अमीर लोगों को लगता है कि मैं बड़ा हूँ। अधिक पढ़े लिखे लोगों को लगता है कि मैं किसी से कम नहीं, परन्तु दिलचस्प बात यह है कि दरअसल बड़ा वही होता है जिसका दिल बड़ा होता है, जो किसी की भलाई करना जानता है, जिसकी बुद्धि निश्चयात्मक होती है, जिसमें सुख-दुःख की अनुभूति सभी प्राणियों के लिए होती है और जो विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म के मार्ग को नहीं छोड़ता, सच में वही बड़ा और आदर पाने के योग्य होता है।
अनुप्रीत गरीबी में भी खुशहाल था। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहती। लोगों की सेवा में उसका प्रेम जब उमड़ कर सामने आता तब लोगों की आँखें फटी की फटी रह जातीं। इंसानियत क्या होती है , उसमें उसकी समझ बड़ी गहरी थी ।
वह जाति धर्म से अधिक इंसानियत का पुजारी था। किसी के तकलीफ में वह बिना बुलाए शरीक हो जाता पर किसी के सुख के समय बिना बुलाए नहीं जाता था। समाज सेवा और मर्यादित जीवन ने उसे बहुत से लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया था। वह अपने इन सद्गुणों का कभी प्रचार नहीं किया। दरअसल अच्छे लोग कभी भी अपनी प्रशंसा खुद नहीं करते।
अधिकांश लोग उसकी बुद्धि, विवेक और दूसरों के दुःख में सहायता करने के लिए उसे दिल से धन्यवाद देते परन्तु कुछ लोग ऐसे भी थे जो उसे नापसंद करते और उसे हेय दृष्टि से देखते।
कुछ लोग धन के मद में चूर रहते हैं तो कुछ लोग अधिक जन होने से इतराते हैं पर असली इंसान में लोगों की सहायता करने की भावना बलवती होती है और ऐसा करने से रोक पाना किसी के लिए भी असंभव प्रतीत होता है। जीवन की कटु सच्चाई यही है कि एक दिन इकट्ठा किए गए और बनाए गए सभी प्रकार की संपत्तियों को छोड़कर मनुष्य को जाना पड़ता है। अतः विवेकी पुरुष अच्छे कार्यों और परिष्कृत विचारों का सच्चा परिपोषक होता है। उसके पास उसकी असली संपत्ति केवल पर उपकार और समाज सेवा ही होती है।
अनुप्रीत की पत्नी मनोरमा भी नेक दिल की इंसान थी। उसे भी दूसरों की सेवा, सहायता करने में दिल लगता। उसके दोनों बच्चे बड़े होशियार थे। एक का नाम सुजीत और दूसरे का अजित था। वे दोनों कॉलेज की पढ़ाई पढ़ रहे थे। पढ़ाई समाप्ति के कुछ ही महीनों बाद उन दोनों की नौकरी लग गई थी। गाँव में चर्चा होने लगी कि देखो पुण्य का फल कितना मीठा होता है। गाँव के अन्य बहुत से बच्चे पढ़ लिखकर बेरोजगार होकर इधर-उधर घूमते रहते हैं जबकि अनुप्रीत के दोनों बेटे ने तो कमाल ही कर दिया, यह सब अनुप्रीत के विचारों और सुकर्मों का ही प्रतिफल तो है।
अब अनुप्रीत दोनों बेटे की शादी कर और भी घर से निश्चिंत हो चुका था। अब वह पहले से भी अधिक समाज सेवा और परोपकार में अपना दिल लगाने लगा था और उसका साथ देने के लिए उसकी धर्मपत्नी मनोरमा भी उससे पीछे नहीं थी।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा , जिला- मुज़फ्फरपुर