“झलिया”नाम केरो एगो पाँच बच्छर केरो लड़की जे कि भोरे सुति ऊठी केरो बाद से ही जिनगी भर गाँव घरो म जरा जरा बातो में झगरा करैय छलय। ऐकरे उपर… झगड़ैया”-अंगिका लघुकथा -श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
हाहाकार- श्री विमल कुमार”विनोद”
एक लघु नाटिका पृष्ठभूमि- गर्मी,गर्मी,शरीर गर्मीसे जल रहा है,जीवन जीना दूभर हो गया है,गर्मी की उमस ने तो जीना मुश्किल सा कर दिया है।बचाओ,इस उमस भरी गर्मी से बचाओ।(तभी अचानक… हाहाकार- श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
बैगलेस शनिवार -मीरा सिंह “मीरा”
आठ वर्षीय रामू अहले सुबह बिना किसी की आवाज लगाए स्वत: उठा ही नहीं बल्कि अपने स्कूल के जूते भी साफ करने लगा।यह देख उसकी मां को बहुत हैरानी हुई।वो… बैगलेस शनिवार -मीरा सिंह “मीरा”Read more
जहर – संजीव प्रियदर्शी
सुखाराम ने बजरंगी को अपने घर बुलवाकर कहा-‘ बजरंगी भाई, इस बार कपास की खेती कर लो,चाँदी काटोगे। और हां, खेती में जितने भी रुपये लगेंगे सब मैं दे दूंगा।… जहर – संजीव प्रियदर्शीRead more
चरित्रहीन”-02 -श्री विमल कुमार”विनोद”
एक गाँव में सुशीला नामक एक 20 वर्षीय औरत जिसकी शादी रामू नामक एक साधारण आदमी से हुई थी।रामू एक साधारण मजदूर था जो कि प्रतिदिन मजदूरी करके शाम को… चरित्रहीन”-02 -श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
परंपरागत संस्कृति की झलक- श्री विमल कुमार”विनोद”
ग्रामीण सामाजिक परंपरा एवं संस्कृति पर आधारित श्री विमल कुमार”विनोद” लिखित लघुकथा “परंपरागत संस्कृति की झलक”प्रस्तुत है।मोहन नामक एक शहर के रहने वाले शिक्षक की नियुक्ति ग्रामीण क्षेत्र में हो… परंपरागत संस्कृति की झलक- श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
दास्तां-ए-जिन्दगी – श्री विमल कुमार”विनोद”
सोहन नामक एक छोटा सा बालक, जिसका जन्म एक साधारण निर्धन परिवार में हुआ था।वह बालक बचपन में तो पढ़ने-लिखने में कम अपने दोस्तों के साथ खेलने कूदने में अधिक… दास्तां-ए-जिन्दगी – श्री विमल कुमार”विनोद”Read more
दुःख में छिपा सुख- श्री विमल कुमार “विनोद”
आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व की बात है,किसी गाँव में एक मध्यम वर्गीय परिवार था,जिसमें परिवार के मुखिया रेलवे में टाॅली मैन की साधारण सी नौकरी कर रहे थे,कम… दुःख में छिपा सुख- श्री विमल कुमार “विनोद”Read more
बेवकूफ – दया
देर रात अचानक ही रामाकांत जी की तबियत बिगड़ गयी,आहट पाते ही उनका बेवकूफ बेटा उनके सामने था।माँ ड्राईवर बुलाने की बात कह रही थी, पर उसने बोला – अब… बेवकूफ – दयाRead more
नमक हराम -संजीव प्रियदर्शी
‘रमेश बिल्कुल नमक हराम निकला। कितना समझाया था कि बाबूजी को घर पर रखकर उनकी अच्छी तरह देखभाल किया करना। परन्तु उसने तो बाबूजी को वृद्धाश्रम में ले जाकर छोड़… नमक हराम -संजीव प्रियदर्शीRead more