संदिग्ध आँखें-विजय सिंह नीलकण्ठ

विजय सिंह “नीलकण्ठ”

संदिग्ध आँखें 

          बाजार से लौटते समय जिग्नेश की बाइक के दाईं मीरर पर किसी गाड़ी के आने का प्रकाश दिखा जो बड़ी तेजी से आ रही थी कुछ ही क्षण में वह गाड़ी जिग्नेश के बिल्कुल पीछे आ गई और देखते ही देखते वह प्रकाश दो बड़े सुंदर और आकर्षक आंखों में बदल गए। ऐसा देखकर जिग्नेश डर गया लेकिन हिम्मत करके अपनी गाड़ी को चलाते हुए एक छोटे से पुल को पार किया। पुल के दूसरी तरफ छोटा-मोटा बाजार था जहाँ रुककर उसने चाय पी लेकिन आँखों का दृश्य उसके मन में पूरी तरह समा चुका था।
          चाय पीकर जैसे ही उठकर अपनी गाड़ी पर बैठा कि पीछे से आवाज आई जिग्नेश भैया मैं भी गांव चलूँगा। रितेश जो जिग्नेश का पड़ोसी था उसकी बाइक पर आकर बैठ गया। जिग्नेश भी मन ही मन खुश था और अंदर का डर भी गायब हो चुका था। एक दो किलोमीटर बढ़ने के बाद पुनः वही दोनों आँखें बाइक के मीरर पर दिखने लगे। उसने रितेश से कहा थोड़ा मीरर में देख कर बताओ कि पीछे से गाड़ी भी आ रही है क्या? जिसके जबाव में रितेश ने कहा- मीरर में कुछ नहीं दिख रहा है। अब जिग्नेश और परेशान होने लगा। वह जब भी मीरर में देखता तो वही दोनों आँखें दिखती। किसी तरह घर पहुँचा और खाना खाकर अपने कमरे में सोने चला गया लेकिन सोने से पहले वह ड्रेसिंग टेबल के आईने के पास जाकर खड़ा हुआ।
          वह यह देखकर अवाक रह गया कि वही दोनों आँखें आईने में दिख रही थी जो धीरे-धीरे एक सुंदर लड़की की आकृति में बदल चुका था। जिग्नेश डर के मारे कांपने लगा और अपनी दोनों आँखें बंद कर ली। पुनः जब आँखें खोली तो वही दृश्य। उसने धीरे से डरते हुए पूछा तुम कौन हो और मेरा पीछा क्यों कर रही हो? आँखें मैं तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ने वाली रति नाम की लड़की हूँ।
जिग्नेश : कौन रति?  कैसी रति?  मैं किसी रति को नहीं जानता।
रति : मैं वही रति हूँ जिसकी आँखों की सुंदरता पर तुम फिदा रहते थे और मुझसे बहुत प्यार भी करते थे। (जिग्नेश बहुत सोचता है लेकिन कुछ याद नहीं आता) जिग्नेश : मैं किसी रति को नहीं जानता। प्लीज यहाँ से चली जाओ।
रति : नहीं मैं तब तक यहाँ से नहीं जाऊँगी जब तक तुम मुझे उस चुड़ैल के घर तक नहीं पहुँचा दोगे जिसने मुझे तुमसे अलग कर तुमसे शादी की और अपने दूसरे प्रेमी से मिल कर मेरी आँखों और तुम्हारे चेहरे पर तेजाब डालकर जला कर मौत के घाट उतार दिया था।
जिग्नेश : मुझे कुछ याद नहीं। तुम किसकी बात कर रही हो?
रति : उसी सुविधा की जो अभी अपने भरतार के साथ रह रही है।
जिग्नेश : मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। चली जाओ यहाँ से और फिर यहाँ कभी मत आना।
(यह सुनकर रति फूट-फूट कर रोने लगती है)
जिग्नेश : क्यों क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?
रति : जब तुम ही मेरी मदद नहीं करोगे तो मैं किसके पास जाऊँ? कहाँ जाऊँ? किससे मदद माँगू?
(जिग्नेश चुप हो जाता है)
जिग्नेश : चुप हो जाओ।
(अब जिग्नेश के दिल में भी रति के प्रति आत्मीयता के भाव जगने शुरू हो चुके थे)
रति : तो मदद करोगे न मेरी?
जिग्नेश : बोलो क्या करना है?
रति : तुम वलीदपुर गांव चलो। वहीं वह चुड़ैल रहती है। तुम किसी तरह मुझे उसके घर के दरवाजे के अंदर प्रवेश करा दो फिर बाकी का काम में स्वयं कर लूंगी। जिग्नेश : क्यों तुम स्वयं दरवाजे से प्रवेश नहीं कर सकती?
