एक बार नरेंन्द्रनाथ ( स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम ) रामकृष्ण परमहंस से मिलने के लिए दक्षिणेश्वर ( कोलकाता ) पहूँचे । कुछ देर तक बातचीत के बाद वे उनसे से काफी प्रभावित हुए । उन्होंने उनसे पूछा , ” आपने भगवान को देखा है ? “
परमहंस जी ने उत्तर दिया ,” हाँ , देखा है और बिल्कुल वैसे ही देखा है जैसे तुम्हें देख रहा हूँ । “
नरेंद्रनाथ बहुत ही चकित हुए । उन्होंने अगला प्रश्न पूछा , ” क्या आप मुझे भगवान के दर्शन करा सकते हैं ? “
परमहंस जी ने कहा , ” हाँ जरुर , अभी लो । ” कहकर उन्होंने अपने पैर का अंगूठा नरेंन्द्रनाथ की छाती से टिका दिया । लगा कि प्रलय आ गया है और नरेंद्र उसमें डूबते जा रहे हैं । पल भर में ही उन्हें सत्य का साक्षात्कार हो गया ।
नरेन्द्रनाथ उनके पैर पर गिर पड़े और उनकी आँखो में आँसू आ गये । उन्होंने कहा , ” महात्मन , मुझे अपना शिष्य बना लीजिए और मुझे अपने चरणों में स्थान दीजिए । आज से मैं आपका दास हूँ । “
परमहंस जी ने उन्हें उठाकर गले से लगा लिया । बाद में यही नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुए जिन्होंने वैदिक धर्म का ध्वजा देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फहराया और भारत को विश्व पटल पर बहुत ऊंचा और सम्मानित स्थान दिलवाया ।
सुधीर कुमार,
मध्य विद्यालय शीशागाछी ,
प्रखंड टेढ़ागाछ , जिला किशनगंज , बिहार