दायित्वबोध-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

दायित्वबोध
         
          मध्याह्न भोजन के पश्चात बच्चे खेलने में व्यस्त थे। शिक्षक- शिक्षिकाएँ भी आपसी बातचीत में मशगूल थे, तभी सप्तम वर्ग की छात्रा सोनी हाथों से आँखों को ढके रोती हुई सहेलियों संग आई। कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसके वर्ग की एक छात्रा ने कहा-श्रीमान ! सोनी की आँख पर गेंद मार दिया है, उनकी आँखों से नहीं दिखाई दे रही है। तभी सोनी जोर-जोर से चिल्लाने लगी- सर मेरी आँख फूट गई है, मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। सुनकर सभी लोग अवाक रह गए। तभी रवि सर ने उठकर ‌ उसकी आँखों को देखा। बाईं आँख की पलक पर सूजन थी और अंदर आँखों में लाली। सोनी बिना रुके बोली जा रही थी- सर मम्मी मुझे मारेगी मैं क्या करूं? मेरी आँखों से कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है। उसकी अन्य सहेलियों की आँखें भी गीली थीं।
          रवि सर ने उसके माँ को बुलावा भेजा और उसे प्रधानाध्यापक के कक्ष में ले जाकर सांत्वना देने लगे। उन्होंने उसे अस्पताल भेज कर इलाज कराने का आग्रह किया। प्रधानाध्यापक महोदय ने एक रसोईया को साथ जाने का निर्देश दे सौ रूपए का नोट आगे बढ़ा दिया। इतने में पीड़ित छात्रा की माँ के नहीं आने का संदेश मिला। आखिर में एक रसोईया एवं उसके कुछ सहेलियों के साथ सोनी को नेत्र चिकित्सक के पास भेजा गया। कुछ देर बाद  साथ गयी दो छात्रा वापस अपनी किताबें लेने आईं जिसने चिकित्सक की शुल्क ५०० ₹.  बतायी। दोनों आपस में पैसे के बारे में बातें करते कक्षा से बाहर निकलीं। इसी बीच रवि सर ने उसे दौड़ कर बुलाया और अपने पास उपलब्ध ३०० रुपये देकर बाकी पैसे दूसरे दिन देने का वादा कर चिकित्सक के पास भेजा।
          प्राथमिक उपचार के बाद सोनी को उसकी माँ अगले दिन दूसरे चिकित्सक के पास ले गयी। अगले दिन जांचोपरांत केवल आँखों पर बाहरी चोट की जानकारी मिलने पर रवि सर उसके घर जाने लगे, तब दो अन्य शिक्षक भी साथ हो गये।
          घर में अकेली सोनी गुमसुम बैठी थी।उसके माँ पिताजी नहीं थे। अपने शिक्षकों को देखते ही उठकर प्रणाम किया। उसके चेहरे पर मुस्कान एवं संतोष के भाव दृष्टिगोचर हो रहे थे। आँखों से अभी धुंधला दिखाई दे रहा था पर आँखों में सूजन कम हो गया था। सोनी के माथे पर हाथ रख कर उसे ढांढस बंधाकर रवि सर ने राहत की सांस ली।
          फेरीवाले पिता की संतान सोनी चंचल और हँसमुख स्वभाव की बिंदास लड़की थी। पढ़ाई में साधारण पर किसी विद्यालयी गतिविधियाें में बढ़-चढ़ कर भाग लिया करती‌।जो गतिविधि उससे नहीं हो पाता उसे भी अपने तरफ से करने का पूरा प्रयास करती। जब सभी सहेलियाँ हँसने लगती तो वह झेंप जाती।
          चुँकी रवि सर बच्चों से हमेशा घुले-मिले रहते हैं इसलिए बच्चे भी उन्हें अधिक स्नेह सम्मान और अपनापन दिया करते हैं। बच्चों के हर सुख-दुःख और आवश्यकता में हमेशा साथ देते हैं। हर शिकायत का समाधान आगे बढ़ कर करते हैं ‌। यहाँ तक कि किसी को आवश्यकतानुसार किताबें, खेल का सामान अथवा गरीब छात्रों को ट्यूशन शुल्क भी अपने बल पर अदा करते हैं इसलिए बच्चे भी हमेशा उनके आस-पास रहते हैं। वे भी बच्चों को कहानियाँ प्रेरक प्रसंगों एवं महापुरुषों के जीवनियों के द्वारा प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहते हैं। इस बात से उनके कुछ सहकर्मी चिढ़ते भी हैं पर वे अपना कर्त्तव्य समझकर शिक्षक कम, पिता-मित्रवत का व्यवहार अधिक करते हैं। यही कारण अन्य लोगों की तुलना में उनका दायित्व भी बढ़ जाता है जो सबसे अलग करने को उन्हें विवस करता है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि
म. वि. बख्तियारपुर(पटना)
0 Likes
Spread the love

One thought on “दायित्वबोध-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Leave a Reply