मोम से बनी पंखों वाली-आलोक कुमार मल्लिक

मोम से बनी पंखों वाली

          एक परी थी। वह आकाश मार्ग से गाँव में स्थित एक तालाब पर सूर्यास्त के बाद आती थी और सूर्योदय होने से पूर्व अपने लोक में वापस लौट जाती थी। वह रात भर उस तालाब के आस-पास घूमती रहती थी। कभी वह कलियों से बातें करती थी तो कभी मछलियों के संग-संग उस तालाब में तैरती रहती थी। कभी-कभी वह तालाब के एक भिंड से दूसरे भिंड तक नाचते गाते-गाते हुए सैर करती थी तो कभी-कभी गाँव के बस्तियों के घरों में जाती और बच्चों के सपनों में प्रवेश करती और उन्हें अपने लोक की सैर कराती रहती थी।

          उस गाँव में एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था। उनका एक भोला-भाला लड़का था जो बहुत पतला-दुबला और कमजोर था। एक तो वह लड़का उस परी की उम्र का था। दूसरे स्कूल नहीं जा पाने के बावजूद भी, उसमें एक सबसे अच्छी बात यह थी कि उसने घर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके अपनी पढ़ाई जारी रखा हुआ था। इन कारणों से परी को उससे विशेष लगाव था। वह उसके सपनों में हर रात आती थी। वह उसे हँसाती थी। उसमें उत्साह भरती रहती थी। वह पूरी तरह से स्वस्थ्य हो जाएगा इस बात का भरोसा भी दिलाती रहती थी। उस किसान के घर में एक तोता भी था। वह तोता इस कार्य के लिए परी का शुक्रिया अदा करता था।
एक शाम परी उस तालाब में मछलियों के संग-संग तैर रही थी। उसी समय तालाब से कुछ दूरी पर स्थित कच्ची बस्ती में आग लग गई। उसकी रोशनी और गर्मी उस परी तक पहुँचने लगी। उस किसान का घर भी उसी बस्ती में था जहाँ आग लगी थी। धीरे-धीरे परी का शरीर आग की तपिश से गर्म होने लगा। आग के प्रभाव से मछलियां गहरे पानी में जाने लगी। लेकिन परी ऐसा नहीं कर सकती थी। परी के लिए गहरे पानी में श्वसन क्रिया संभव नहीं था। परी पानी से बाहर भी नहीं निकल सकती थी क्योंकि अगर वह पानी से बाहर आती तो उसके पंख आग की तपिश और रोशनी से पिघल जाते क्योंकि उसके पंख मोम के बने हुए थे जो सूर्य के प्रकाश में भी पिघलने लगते थे।

          परी ज्यादा देर तक पानी में नहीं रह सकी। उसके पंख धीरे-धीरे गर्म हो रहे थे। वह पानी से बाहर आई और फुर्ती से पीपल के पेड़ की डाली पर पत्तों के झुरमुट में छिपकर बैठ गई। वह सोच रही थी कि अब उसे अपने लोक में लौट जाना चाहिए क्योंकि आग लगने के कारण उस स्थान पर वायुदाब कम हो गया था। पीपल के पेड़ की पत्तियाँ और शाखाओं के हवा के तेज प्रभाव से हिलने-डुलने के कारण आग की तपिश और गर्मी उस तक पहुँच रही थीं। सूर्योदय होने में भी कम ही समय बचे थे।
उसी समय किसान का तोता परी की तलाश में तालाब पर आ पहुँचा।
उसने परी से कहा- परी दीदी, परी दीदी! मेरे रोहन भाई को बचा लो!
परी- क्या हुआ रोहन को?
तोता- आग रोहन के कमरे तक पहुँचने वाली है। रोग ने रोहन को इतना कमजोर कर दिया है कि वह खुद से कमरे से बाहर नहीं निकल सकता। संचरणीय रोग होने के कारण आजकल तो वह मुझे भी अपने पास फटकने नहीं देता है। सबों से समाजिक दूरी बनाए रखता है और मास्क भी लगाए रहता है। आज खेतों पर अधिक काम होने के कारण उसके माँ और पिताजी रात भर वही रहेंगे। मुझे रोहन की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

परी- मैं रोहन की मदद करने के लिए तैयार हूँ। तुम बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?
तोता- तुम एक परी हो दीदी! फिर भी परेशान लग रही हो। बात क्या है? क्या तुम ठीक हो?
परी- मैं बिलकुल ठीक हूँ। मुझे जल्दी से रोहन के पास ले चलो।

