ज़िला स्कूल का बड़ा सा प्रांगण कुर्सियों से भरा था। इस बार मंच भी और बार से अधिक बड़ा और सुंदर बना हुआ है। धीरे धीरे सारी कुर्सियां आगंतुकों से भर गई मगर कार्यक्रम की शुरुआत नहीं हो रही थी। सबकी दृष्टि विद्यालय के मुख्य द्वार पर टिकी थी। कुछ समय बाद एक सफेद कार अंदर प्रवेश की जिसमें से एक भद्र महिला उतरी। उन्होंने लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनी हुई थी। आयु 30-35 के लगभग रही होगी। उनके साथ एक और महिला व दो परुष थें। प्रधानाध्यापक जी ने आगे बढ़ कर उनका स्वागत किया। थोड़ी देर बाद वो भद्र महिला मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में आसीन थीं।
प्राम्भिक औपचारिकताओं के बाद मंच संचालन के लिए उस भद्र महिला को उनका परिचय देते हुए बुलाया
“आज हमारे लिए ये अत्यंत गौरव की बात है कि हमारे बीच हमारे राज्य की एक बड़ी हस्ती महान सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती प्रेरणा किरण जी उपस्थित हैं। जिन्हें उनके अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यों के लिए कई बार राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। और हमारे लिए यह गौरव की बात है कि यह हमारे विद्यालय की पूर्व छात्रा राह चुकी हैं। तो मैं माइक पर बुलाना चाहूंगा प्रेरणा जी को वो आए और अपनी इस सामाजिक यात्रा से हमें अवगत कराएं व हमें लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करें।”
भद्र महिला ने आकर माईक थामा और बड़ी ही शांत स्वर में अपनी बात शुरू की
” कहते हैं कि जब तक हम किसी पीड़ा को स्वयं अनुभव नहीं करते टैब तक हम उस पीड़ा की पीड़ा को समझ नहीं पाते मगर मेरी कामना है कि मैंने जो पीड़ा झेली है आपलोगों को ना झेलना पड़े इसीलिए आज अपनी कहानी आपको सुनाने जा रही हूँ।
सामाजिक कार्यकर्ता बनने की इस शुभ यात्रा की शुरुआत बहुत ही अशुभ घड़ी में हुई थी। जी हाँ वो अशुभ घड़ी थी मेरी माँ की मृत्यु का दिन। उस समय मेरी आयु 12-13 वर्ष रही होगी आठवीं कक्षा में थी मैं जब योनि में संक्रमण व टेटनस के कारण मेरी माँ की मृत्यु हो गई। मैंने मां का छटपटाना देखा, कराहना देखा है। उस समय अभी की जितने गांव में स्वस्थ केंद्र व आंगनवाड़ी केंद्र नहीं थे। और जहाँ कहीं थोड़े बहुत थे तो वो उतने सक्रिय नहीं। ना ही लीग इतने जागरूक की उनसे कोई सलाह लें। ख़ासकर माहवारी, यह शब्द तो आप जोड़ से बोल नहीं सकते थे और पुरुषों के समक्ष तो इसका नाम लेना वर्जित था। महिलाओं को अकेले ही चुपचाप झेलना पड़ता था माहवारी के समय की सारी पीड़ा। उसमे सबसे बुरी बात जो थी वो थी माहवारी को लेकर लोगों का अंधविश्वास। इसी अंधविश्वास ने मेरी जान ले ली।
प्रेरणा जी भूत की तरफ़ गमन कर गई…
20 वर्ष पहले..
प्रेरणा की माता का शव दरवाज़े पर पड़ा था। कोई रोने धोने में लगा था तो कोई दाह संस्कार की व्यवस्था में। प्रेरणा अपनी माँ के शव के पास सन्न सी बैठी थी। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसकी माँ अब नहीं रहीं। उसकी मृत्यु हो गई। “मृत्यु, नहीं ये मृत्यु नहीं है ये हत्या है।” प्रेरणा ने अपने मन में दोहराया। और तेज़ी से उठकर गाँव के बाहर वाले थाने पर पहुँच गई। उसे देख दारोग़ा ने पूछा- “ए लड़की, यहां क्या करने आई है?”
