चंचल वन में जलेबी दौड़ का आयोजन किया गया। राजा शेर सिंह ने सबको कबूतर काका द्वारा यह संदेश भिजवाया। सभी जानवरों में उत्साह का माहोल था। खेल का नियम यह था कि कुछ दूरी पर जलेबी रखे होंगे दौड़ लगा कर जाना है और वहां से जलेबी खा कर वापस विजय लक्ष्य तक आना है जो सबसे पहले आया वही विजेता होगा और उसे ट्रॉफी के साथ इनाम भी दिया जाएगा। सभी इस जलेबी दौड़ में भाग लेना चाहते थे। चमकी लोमड़ी, रैबी खरगोश, मंकु बन्दर, बियरी भालू , और जेमी जिराफ सब उत्साहित थे। सब सोच रहे थे कि मैं रेस जीतूंगा मैं इनाम ले जाऊंगा लेकिन मंकु बन्दर को तो बस इस बात की खुशी थी कि उसे जलेबी मिलेंगे खाने को। और वह मन ही मन बड़ा व्याकुल था कि कब उसे जलेबी मिले।
लेकिन चमकी लोमड़ी को अलग ही चिंता खाए जा रही थी। वह सोच रही थी कि, रेस में डोडो कुत्ता भी भाग ले रहा है और वो रेस जीत जाएगा। इसके लिए वह डोडो को हराने की तरकीब सोचने लगी। देखते देखते रेस का दिन भी आ गया।
चमकी लोमड़ी डोडो से घमण्ड भरे स्वर में – रेस तो मैं ही जीतूंगी चाहे कुछ हो जाए।
डोडो – देख चमकी जीत हार तो चलते रहता है लेकिन सबसे अहम बात है रेस में भाग लेना और जीतने की कोशिश करना। बाकी जो होगा देखा जाएगा।
डोडो के इस दो टूक जवाब से चमकी और बौखला गई। और चमकी मन ही मन कहती है, डोडो जो भी हो जाए मैं तो तुझे रेस जीतने नहीं दूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना परे।
और इतना कह कर वो चुपके से डोडो के पानी के बोतल में कुछ दवा मिला देती है।
चंचल वन के मैदान में आज पूरा जंगल परिवार इकट्ठा है। सब एक दूसरे का हौसला बढ़ाने आएं हैं। जगह जगह पर पेड़ के पत्तो और फूलों से झालरें सजाई गईं है। आस पास के पेड़ों पर धावकों के फोटो भी लगें है। सब बहुत ही खुश हैं।
कुछ ही देर में रेस शुरू हो जाता है।
वन, टू, थ्री…….स्टार्ट……..
सभी ने दौर लगाई……
अरे यह क्या….. मंकु बन्दर सबसे आगे।
सभी मंकु का हौसला बढ़ाने लगे मंकु,,,, मंकु,,,, मंकु
उधर मंकु…..मैं सबसे पहले जलेबी तक पहुँचूँगा चाहे कुछ हो जाए लेकिन यह क्या अब वह पीछे हो रहा था इतने में उसने छलांग लगा दी और जा कर चमकी लोमड़ी के पीठ पर बैठ गया।
चमकी – अरे बन्दर के बच्चे तू कहाँ से टपका?
