं और इसकी मृत्यु निश्चित है उसी प्रकार उसका जन्म से पूर्व अस्तित्व रहा होगा।हम देखते हैं कि कोई जीव मरना नहीं चाहता परंतु ईश्वरीय सत्ता किसी को अमर नहीं होने देती।अब आपका सवाल होगा कि जब पुनर्जन्म का सिद्धांत सही है तो हमें पूर्व जन्म का स्मरण क्यों नहीं रहता है।मेरे तर्क से पूर्वजन्म का शरीर नष्ट हो चुका है जो इस जन्म में आत्मा के साथ नहीं होती।शरीर व योनि बदल जाने, गर्भ में रहने,नये स्मृति के कारण पूर्वजन्म की स्मृतियां विस्मृत हो जाती है।कहा गया है जैसी करनी वैसी भरनी, विधाता के पास जन्म जन्मांतर का हिसाब है।गीता में कहा गया है , कर्म करते रहे फल की चिंता ना करें।फल की प्राप्ति अगले जन्म में भी अवश्य होगी

।रणजीत कुशवाहा प्राथमिक कन्या विद्यालय लक्ष्मीपुर रोसड़ा समस्तीपुर(बिहार)

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