गुलाब की कली दोनों की बातें ध्यान से सुन रही थी। उसने तोते से कहा- सुनो, तोता भाई! मैं आपको परी बहन की परेशानी का कारण बताती हूँ। परी के पंख मोम से बने हुए हैं। अगर वह आग की तरफ जाएगी, तो वह खुद मुश्किल में पड़ जायेगी। उसके पंख पिघल जाएँगे। उसके पंख सूर्य का प्रकाश भी सहन नहीं कर पाते हैं।

तोता (परी से)- परी दीदी सुबह होने वाली है! तुम अपनी दुनियाँ में लौट जाओ। मैं रोहन को बचाने के लिए कोई और रास्ता निकालूँगा।
परी- नहीं तोता भाई! मैं रोहन को सुरक्षित देखे बिना अपने देश वापस नहीं जाऊँगी।
किसी को भी परी का अपनी जान खतरे में डालते हुए देखना मंजूर नहीं था। सभी ने कहा कि हम सब मिलकर रोहन को सुरक्षित बचाएँगे।

बूढ़ा बरगद तालाब के दूसरे कोने पर खड़ा था। उसने कहा- सुनो-सुनो! मेरी बात सुनो! मानव शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। अगर हम किसी तरह रोहन के शरीर में इन पाँच तत्वों का संतुलित मात्रा डालेंगे तो रोहन एक स्वस्थ्य और आत्मनिर्भर लड़का बन जाएगा। तब वह अपने प्राणों की रक्षा स्वयं करने में सक्षम हो जाएगा।

पानी में तैरती मछली- सुनो परी, तुम्हारे पास जो अद्भुत छड़ी है उसमें ये पाँच तत्व समा सकते हैं। क्योंकि तुम्हारी इस छड़ी में सौरमंडल के आठों ग्रहों यानी कि बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण की शक्तियाँ समाहित है।

परी (तोता से)- हे मेरे प्यारे तोता भाई! यह जादुई छड़ी ले जाओ। इसे आप बूढ़े बाबा (बरगद) के पास लेकर जाओ।

तोता छड़ी को अपने पंजों के सहारे पकड़ कर बरगद के पास पहुँच गया। बरगद ने उस अद्भूत छड़ी में ऑक्सीजन भर दी। इसके बाद, तालाब ने पानी, खेतों ने मिट्टी, आकाश ने उस छड़ में अपनी शक्तियाँ समाहित कर दिए। सभी ने यह कहते हुए तोते को विदा किया कि वो सामने जो मंदिर दिख रहा है उसमें जल रहे दीया से अग्नि मांग लेना और इस छड़ी को रोहन के शरीर से स्पर्श करवा देना! ऐसा करने से रोहन पूर्णतः स्वस्थ्य और आत्मनिर्भर बन जाएगा।
तोता छड़ी लेकर चला गया और रोहन के शरीर से उस छड़ी को स्पर्श किया जिससे रोहन पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने कमरे से बाहर आकर अपनी जान बचाई। इधर रोहन के स्वस्थ और सुरक्षित होने की कामना सभी करने लगे। थोड़ी देर बाद तोता आकाश मार्ग से उड़ते हुए और रोहन उसके पीछे-पीछे स्थल मार्ग से दौड़ते हुए तालाब की ओर चला। रास्ते में तोते ने रोहन को सारा वृत्तांत सुनाया। तालाब पर पहुँचते ही रोहन सबसे पहले परी से मिला। रोहन ने हृदय से परी को धन्यवाद दिया और उसकी छड़ी उसे वापस कर दिया। रोहन को स्वस्थ्य देखकर परी ने सबों का धन्यवाद किया और खुशी-खुशी अपनी दुनियााँ की ओर लौट गई।

रोहन ने एक-एक करके भूमि, जल, वायु, आकाश और अग्नि को नमन किया और सभी को धन्यवाद दिया। सभी ने रोहन को आशीर्वाद दिया। इसके बाद रोहन अपने तोते के साथ अपनी माँ और पिता से मिलने के लिए खेतों की ओर चल पड़ा।

आलोक कुमार मल्लिक
प्राथमिक विद्यालय खाड़ी टोला

सिकटी अररिया

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