मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार हीं जीवन में खर्च करना चाहिए। ऐसा नहीं कि आमदनी अठन्नी हो और हम खर्चा रूपया करें। अपनी आमदनी के हिसाब से हीं अपना शौक पूरा करना चाहिए। एक नोट बुक में अपनी छोटी -मोटी वस्तुओं से लेकर हर बड़ी वस्तुओं का हिसाब-किताब रखें और देखें कि ये हमारी आय के अनुकूल है या नहीं। जरूरत के अनुसार आप बढ़ा और घटा सकते हैं। नहीं तो जो बेहिसाब चलते हैं उनके पास कर्ज़े लेने, भीख माँगने की नौबत आ जाती है और परिवार में चैन – सुख सब खत्म हो जाता है। वे हमेशा यही कहते रहते हैं कि “जबतक जिओ सुख से जिओ, ऋण लेकर घी पियो”। ऐसे में बच्चे नहीं देखते हैं कि हमारे माता-पिता मजदूरी करते हैं, दूसरे के घर काम करते हैं और हम उसका नाजायज फायदा उठाते हैं। वो फैशन वाले कपड़े पहनते हैं, हाई-फाई रहते हैं उन्हें अन्दाजा नहीं होता कि जिन पैसों पर हम ऐश कर रहे वह कितना मुश्किल से आता है। इस तरह माँ- बाप के पैसों को उड़ाकर बच्चे नालायक और निकम्मे बन जाते हैं।वह पैसे की सही उपयोगिता को नहीं समझ पाते। वहीं दूसरी ओर कुछ बच्चे अपने माता-पिता की मेहनत को समझते हुए हिसाब से चलते हैं, और अपनी आवश्यकतानुसार रूपयों का सही उपयोग करते हैं ,वही बच्चे जीवन में आगे बढ़ते हैं और कुछ बनते हैं। हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि-” चाएल चलि सादा जे निमहे बाप दादा”! मतलब अपना चलन सादगी से इस तरह चलो जो बाप से दादा बनने तक निभा सको। जीवन सादा हो और विचार ऊँचे होने चाहिए। यही जीवन की असली शिक्षा है। इसलिए तो कहा गया है- अपनी पहुँच बिचारि कै करतब करिये ठौर, तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर।
अपने सामर्थ्य की सीमा जानकर हीं कोई कर्म-धर्म करना चाहिए। जितनी बड़ी चादर हो हमें उतने हीं दूर पैर फैलाना चाहिए।
मनु कुमारी
‘विशिष्ट शिक्षिका’
मध्य विद्यालय सुरीगाँव, बायसी ,पूर्णियाँ, बिहार