रति : उस चुड़ैल ने मुझसे बचने के लिए दरवाजे पर एक ताबीज टाँग कर रखी है साथ ही स्वयं के गले में भी एक ताबीज पहने रख रहती है जो केवल शौच जाते समय खोलकर घर के खूंटी पर टाँग देती है लेकिन दरवाजे पर हमेशा वह ताबीज टँगा रहता है जिस कारण में प्रवेश नहीं कर पाती।
जिग्नेश : ठीक है! मैं वह ताबीज वहाँ से हटा दूँगा लेकिन बाकी किसी भी मदद की आशा नहीं रखना।
रति : ठीक है बाबा! वह मन ही मन काफी प्रसन्न थी। (अगले दिन जिग्नेश “सुविधा” के घर के दरवाजे पर जाकर वह ताबीज चुराकर चला जाता है)
सुविधा : जानते हो मानव आज कुछ अटपटा सा लग रहा है। कुछ अनहोनी होने वाला हो ऐसा प्रतीत हो रहा है।
मानव : आज सुबह-सुबह तुम्हें क्या हो गया है सुविधा?
सुविधा : आज एकाएक मुझे ऐसा लगा कि रति और जिग्नेश मुझसे मिलने आए हैं।
मानव : तुम पागल हो गई हो उन दोनों को तो हम लोगों ने अपने हाथों से तेजाब से जला कर मार डाला था।
सुविधा : वही तो! लगता है कुछ गड़बड़ होने वाला है। (तभी वह अपनी ताबीज कमरे की खूंटी पर टाँग कर शौचालय में प्रवेश करती है। इधर मानव भी दरवाजे पर चला जाता है। तभी रति चापाकल पर सुविधा की प्रतीक्षा कर रही होती है। सुविधा स्वयं से चलो अब जल्दी-जल्दी हाथ पैर धोकर ताबीज पहन लेती हूँ।)
रति : अब वह समय कब मिलने वाली है तुमको?
सुविधा : रति, मैंने तुम्हें मार दिया था तो तुम यहाँ कैसे प्रकट हो गई।
रति : मैं अकेली नहीं हूँ, जिग्नेश भी है।
(तभी जिग्नेश भी आ जाता है और सुविधा को स्वयं के मारने का कारण पूछने लगता है। लेकिन रति को तो जल्दी थी उसने तुरंत सुविधा का गला दबोच लिया और अपने नुकीले नाखूनों की मदद से उसकी दोनों आँखें निकाल ली और तड़पता छोड़ कर दोनों वहाँ से चले गए। कुछ देर बाद जब मानव आया तो सुविधा को मृत देखकर अचंभित हो गया जब आँखों पर नजरें गई तो आश्चर्यचकित हो गया और वह सारी घटना याद आ गई कि किस तरह दोनों ने मिलकर जिग्नेश और रति की हत्या की थी जिसका बदला रति ने ले लिया था। अब जिग्नेश रति को जाने से रोकने लगा कि नहीं अब मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा।
रति : नहीं जिग्नेश मैं एक आत्मा हूँ। मेरा और तुम्हारा मिलन संभव है।
जिग्नेश : मैं तुम्हारे लिए जान देने को तैयार हूँ लेकिन दुबारा तुम्हें छोड़ नहीं सकता। तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती।
रति : नहीं यह संभव नहीं है। अब मेरा बदला पूर्ण हो चुका है। मैं इंदर नामक आदमी के घर में जन्म लूँगी। यदि मेरे जन्म लेने से बड़े होने तक मेरी प्रतीक्षा करोगे तभी मैं तुम्हारी हो सकती हूँ।
          जिग्नेश भी उस समय किशोर ही था। पड़ोष के गाँव में हीं इंदर को दो-तीन दिन बाद ही एक लड़की हुई जिसका नाम स्वयं उसकी माँ ने रति ही रखा। जैसे ही रति एक साल की हुई जिग्नेश भी अपनी मौसी के यहाँ जाकर रहने लगा और प्रतिदिन रति को देखने चला जाता। एक दिन मौसी से जिद करके रति को अपनी गोद में लेने को कहा फिर जिग्नेश रति को अपनी गोद में लेकर प्यार देने लगा। रति भी जिग्नेश की गोद में ही रहना पसंद करती। जिग्नेश के जाते ही जोर जोर से रोने लगती। फिर धीरे-धीरे वह बड़ी हुई और सोलह साल का होते ही उसने अपने माता-पिता से जिग्नेश से विवाह कर देने की बात कही जिस पर माता-पिता भी राजी हो गए और दोनों की शादी कर दी गई अब दोनों खुशी पूर्वक जीवन बिताने लगे।
विजय सिंह “नीलकण्ठ”
विजय सिंह “नीलकण्ठ”
सदस्य टीओबी टीम 
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