जीवन की वास्तविकता पर आधारित
श्री विमल कुमार”विनोद”लिखित लघुकथा।
सोहन नामक एक छोटा सा बालक जो कि परिवार का एकलौता,दुलारा पोता है।परिवार में पोता के आगमन होने के कारण घर के सभी लोग बहुत खुश होते हैं।बच्चे के जन्म के बाद से ही सभी लोग उसको प्यार करते हैं तथा उसकी देखभाल भी करते हैं।बचपन में लोग खेल-खेल में उसका पेंट खोलकर उसके निजी अंग को छूकर आनंद लेते हैं तथा पूछते हैं कि कैसा लगा?ऐसा करने से सोहन को अपने निजी अंग को प्रतिदिन दूसरों से छुआने की आदत सी हो गयी,जो कि आदत एक गलत रूख अख्तियार करता चला गया।धीरे-धीरे वह विद्यालय जाने लगा वहाँ पर भी उसके मित्र कहते थे कि तुम्हारा निजी अंग दिखाओ,तो वह अपना पेंट खोलने लगता था।धीरे-धीरे वह किशोरावस्था की दहलीज पर दस्तक देने लगा तथा उसको विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा।विद्यालय जाने के क्रम में समाज के कुछ असामाजिक तत्व जिसका मुख्य काम अपने साथ-साथ समाज के अन्य बच्चों को भी नशापान,अवैध यौन शोषण,आवारागिरी,विद्यालय की व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करवाना,लड़कियों से छेड़खानी करवाने,विद्यालय कर्मी तथा उसके गुरूजनों से दुर्व्यवहार करने तथा चरित्रहीनता जैसी असामाजिक बातों की ओर भड़काने का प्रयास करने लगे थे।सोहन प्रतिदिन अपने घर से पढ़ने के लिये तैयार होकर विद्यालय आता है लेकिन विद्यालय में प्रवेश करने के पहले ही सामने के मैदान में अड्डा बाजी कर रहे उसके”आका” लोग उसे विद्यालय में उदंडता का माहौल पैदा करने के लिये उत्तेजित कर देते थे तथा वह विद्यालय में आकर तरह- तरह से सबों को परेशान करने की कोशिश करता है।बिना काम के भी वह विद्यालय में आकर आवारागिरी करना,लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ करना इसकी आदत सी हो गई थी।धीरे-धीरे वह अपने”आका”के साथ रहते हुये नशीले पदार्थों के व्यसन का शिकार होने लगा तथा उसकी मानसिकता भी धीरे-धीरे छीन सी होती चली गयी।समाज के लोगों की नजर से गिरते सोहन के लिये समाज के लोगआवारा,लतखोर,कमीना,
बदचलन जैसे गंदे शब्दों से जोड़कर उसके लिये प्रयोग करने लगे।एक दिन सोहन ने विद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की से भद्दी छेड़खानी कर दी ,जिसके चलते विद्यालय से निकलने के बाद उसके अविभावक ने उसकी भरदम पिटाई कर दी लेकिन वह मानने वाला नहीं था और यदि वह मानने की भी कोशिश करता था तो,यदि अल्हड़गिरि में कमी भी करना चाहता था तो उसके,”आका” उसकी सही सोच में पानी फेर देते थे।परिवार,समाज तथा बाहरी लोगों से मार खाते-खाते उसकी स्थिति फसल में लगे उस कीड़े की तरह हो गयी है जिसपर थप्पड़ तथा डंडा की पिटाई बेअसर सी होने लगी है तथा लोग अब इस कमीना के नाम पर थूकने लगे हैं।एक दिन जैसे ही यह विद्यालय आ रहा था तभी समाज के कुछ असामाजिक तत्वों ने उसे नशीला पदार्थ का सेवन करा दिया,
जिससे उसकी मानसिक स्थिति असंतुलित हो गयी तथा वह विद्यालय के मैदान में प्रार्थना के समय एक लड़की का दुपट्टा खींचकर भागने लगा ,जिसे देखकर विद्यालय के लड़की,लड़कों ने झाडू,चप्पल और थप्पड़ से इसकी भरदम्मा कुटाई कर दी।उसके बाद विद्यालय प्रधान ने भी स्थिति को भांपते हुये पुलिस को इसकी सूचना दे दी तथा मौके पर पुलिस आकर इसको हाजत में बंद कर देती है।इसके बाद सोहन के दादा जी उसको पहुँच के बल पर छुड़ा लेता है तथा कहता है कि” मेरा पोता तो मेरे परिवार का नायक है, इसको कोई हाथ नहीं लगा सकता है।”इस प्रकार से सोहन का मनोबल बढ़ता चला जा रहा है।एक दिन सोहन अपनी यात्रा के दरम्यान बस पर जा रही एक महिला के साथ छेड़खानी करता है,जिस कारण से भी उसकी भरपूर पिटाई होती है।
