गाँव के एक छोटे से विद्यालय में आदर्श नाम का एक शिक्षक था, जो अपने छात्रों को सिर्फ़ किताबों का ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिकता और जीवन-मूल्यों की सीख भी देता था। उनकी कक्षा में एक होनहार छात्र था—रवि। वह पढ़ाई में तेज़ था, लेकिन उसे हर हाल में जीतने की आदत थी, चाहे सही तरीके से हो या गलत तरीके से।
विद्यालय में वार्षिक परीक्षा हुई। रवि ने पढ़ाई तो की थी, लेकिन वह परीक्षा में अव्वल आने के लिए नकल करने का निश्चय कर चुका था। उसने अपने जूतों के भीतर उत्तर लिख लिए। परीक्षा के दौरान जब शिक्षक आदर्श निरीक्षण कर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि रवि कुछ संदिग्ध हरकतें कर रहा है। मगर बिना कुछ कहे वे आगे बढ़ गए।
परीक्षा समाप्त होने के बाद आदर्श सर ने पूरी कक्षा को एक कहानी सुनाई—
“एक बार एक राजा के दरबार में एक साधु आया। उसने कहा कि जो इस दीपक की लौ को अपने सत्य के प्रकाश से जला देगा, वही सच्चा और महान इंसान होगा। कई मंत्रियों और दरबारियों ने प्रयास किया, लेकिन दीपक नहीं जला। अंत में, एक छोटा बालक आया और बोला, ‘मैं झूठ बोलता हूँ, दूसरों से ईर्ष्या करता हूँ, और कभी-कभी अपने फायदे के लिए गलत काम भी करता हूँ। लेकिन मैं अपनी गलतियों को स्वीकार करता हूँ और इन्हें सुधारना चाहता हूँ।’ इतना कहते ही दीपक जल उठा। साधु ने कहा— ‘सत्य को स्वीकारने और सुधारने की इच्छा ही सच्चे उजाले की पहचान है।’”
रवि को यह कथा सुनकर अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली और आदर्श सर से क्षमा माँगी। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “गलती करना बुरा नहीं, लेकिन उसे छुपाना आत्मा के प्रकाश को धुंधला कर देता है। नैतिकता वही है जो हमें अंधकार से उजाले की ओर ले जाए।”
उस दिन से रवि ने सच्चाई और ईमानदारी को अपने जीवन का आधार बना लिया। वह पढ़ाई में भी आगे बढ़ा, और एक दिन एक ईमानदार अधिकारी बना, जिसने अपने गाँव को भी प्रगति की राह दिखाई।
नैतिक शिक्षा: सत्य और ईमानदारी की राह कठिन हो सकती है, लेकिन वही जीवन को सच्चे प्रकाश से आलोकित करती है।
सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)