“रपट लिखवाने” प्रेरणा ने सीधा उत्तर दिया। दुःख और क्रोध जे भाव एक साथ मुख पर झलक रहे थे।
“रपट! किसके विरुद्ध?” दरोगा ने आश्चर्य से पूछा
अपने पिता और दादी के
क्या!! क्या अपराध किया है उन्होंने?
तेरी गुड़िया तोड़ दी क्या? एक दूसरा दरोगा बोल हंसने लगा
“हत्या”। प्रेरणा ने अत्यंत गंभीर स्वर में कहा।
क्या!! सभी चौंक पड़े।
“किसकी हत्या?” दरोगा ने पूछा
“मेरी माँ की हत्या”। प्रेरणा ने उसी गंभीरता के साथ कहा
क्यों , क्या किया तेरी मां ने? दारोग़ा भी अब गंभीर हो चुका था।
कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। अब लड़की का स्वर पुनः भर आया। दरोगा एक क्षण को स्थिर हो गया।
“चल देखता हूँ। ” उठते हुए बोला।
थोड़ी देर बाद दोनों शव के पास खड़े थें। पुलिस को देख सभी आश्चर्यचकित हो गए। प्रेरणा का पिता “भोला” आगे आया- साहब आप इस समय यहाँ??
हाँ तुम पर आरोप है
आरोप हम पर कैसा आरोप? भोला चौंका
यह तुम्हारी बेटी है? दारोग़ा ने प्रेरणा को दिखा कर पूछा
जी, जी सरकार
इसने तुम पर और तुम्हारी माँ पर आरोप लगाया है कि तुम दोनों ने इसकी मां यानी कि तुम्हारी पत्नी की हत्या की है। दारोग़ा ने खुलासा किया।
क..क़्क़.. क्या.. ए बाँवरी हो गई है का?? हम काहे मारेंगे इसको? इसकी मृत्यु तो बीमारी से हुई है। टेटनस हो गया था इसको और वो…
भोला बोलते बोलते रुका
और क्या? दारोग़ा ने आगे पूछा
और क्या बताए वो…
हम कह रहे हैं पूरी बात बताओ । दारोग़ा ने कड़े स्वर में कहा
जी वो महिलाओं वाली भी कुछ बीमारी थी। भोला ने नज़रें छुकाते हुए कहा।
तो तुम्हारी बेटी ऐसा क्यों कह रही है कि तुमने और तुम्हारी माँ ने इसकी हत्या की है? दारोग़ा ने पुनः प्रश्न किया।
“ए छोड़ी बाँवरी हो गई है क्या? क्या अनाप शनाप बोलती है। अपने पिता पर दोष लगा रही है। झूठी कुलच्छिन..”दादी भी कमर पर हाथ रखे सामने आ खड़ी हुई।
“झूठी नहीं हूँ मैं। मैं झूठ नहीं बोल रही। तुम दोनों ने मारा है मेरी माँ को। माँ को टेटनस क्यों हुआ? और वह योनि में इंफेक्शन क्यों हुआ? तुमलोगों के कारण। तुमने मारा है मेरी माँ को। ” प्रेरणा ने रोते हुए गुस्से में कहा
“ए लड़की क्या कह रही हो ठीक से बताओ।” दारोग़ा ने उलझन में कहा तो प्रेरणा रोते हुए कहने लगी
दारोग़ा साहब , तीन वर्ष पूर्व से मां को योनि में दर्द होने लगा था। डॉक्टर ने बताया कि गंदे कपड़े के प्रयोग से उन्हें इंफेक्शन हो गया था। उन्होंने पापा को पैड लाने को कहा मगर पापा नहीं सुने उल्टे दादी ने मां को डांटा भी।
“ए छोड़ी चुप तुझे तनिक भी लाज नहीं आती ।” दादी ने बीच में टोका।
