दिवाली का सरोकार
दिवाली भारत का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। दिवाली शब्द दीपावली का अपभ्रंश है जिसका अर्थ दीपों की पंक्ति होता है। यह त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है।
यह त्योहार बड़े शान और शौकत से मनाया जाता है। लोग काफी समय पहले से अपने-अपने घरों और दुकानों की साफ-सफाई करते हैं। दीवारों पर सफेदी कराते हैं तथा दरवाजों, खिड़कियों और फर्नीचरों आदि पर रंग रोगन करते हैं। त्योहारों के दिन लोग घरों और दुकानों को खूब सजाते हैं। मोमबत्तियों और तेल-दीयों से घर का कोना-कोना सजाते हैं।
इस त्यौहार के बारे में भी लोगों के विभिन्न मत हैं। जैनियों का विश्वास है कि इस दिन भगवान महावीर स्वर्ग गए थे। वहाँ देवताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया था।इस दिन उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ था इसी यादगार में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदुओं का मत है कि इस दिन भगवान राम रावण पर विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने अपने घरों को खूब सजाया और दीपों की पंक्ति से जगमगाकर भगवान श्री रामचंद्र जी का बड़े आदर और सम्मान के साथ स्वागत किया। इसी याद में हर वर्ष लोग दिवाली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते हैं। भगवान राम के आगमन की खुशी में दिवाली मनाने के कारण अक्सर इस दिन माताएँ एवं बहने ये गीत गातीं हैं जिसे सुनकर आँखें छलक जातीं हैं–
माई आजु आनंद गति कहलो न जाई,
जखनहिं रामचंद्र बनहिं से लौटल,
अयोध्या में बाजैय बधाई।
मातु कौशल्या रानी आरती उतारे छथि,
केकई रहली लजाई।
तोहरे प्रसाद हे माता वन हम हम खेपलौं
कियै अहाँ रहलौं लजाई…
माई आजु आनंद गति कहलो नै जाई।
इहो कलंक हो राम चंद्र कोना के मेटत मोर कोखि लिहा अवतारे,
जब हम आहे माता तोरा कोखि जन्म लेब,
दूधो नै पियब तोहारे.. 2
द्वापर में हे माता तहुं हेबा देवकी,
हमहुँ होयब यदुराई.. 2
माई आजु आनंद गति कहलो नै जाई।
वास्तव में हम जो दीवाली बाहर में मनाते हैं उसका सरोकार हमारे आंतरिक ज्ञान से भी है। यह पर्व हमें अंधकार को पारकर प्रकाश की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है। अज्ञान रूपी अंधकार पर ज्ञान रुपी प्रकाश की जीत है दीवाली। उपनिषद में है—
तमसो मा जोतिर्गमय। अर्थात- हे ईश्वर मुझे अंधकार से प्रकाश में ले चल। वेद में भी है–
वेदाहमेतंपुरूष: महानतम,
मादित्यवर्णंतमस: परस्तात।
अर्थात- वेद भगवान उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यो तुम अगर उस परम पुरुष को प्राप्त करना चाहते हो तो अंधकार के पार जाओ अर्थात प्रकाश में जाओ। इसी संबंध में निर्गुण भक्त संत कबीर साहब ने कहा-
अपने घट दियना बारूरे।
नाम के तेल सूरत के बाती,
ब्रहम अगिन उदगारू रे।
अपने घट दियना बारू रे…
इसी अंधकार को पारकर प्रकाश की खोज करने के संबंध में सद्गुरु महर्षि मेहीं परमहंस जी महाराज ने कहा-
खोज करो अंतर उजियारी, दृष्टिवान कोई देखा है।
गुरु भेदी का चरण सेव कर, भेद भक्त पा लेता है।।
निशिदिन सुरत अधर पर करि-करि, अंधकार फट जाता है…..
