भाई की कलाई पर बहना का प्यार-हर्ष नारायण दास

Harshnarayan

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भाई की कलाई पर बहना का प्यार

          रक्षाबन्धन का त्योहार बदलते हुए मान मूल्यों का दर्पण है। पौराणिक इतिहास के अनुसार सबसे पहले राखी इन्द्राणी ने इन्द्र के हाथ में बाँधी थी।ब्रह्महत्या के पाप से त्रस्त इन्द्र स्वर्ग से निष्काषित थे।नहुष के शासन में इन्द्र की पत्नी शची दुःखी थी।देवगुरु वृहस्पति की सलाह से उन्होंने अपने कल्याण और अभ्युदय की इच्छा से आदि शक्ति की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया। त्रिगुणात्मिका पराशक्ति के शुभाशीष की शक्ति को कच्चे सूत के तिहरे धागे में संकल्पित कर उन्होंने अपने पराजित और हतोत्साहित पति के दाहिने हाथ में बांध दिया।
दाहिने हाथ कर्मठता का प्रतीक है। योगशास्त्र के अनुसार दाहिने हाथ में पिंगला नाड़ी रहती है जो कर्मठता, भविष्य के नियोजन तथा शारीरिक-मानसिक ऊर्जा को संचालित करती है। बल और ओज देनेवाली यह राखी इन्द्र का बल बनी और उन्होंने अपना खोया राज्य और स्वाभिमान को प्राप्त कर लिया।

इतिहास बताता है कि मुगलकालीन बादशाह हुमायूँ को रानी कर्णावती ने राखी भेजकर अपनी रक्षा के लिए आग्रह किया था। कर्मवती के खानदान से दुश्मनी रहने के वाबजूद राखी भेजने पर बादशाह हुमायूँ ने जी जान लगाकर कर्णावती की रक्षा की थी।मध्य काल में जब कोई महिला अपने को खतरे में अनुभव करती थी तो वह किसी वीर पुरुष को राखी बाँध देती थी या भिजवा देती थी ताकि विपत्ति की घड़ी में वह उसकी रक्षा कर सके। राजा पुरु की धर्मपत्नी ने सिकन्दर महान को राखी बाँधकर अपने पति पर आनेवाले संकट से छुटकारा दिलाया था।राखी धागों का त्योहार है। स्नेहिल धागे जो मन को मन से बाँधकर एक अनोखे आनन्द को प्रदान करता है।

आज के इस भौतिकवादी युग में यह सहसा विश्वास करने योग्य नहीं लगता है किन्तु भारतवर्ष का इतिहास इस बात का साक्षी है कि कच्चे धागों का यह बन्धन फौलाद की तरह मजबूत सिद्ध हुआ है। इस बन्धन में बँधे अनेक लोगों ने अपने प्राण की आहुति देकर भी इस कच्चे धागे की लाज रखी है। सचमुच अजीब है यह धागों का बन्धन।

रक्षाबंधन “रक्षा” का बन्धन है इसलिए इसके अनेक रूप प्रचलित है। यही कारण है कि कहीं कहीं पत्नियाँ भी अपने पति की कलाई पर राखी बाँधकर अपनी रक्षा का वचन लेती है। दूसरी तरफ पुरोहित वर्ग भी अपने यजमानों के हाथ में रक्षासूत्र बाँधते हुए निम्न श्लोक पढ़ते हैं–

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनस्त्वां प्रति बध्नामि, रक्षो माचल माचल।

आज के समय में रक्षाबंधन अपने प्रचलित रूप में भाई-बहनों का ही पर्व है जिसमें बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा कवच बाँधकर अपनी अशेष शुभकामनाओं की अमृतवर्षा करती है साथ ही भाई के दीर्घ जीवन, स्वास्थ्य और उत्थान की कामनाएं करती है तो प्रत्युत्तर में राखी के धागों से बंधा भाई प्राणपण से अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।
राखी के धागे होते तो कच्चे धागे ही हैं किन्तु इन धागों में प्यार और विश्वास बंधा होता है। आपके लिए बहन के हृदय का प्यार और आपके प्रति उसका अखण्ड विश्वास। लौह शृंखला को झटककर तोड़ देना आसान हो सकता है किन्तु इस प्रेम और विश्वास के बंधन को तोड़ना सम्भव नहीं होता। इस पर्व को हमें सम्पूर्ण समर्पण और निष्ठा की भावना से अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए तभी जाकर रक्षाबंधन के पर्व की सार्थकता और श्रावणी पूर्णिमा का त्योहार मनाया जा सकता है।

रक्षा बन्धन पर्व की अशेष शुभकामनाएं।

हर्ष नारायण दास
मध्य विद्यालय घीवहा
फारबिसगंज अररिया

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