चमकी अब भी दौड़े जा रही थी वह रुक भी नही सकती थी वरना वह पीछे हो जाती।
चमकी गुस्से में कहती है…अरे नालायक मंकु उतर मेरे पीठ से मुझे हराएगा तू….।
मंकु कहता है – अरे चमकी मौसी मुझे रेस न जितनी बस जलेबी खानी है। कोई और पहले पहुंच कर जलेबी खत्म न कर दे बस मुझे जलेबी तक पहुंचा दो। वैसे भी तुमने चंचल वन के जानवरों को परेशान करके बहुत पाप किये है। आज मुझे जलेबी खिलाकर थोड़ा पुण्य कमा लो मौसी।
चमकी गुस्से से अपना पीठ झटकती है और मंकु जा कर सीधे हाथी दादा के पीठ पर गिरता है।
मंकु – अरे बाप रे ये कहाँ आ गया मैं, तभी उसे एहसास होता है कि वह हाथी के पीठ पर गिर है। ओहो हाथी दादा आप हो।
हाथी दादा तो अपने चाल में मस्त चले जा रहे थे, उन्हें अपने ऊपर मंकु के गिरने से कोई फर्क भी नहीं पड़ा।
लेकिन मंकु कहता है – अरे दादा जल्दी दौड़ लगाओ वरना यही चाल रही तो अगले साल भी नहीं पहुंचेंगे जलेबी तक। लेकिन हाथी तो ठहरा हाथी। कहता है अरे बिटवा मैं तो बस वजन कम करने के लिए भाग लिया हूँ दौड़ में। तेरी दादी कहती है बहुत मोटा हो गया हूँ मैं। इसलिए दौड़ में भाग ले रहा हूँ। और वैसे भी रेस में भाग लिया वही बड़ी बात है। और तू बता… दूसरे की पीठ में बैठ कर रेस जीतेगा तू?
मंकु कहने लगा – मुझे रेस नहीं जीतनी जलेबी खानी है बस। जल्दी चलो दादा।
उधर डोडो कुत्ता सबसे आगे बना हुआ था, चमकी सोचने लगी मेरी दवा का असर क्यों नहीं हो रहा। सारे जानवर एक स्वर में डोडो…डोडो कह के डोडो का उत्साह बढ़ा रहे थे।
मंकु हाथी से कहता है- दादा रहम करो मुझ पर, जल्दी चलो जलेबी खत्म हो जाएगी।
हाथी दादा भी मस्ती में – तुझे जलेबी ही खानी है ना… और ये क्या….? अपनी सूढ़ में लपेट कर उसे दूर फेकतें है और ऐसे फेकतें हैं कि वह सीधे जलेबी की लड़ी के पास जा गिरता है……
मंकु – हा……य मेरी कमर….. अरे जलेबी मिल गई…. बड़ा खुश हुआ मंकु। और वह आराम से वहीं बैठ जाता है जलेबी खाने।
इधर डोडो सबसे पहले जलेबी खा कर अपने निर्धारित विजय लक्ष्य पर सबसे पहले पहुंच जाता है। चमकी लोमड़ी तीसरे नंबर पर आती है।
और पूरा जंगल डोडो, डोडो के स्वर में गूंज उठता है।
लोमड़ी दूर से देख रही होती है तब ही उसके पास जा कर डोडो कहता है क्यों चमकी तुम सोच रही हो न कि तुम्हारे दवा वाले पानी का असर क्यों नहीं हुआ मुझ पर?
चमकी गुस्से में – सही कहा तुमने बिल्कुल यही सोच रही हूँ मैं।
तभी पैरी तोता वहां आता है – चमकी मौसी तुम्हे दवा मिलाते मैंने देख लिया था और डोडो भैया से कह दिया था। और मैं तो शेर सिंह को भी यह कहने वाली थी लेकिन डोडो भैय्या ने रोक लिया, कहा कि तुम सच मे तेज दौड़ लगा सकती हो इसलिए तुम्हारी रेस डोडो भैय्या ख़राब नहीं करना चाहते थे।
चमकी अपने किये पर शर्मिंदा थी और डोडो से कहती है- मुझे माफ कर दो डोडो मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया।
डोडो कहता है- जाने दो चमकी सुबह का भुला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। और याद रखना चीटिंग वाली जीत से कभी आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती। इसलिए हमेसा मेहनत के बल पर जीतना सीखो। हार जीत तो खेल का हिस्सा है बाकी हमने कितनी कोशिश की यही मायने यह रखता है।
निधि चौधरी
किशनगंज, बिहार।