पुनः वे कहते हैं-
घट तम प्रकाश व शब्द पट, त्रय जीव पर हैं छा रहे।
कर दृष्टि अरू ध्वनि योग साधन, ये हटाना चाहिए।।
इनके हटे माया हटेगी, प्रभु से होगी एकता।
फिर द्वैतता नहीं कुछ रहेगी असमनन दृढ चाहिए।।
इसलिए हमें अपनी परंपरा को रीति-रिवाजों को सहेज कर सुरक्षित रूप से मनाना चाहिए।
दिवाली की रात हमलोग अपने-अपने घरों और दुकानों को खूब रोशन करते हैं। साधारण लोग मिट्टी के दीपों और मोमबत्तियों से तथा बड़े और समृद्ध लोग बिजली की रंगीन पत्तों की झालर से रोशनी करते हैं। तरह-तरह के पटाखे और आतिशबाजी पर बड़ी धनराशि व्यय की जाती है। शाम से हीं हर तरफ से पटाखों का शोर सुनाई पड़ने लगता है। एक दिन पहले धनतेरस में लोग सोना-चांदी, बर्तन आदि की खरीदारी करते हैं। सभी लोग दिवाली के दिन नये-नये और अच्छे-अच्छे कपड़े एवं आभूषण पहनकर प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं। सनठी का उक्कापाटी बनाकर रखा जाता है। रंगोली भी बनाये जाते हैं। मनपसंद व्यंजन के साथ बड़ी-भात भी रात के भोजन में बनाया जाता है। पूजा घर में अरिपन बनाकर तरह-तरह की मिठाईयाँ रखी जाती हैं। तरह-तरह के पकवान भी बनते हैं। लक्ष्मी, गणेश एवं सरस्वती जी की पूजा आरती के बाद अन-धन लक्ष्मी घर…. दरिद्र बहार…
कहते हुए उक्कापाटी लेकर बाहर निकलकर पुरूष लोग उक्कापाटी खेलते हैं। घर आकर फिर बरी खाई जाती है। छोटे बच्चे घर के बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं और बड़े छोटों को मिठाई एवं चाकलेट आदि देते हैं। पटाखे एवं फूलझरियाँ जलाकर खुशी मनाते हैं फिर अपने रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं।
इस दिन नौकरों को बख्शीश दी जाती है और भिखारियों को दान दिया जाता है। व्यापारी वर्ग इस दिन अपने पुराने खाते बंद करके नए खाते चालू करते हैं। इस दिन उनका नया लेखा वर्ष प्रारंभ होता है। वैदिक धर्मावलंबियों का मानना है कि इस दिन लक्ष्मी जी सभी घरों का चक्कर लगाती हैं और जिस घर में अंधेरा देखतीं हैं; वहीं से नाराज होकर चली जाती हैं। इसलिए हिन्दू लोग पूरे घर में दिया जलाते हैं।
इस पर्व के अनेक लाभ हैं। यह त्योहार वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद आता है। बरसात में मक्खी, मच्छर, और तमाम तरह के कीड़े – मकोड़े पैदा होते हैं जो साफ-सफाई के दौरान मर जाते हैं। इस दिन कुम्हार, व्यापारी, खिलौने बनाने वाले, हलवाई आदि को अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है। लेकिन लोग पटाखे, आतिशबाजी तथा सजावट और रोशनी पर अनाप-सनाप धन खर्च कर देते हैं और बाद में पछताते हैं। बमों , पटाखों से कई जगह दुर्घटनाएँ घटती हैं; ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। जुआ खेलना इस त्योहार की सबसे बड़ी बुराई है।
दिवाली भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों जैसे रक्षाबंधन, होली, दुर्गापूजा, आदि में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अवसर पर जुआ पर पाबंदी लगनी चाहिए। जुआ इस पुनीत त्योहार पर सबसे बड़ा कलंक है। दिवाली जैसे त्योहारों के अवसर पर हीं राष्ट्र की समाजिक एवं धार्मिक भावना व्यक्त होती है।
✍मनु रमण✍
प्रखण्ड शिक्षिका,
बायसी, पूर्णियाँ बिहार