इसके बाद सोहन की मानसिकता धीरे-धीरे लड़कियों को छेड़ने,समाज में मारपीट गाली-गलौज करना तथा असामाजिक तत्वों के साथ नशापान करना का आदि हो चुका है।समाज के बहुत सारे लोगों को समाज के उन असामाजिक तत्वों के कारनामों पर अफसोस होने लगती है कि” इन आवारा कुत्तों की तरह लोगों ने समाज की सुन्दर व्यवस्था को विकृत करने का प्रयास किया है”।समाज के कुछ असामाजिक तत्वों के चलते सोहन लगातार मार भी खाता है तथा मानसिक विकृति का शिकार होकर समाज के सभ्य लोगों,महिलाओं का आराम से जीवन जीना दूभर कर देता है।धीरे-धीरे सोहन कामुकता से आतुर होकर अपराध की दुनियां पर पैर जमाने लगता है तभी एक दिन समाज की कुछ महिलायें जो “घैयला
लेकर पानी लाने जाती है उसी समय वह उन महिलाओं से बदतमीजी करने लगता है,इसी क्रम में वह एक लड़की को धकेल देता है,जिसके फलस्वरूप वह गिर पड़ती है जिससे वह घायल हो जाती है।फलस्वरूप पुलिस के पास शिकायत होती है तथा उसे जेल में ढूँस दिया जाता है।जेल के अंदर भी उसकी नालायकी कम नहीं होती है।सोहन को जेल से अदालत में जज के सामने लाया जाता है,जहाँ पर जज साहब सोहन को पूछते हैं कि सोहन तुम देखने में इतने सुन्दर हो,सभ्य समाज से हो
फिर भी तुमने अपनी जिन्दगी को नशा,गलत व्यसन,आवारागर्दी के साये में क्यों धकेल दिया अब तो न्यायालय तुम्हारे इस गुनाह के लिये पांच वर्ष की सश्रम कारावास की सजा देने जा रही है।कोर्ट यह जानना चाहती है कि आखिर तुमने अपनी खेलती-कूदती सुनहली दुनिया को जहां तुम्हें एक नायक के रूप में जीवन को बनाना चाहिये था तुम आज दुनिया के एक जाने-माने नालायक के रूप में खड़े हो,क्या कारण है?यह सुनकर सोहन के आंखों से आँसू की धारा फूटने लगी तथा वह हाथ जोड़कर जज साहब को कहने लगा कि” मेरे जिन्दगी को तबाही के इस मोड़ पर लाने में सबसे अहम भूमिका मेरे परिवार वालों की है,जो कि अंधा प्यार के चक्कर में पड़ कर बार-बार मेरे पेंट को खोलकर मेरे निजी अंग को छूने का प्रयास करते थे,जो कि बाद में मेरी एक आदत सी बन गयी,जिसके हवस का मैं शिकार सा हो गया”।उसके बाद प्रतिदिन मेरी माता जी सुन्दर शिक्षा देकर,नीति युक्त बातों को समझाकर विद्यालय भेजती थी,लेकिन मेरी तथा इस समाज की बदनसीबी यह है कि शिक्षा के केन्द्र के बाहर असामाजिक तत्वों ने मेरी जिन्दगी को तबाह करना प्रारंभ कर दिया तथा उस समय मैं किशोरावस्था की दौर से गुजर रहा था,जहाँ मैं अपने को संभाल नहीं पाया।(रोते हुये)बहुत दुःख की बात है साहब की अभी भी समाज के कुछ असामाजिक तत्व हमारी आने वाली पीढ़ी को इस प्रकार से तबाह करने पर उतारू हैं।जज साहब”मैं
नालायक नहीं हूँ”मुझे नालायक बनाने का प्रयास किया गया है।वह जज साहब से विनती करते हुये कहता है कि साहब अब तो मेरी जिन्दगी तबाही के चरम शिखर पर पहुँच चुकी है,लेकिन यदि मुझे सुधरने का एक मौका दिया गया तो मैं पुनः जिन्दगी में ऐसी घिनौनी हरकत नहीं करूँगा।(जज साहब सोहन से)सही में तुम अपनी जिन्दगी के घिनौने हरकत को बदल कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो जाओगे।सोहन साहब में ईश्वर की शपथ खाकर कहता हूं कि”आज से सोहन का घिनौना रूप सदा के लिये मर चुका है”।मैं समाज में एक इज्जत
दार नागरिक की तरह जीना चाहता हूँ। यह सुनकर जज साहब सोहन को अपनी जिन्दगी को सुधारने का एक मौका देकर उसे रिहा करते हुये न्याय के क्षेत्र में चमत्कारिक आदेश जारी करते हैं।जज साहब के कमरे में उपस्थित सभी कानूनविद इस प्रकार के अनोखे न्याय को बहुत गंभीरता पूर्वक सुनते हैं तथा चारों ओर इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा होने लगती है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” शिक्षाविद।
मैं नालायक नहीं- श्री विमल कुमार”विनोद
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