देवी पूजा स्वरूप : मेरी नजर से-डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘

देवी पूजा स्वरूप : मेरी नजर से

        शिव और शक्ति विश्व को मूर्तरूप प्रदान करने के परमावश्यक अवयव हैं। पदार्थ में शिवत्व का दर्शन और शक्ति का बास हुए बिना चराचर जगत की कल्पना असंभव है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सहवास साहचर्य समन्यव और अंतर-संबंध की अवधरणा प्रकृति में सर्वव्यापी और सर्वसमावेशी है। प्रकृति में स्वतः ही सामंजस्य संतुलन और साम्यावस्था स्थापित है। मानव का अतिरेक और अनावश्यक हस्तक्षेप स्थिति को विकृत करता है। वस्तुतः देवी पूजा प्राकृतिक साहचर्य, संवेदनाओं और प्राकृतिक शक्तियों का मानवीय निरूपण है। शक्ति पूजा का एक रूप देवी पूजा भी है। उदाहरण के लिए दुर्गा शक्ति स्वरूपा हैं, महिषासुर मर्दिनी, शुभ-निशुम्भ और अनेकों दैत्यों से पुण्यात्माओं की रक्षा करने वाली, रिद्धि-सिद्धि की दात्री, अनेक रूपों में विहार और विचरण करने वाली हैं। ये सब शक्ति के विभिन्न रूपों की आराधना हम स्वयं की रक्षा और अपने हितार्थ करते है।

सामाजिक तौर पर शक्ति स्वरूपा नारी के विविध रूप के प्रति घर से लेकर समाज के विभिन्न अवयवों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया नारी के इस शक्ति स्वरूप को अनुमोदित नहीं करती बल्कि सर्वत्र व्याप्त भोग्या वस्तु भाव की प्रधानता से देवी पूजा का दैहिक और सांसारिक जीवन में संभावित उद्देश्य समाप्त हो जाता है। वस्तुतः जब तक देवी पूजा को स्वार्थ केंद्रित कुछ पाने के उद्देश्य से अलग संस्कार के उन्नयन और नारी को मानवीय परिष्कृत मूल्यों के अनुरूप नही देखा जाता तब तक देवीपूजा मूर्ति पूजा और स्वार्थपूर्ति के कारक तक ही सीमित रह जायेगी। शिव शक्ति के सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान भाव को जीवन में उतारे बिना देवी पूजा निरर्थक है। यदि पूजा के संकेतों को समझा जाय तो यह स्पष्ट है को नारी के शक्ति स्वरूपा विहंगम योग तप ध्यान ज्ञान और समय-समय पर मानवता के कष्ट को हरण करनेवाली भगवती दुर्गा के विविध रूपों में दिखाया जाना हिन्दू आध्यात्मिक चेतना के उच्चतम आदर्शों को दर्शाता है। जरूरत यह है कि समय बीतने के साथ नारी सम्मान में आई विकृतियों को भी आध्यात्मिक आदर्शों के सामान्य जीवन में वरण करते हुए सामान्य मानविकी को बेहतर बनाया जाय। यह दायित्व वैसे तो हम सबका है लेकिन निश्चित रूप से समाज के ज्येष्ठ श्रेष्ठ आध्यात्मिक महापुरुषों, राजनेताओं, सरकारों और समाज के संभ्रांत वर्ग का विशेष है। इस प्रकार देवी पूजा अपने पूर्णता को प्राप्त कर मानवता के लिए सार्थक और प्रभावी हो पायेगी।

डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘
मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

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One thought on “देवी पूजा स्वरूप : मेरी नजर से-डॉ. स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘

  1. बहुत सारगर्भित, बहुत सुंदर और उत्कृष्ट भाषा!

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