मंजर” में आम के मंजर से वसंत ॠतु के आवे के संकेत मिलऽ हे।कोयल के कूक के जेकरा वर्णन बहुत गीत मे भी कइल गेल हथऽ जेकरा में कि”कोयल जइसन… मंजर-श्री विमल कुमारRead more
Author: Gadya Gunjan
पृथ्वी को बचाना-एक चुनौती पूर्ण कार्य-श्री विमल कुमार
“विनोद”
साधारणअर्थ में पृथ्वी जिसे पर्यावरण कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है”परि”अर्थात बाहरी तथा आवरण का अर्थ हुआ ढका हुआ।दूसरे शब्दों में”किसी जीव को चारों तरफ से जो जैविक तथा… पृथ्वी को बचाना-एक चुनौती पूर्ण कार्य-श्री विमल कुमार
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प्रेरक कथा-कुमकुम कुमारी
रखेंगे ध्यान बेटा यह क्या कर रहे हो? क्यों कचरे के बाल्टी में हाथ डाल रहे हो? माँ मैं कचरे में से पॉलीथिन निकाल रहा हूँ। देखो न माँ कामवाली… प्रेरक कथा-कुमकुम कुमारीRead more
समाज के पथ-प्रदर्शक संत कबीर दास
” समाज के पथ-प्रदर्शक संत कबीर दास “ ✍️सुरेश कुमार गौरव संत कबीर दास को समाज सुधारक के तौर पर जाना जाता है। आज भी उनकी रचनाओं को मंदिरों और… समाज के पथ-प्रदर्शक संत कबीर दासRead more
अंतरात्मा की आवाज
*अंतरात्मा की आवाज़* अंतरात्मा हमारे शरीर में विद्यमान वह सूक्ष्म अमूर्त सत्ता है जिसे अच्छा-बुरा, सही-गलत का स्पष्ट ज्ञान होता है और जो हमें निरंतर उच्च सिद्धान्तों के पथ पर… अंतरात्मा की आवाजRead more
चौथा प्रमाण
लघुकथा- “चौथा प्रमाण” ✍️सुरेश कुमार गौरव एक बार एक निजी स़ंस्था के अधिकारी को कार्यालय के लिए एक परिश्रमी और निष्ठावान सचिव की जरुरत पड़ी।उन्होंने इस बात का विज्ञापन कुछ… चौथा प्रमाणRead more
चंचल वन में जलेबी दौड़ – निधि चौधरी
चंचल वन में जलेबी दौड़ का आयोजन किया गया। राजा शेर सिंह ने सबको कबूतर काका द्वारा यह संदेश भिजवाया। सभी जानवरों में उत्साह का माहोल था। खेल का नियम… चंचल वन में जलेबी दौड़ – निधि चौधरीRead more
माखनलाल चतुर्वेदी-हर्ष नारायण दास
भारत की मिट्टी ने एक ऐसा तपः पूत रचा जो आत्मा से गाँधी था, आस्था में क्रान्ति, गति में कर्म था और राष्ट्र में सम्पूर्ण जीवित राष्ट्रीयता, वाणी, वीणा, वेणु… माखनलाल चतुर्वेदी-हर्ष नारायण दासRead more
संत रविदास -पूर्व जन्म -नीतू रानी
अंत मति सो गति , मरने के समय आप का मन जिधर जाएगा ।फल आपको उसी के अनुसार मिलेगा।मरने के समय आपका मन अगर बेटा-बेटी पर गया तब आपको सुअर… संत रविदास -पूर्व जन्म -नीतू रानीRead more
अध्यात्मिक प्रसंग स्वामी विवेकानन्द – सुधीर कुमार
क बार नरेंन्द्रनाथ ( स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम ) रामकृष्ण परमहंस से मिलने के लिए दक्षिणेश्वर ( कोलकाता ) पहूँचे । कुछ देर तक बातचीत के बाद वे उनसे से काफी प्रभावित हुए । उन्होंने उनसे पूछा , ” आपने भगवान को देखा है ? ”
परमहंस जी ने उत्तर दिया ,” हाँ , देखा है और बिल्कुल वैसे ही देखा है जैसे तुम्हें देख रहा हूँ । “