एक हरिजन परिवार में पली-बढ़ी मनीषा।मनीषा का सपना था जो मैं बड़ी होकर पढ़ -लिखकर कुछ बनूँ । लेकिन उसके परिवार में उसे पढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे और घर से बाहर निकलने से उसे मनाही थी।
एक दिन मनीषा की माँ मायके गई थी और पिताजी उसके मजदूरी करने गए थे, मनीषा आव न देखा ताव ,झट से सरकारी स्कूल गई और एक मैडम से अपनी बात कह सुनाई, मैडम उसकी बातों को सुनकर बहुत खुश हुई।
मनीषा की माँ को मायके से आते-आते आठ रोज लग गए ,तब तक में मनीषा अपना “चारदीवारी” तोड़कर स्कूल जाने लगी और मैडम से बहुत कुछ सीख ली।जब मनीषा की माँ मायके से घर आई और मनीषा को पढ़ते देखी ,तब माँ का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और मनीषा से बोली, तुम्हारी ये हिम्मत जो तुम दहलीज लाँघकर स्कूल चली गई।माँ की बात सुनकर मनीषा कुछ देर तक चुप रही, फिर माँ को प्यार से समझाई, उसके बाद फटाफट सबकुछ लिखकर दिखा दी और पढ़कर भी सुना दी ,और माँ को लेकर सरकारी स्कूल चली गई, मैडम से बात कराई ,मैडम ने उसकी माँ को इस तरह से समझाई कि, माँ दूसरे दिन से मनीषा को पढ़ने की आजादी दे दी । अब मनीषा अपनी माँ के कामों में हाथ भी बंटाती और समय पर स्कूल भी चली जाती।
मनीषा ने पढ़ाई में कड़ी मेहनत की और परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मनीषा के माता-पिता को अपनी बेटी पर गौरव महसूस कर रहा था। कि पढ़ी-लिखी लड़की,
होती घर की रोशनी।
नीतू रानी
म०वि०सुरीगाँव, बायसी, पूर्णियाँ बिहार