मैं चुप नहीं रहूँगी। मैं बोलूँगी। दारोग़ा साहब दो वर्ष पूर्व जब मुझे माहवारी आनी शुरू हुई तब माँ बे फिर पापा से कहा मगर फिर दादी ने उन्हें बहुत डाँटा की वह सब इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। माहवारी के खून बाहर नहीं जाना चाहिए वरना पाप चढ़ता है बांछ हो जाती हैं औरतें और भी जाने क्या क्या। मां चुप रह गई और नतीजा तीन माह पूर्व उनको टेटनस हो गई। मगर उनके इलाज भी ठीक से नहीं कराया गया और वो…
“ए छोरी चुपकर चुपकर। दो अक्षर पढ़ ली तो लाज शर्म घोल कर पी गई है क्या? मर्द मानुस के सामने ऐसी घिनोनी बातें। ” दादी ने पुनः टोका
नहीं मैं अब चुप नहीं रहूँगी। इसी चुप्पी ने मेरी माँ की जान ली है। मैं अब बोलूंगी। और किसे घिनोनी बातें कह रही हैं। माहवारी तो एक शारीरिक परिवर्तन है। मैडम ने स्कूल में बताया था कि आयु वृद्धि के साथ स्त्री पुरूष के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं। माहवारी भी उनमें एक है। और रजोधर्म से ही तो संसार के मानव जीवन की शुरुआत होती है ना दादी।फिर इसे गंदा या अपवित्र क्यों कहते है। इसके बारे में बात करने में इतनी लज्जा क्यों ?
“छी छी राम राम कैसी बातें कर रही है। चुपकर चुप हो जा बेशर्म। दादी ने अपने कान छुए।
“नहीं दादी अब मैं चुप नहीं रहूँगी। मैं बोलूँगी। सवाल पूछुंगी। बताऊंगी सबको के मेरी माँ की मृत्यु कैसे हुई। ताकि फिर किसी प्रेरणा से उसकी माँ ना छीने।”
आवेश में वो बोल रही थी मगर माँ का नाम आते वह पुनः सुबक पड़ी।
“दारोग़ा साहब, ये हत्यारें हैं। इन्हें गिरफ्तार कर लें । इन्होंने मार है मेरी माँ को” वह सिसक उठी।
दारोग़ा साहब आगे और प्रेरणा के सर को सहलाते हुए बोले
“इन्होंने नहीं बेटी, इनकी अज्ञानता ने मारा है तुम्हारी माँ को। इन्हें गिरफ्तार करने से इस समस्या का हल नहीं होगा। इसके लिए ज़रूरी है समाज का जागरूक होना, अंधविश्वास और ग़लत धारणाओं से बाहर निकलना।”
प्रेरणा के साथ दारोग़ा जी की भी आवाज़ भर आईं। मगर प्रेरणा के मुख पर निश्चय का सूरज चमक उठा।
वर्तमान
और उसी दिन मैंने फैसला लिया कि अब मैं चुप नहीं रहूँगी। मैं आवाज़ उठाउंगी। लड़कियों को सवाल करना सिखाऊंगी। ताकि वह माहवारी से संबंधित अंधविश्वास से बाहर निकले। और केवल माहवारी ही नहीं बल्कि हर ग़लत धारणा को तोड़ सके। मित्रों मैंने तो अपनी माँ को खो कर ये प्रेरणा पाई परन्तु आप अपना कुछ खोने से पहले ही संभल जाए । ग़लत धारणाओं और अंधविश्वास से बाहर निकले । जागरूक बने और समाज को जागरूक बनाए।
प्रेरणा ने अपनी बात ख़त्म की और पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। ये गूंज थी जागरूकता की।