(राष्ट्रीय बालिका दिवस पर श्री विमल कुमार”विनोद” की प्रस्तुति।)
23 वर्षीय मोहन एक सीधा- साधा खूबसूरत लड़का जो कि कर्मठ लेकिन गरीब परिवार में जन्म लिया था।जबकि शोभा नामक एक साँवली लड़की जो कि अमीर तथा दबंग खानदान में जन्म ली थी।देखने में साँवली होने के कारण इसकी शादी नहीं हो पा रही थी।आगे चलकर शोभा के परिवार वालों ने मोहन के साथ शोभा की शादी कर दी।पारिवारिक जीवन जीते हुये शोभा एक पुत्री को जन्म देती है जो देखने में अपने माता की तरह ही थी।बेटी की जन्म के बाद से ही मोहन और शोभा बहुत उदास रहती थी तथा पारिवारिक जीवन बहुत ही तनाव ग्रस्त रहता था।बेटी का जन्म तथा परिवार में बेटी की शादी को लेकर मानसिक तनाव से ग्रसित होकर शोभा अपने नवजात शिशु को लेकर घर से किसी को बिना बोले सुने ही बाहर निकल गई।जुलाई का महीना था,एक जगह”वन,पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन विभाग”की ओर से”वन-महोत्सव”कार्यक्रम चलाया जा रहा था,जहाँ पर वन विभाग के साहेब का भाषण चल रहा था कि आपको वृक्ष लगाना चाहिये क्योंकि वृक्ष जीवन के लिये बहुत लाभदायक है।वन विभाग आपको वृक्ष लगाने के लिये आमंत्रित करती है तथा सरकार के द्वारा मुख्यमंत्री जन वन योजना के तहत वृक्ष उपलब्ध करती है।आप किसी भी शुभ काम को करते समय वृक्ष लगाइये तथा अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करिये।वृक्ष आपको धन कमाने का अवसर प्रदान करती है।जीवन में आर्थिक बोझ से मुक्ति दिलाने में वृक्ष ही आपको सहयोग प्रदान कर सकती है।आप बेटी के जन्म के शुभ अवसर पर वृक्ष लगाइये जो कि उसकी शादी के समय आपको एक सगे-संबंधी की तुलना में अधिक सहयोग कर सकती है।शोभा जो कि बेटी के जन्म को लेकर पारिवारिक तथा मानसिक तनाव से ग्रसित घर से भागकर जा रही थी,वन विभाग के साहेब के द्वारा वृक्ष लगाये जाने की बात ने उसको मनोगतयात्मक रूप से पुनः घर वापस आने के लिये प्रेरित किया तथा”वन-महोत्सव” कार्यक्रम से वृक्ष लेकर घर वापस लौट आती है तथा अपने जमीन पर दस पौधा लगाती है।आस पास के लोगों से इस संबंध में पूछे जाने पर वह अन्य लोगों को भी अपने बच्चे-बच्चियों के जन्म दिन पर वृक्ष लगाने के लिये कहती है।शोभा उस दस पौधे को अपनी बेटी की तरह ही लालन- पालन करती है।नित्य-प्रतिदिन सुबह उठकर वृक्षों को देखना तथा शाम के समय भी उसका देखभाल वह अपना दायित्व समझती है।अपने हाथों से लगाये गये पौधे को देखकर वह बहुत मुस्कुराती भी है।तथा अपने जीवन की खुशियाँ भी प्राप्त करती है।जब कभी घर में।जलावन की लकड़ी नहीं रहने पर वृक्ष अपने आप ही सूखी लकड़ियों को गिरा देता था।शोभा वृक्षों को अपने पुत्र के समान समझती थी तो वृक्ष भी शोभा को अपनी माँ की तरह मानते थे।वृक्ष बहुत ही दयालु होते हैं,वह आपको सुन्दर-सुन्दर फल,फूल,जलावन की लकड़ियां, फर्नीचर के लिये लकड़ी,शुद्ध वायु,के साथ- साथ पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त भी बनाते हैं।
समय बदलता गया एक दिन अचानक मोहन को चक्कर आती है और उसकी मृत्यु हो जाती है।इस बीच शोभा की बेटी भी बड़ी हो रही है,जिसे ब्याह करने के लिये शोभा के पास कुछ भी नहीं है।एक दिन जब शोभा निराश होकर बैठी हुई है,उसी समय उसके मन में वन विभाग के साहेब के द्वारा बतायी गयी बातें कि जब आपकी बेटी बड़ी हो जायेंगी,उस समय 18 वर्ष में पेड़ भी परिपक्व हो जायेंगे,जिसे बेचकर आप अपनी बेटी की शादी में खर्च कर सकते हैं,लेकिन शोभा को लगता है कि वृक्ष तो हमारे पुत्र के समान हैं,इसे कैसे काटा जाय।फिर वन विभाग के साहेब की बात याद आती है कि आप इन वृक्षों को काटने के बदले नये वृक्षों को लगा सकते हैं।इस प्रकार शोभा अपनी बेटी की शादी में इन वृक्षों को बेचकर बहुत बड़ी रकम प्राप्त कर लेती है तथा बेटी की शादी आन-बान और शान के साथ करती है।
इस प्रकार हमलोगों को भी वृक्ष लगाकर विपत्ति की घड़ी में अर्थ
अर्जन करने की कोशिश करनी चाहिए ।आइये हमलोग अधिक- से-अधिक संख्या में वृक्षारोपण कर इस पृथ्वी को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लें।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” भलसुंधिया,गोड्डा(झारखंड)।