पागल कौन?” -श्री विमल कुमार”विनोद”

Bimal Kumar

श्री विमल कुमार”विनोद”लिखित
नरेश नामक एक छोटा सा बालक जो कि बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था जिसका जन्म एक साधारण से परिवार में हुआ था।बचपन से ही लोग कहा करते थे कि यह बालक जीवन में आगे चलकर बहुत तरक्की करेगा।इसके माता-पिता जो कि एक
साधारण परिवार से आते थे,जो कि मजदूरी करके भी अपने बच्चे नरेश को पढ़ाना चाहते थे।एक बार जब नरेश का जन्म दिन मनाया जा रहा था घर में जन्मदिन मनाये जाने की तैयारी धूमधाम से चल रही थी, नरेश के पिता जी कि मजदूरी करने के बाद उसके जन्म दिन के लिये बहुत सारी मिठाई तथा कपड़े लेकर आ रहे थे।नरेश के पिता जी अब अपना घर पहुँचने ही वाले थे तभी विपरीत दिशा से तेज रफ्तार से आ रही गाड़ी के चपेट में आ जाने के चलते उसका आकस्मिक निधन हो जाता है।उसके बाद तो नरेश के घर में जन्मदिन की खुशी के जगह पर मातम सा छा जाता है, मानो कि विपत्ति का पहाड़ सा टूट पड़ा है।
इसके बावजूद भी उसकी माता ने अपने जीवन संग्राम से हार नहीं मानी
और मेहनत मजदूरी करके उसको पढ़ाने की कोशिश में जुट गयी। इसके बावजूद भी नरेश के परिवार पर से विपत्ति का जाना न रूका और कुछ ही दिनों के बाद भयंकर बिमारी की चपेट में आकर उसकी माता का भी निधन हो जाता है।अपने सिर से माता-पिता का साया उठ जाने के बाद नरेश जो कि बहुत ही होनहार बालक था की आगे की पढ़ाई रूक जाती है।इसके बाद मोहन मजदूरी करने लगता है,लेकिन यह अपनी आदत से मजबूर होकर लोगों को रोक-रोककर शिक्षा तथा दर्शन की बातों को कहने में ही मशगूल हो जाता है,जिसके चलते लोग इसको काम में लगाने से इंकार करने लगते हैं।इसके बाद तो नरेश की स्थिति “भीखमंगा”जैसी हो जाती है।अपनी क्षुधा को मिटाने के लिये वह दुकानों के पास जाकर भीख मांग कर खाने
लगता है।जहाँ लोग नरेश को पागल कहकर चिढ़ाने लगते हैं तथा इसपर पानी और पत्थर भी फेंकने लगते हैं।
इसे देखकर नरेश को अपने आप में बहुत ग्लानि होने लगती है कि आखिर मैंने कौन सा अपराध किया है जो कि लोग मुझ जैसे निर्दोष व्यक्ति को पागल कहते हैं।आखिर क्या मैं पागल हूँ,शिक्षा की बातें बताना यदि पागल कहलाना है तो
फिर ई संसार में अच्छा कौन है?
सड़कों पर भटकते हुये तथा भीख
मांगते हुये नरेश के माथे का बाल तथा दाढ़ी भी बड़ी-बड़ी सी हो गयी
है।नरेश अपने जीवन की दुर्दशा को देखकर बहुत अफसोस करता है तथा
ईश्वर को कोसते हुये कहता है कि मैंने
आपका क्या बिगाड़ा था जो कि मेरे जन्मदिन के समय जब मेरे पिता जी हमको तिलक लगाकर आशीर्वाद देते उसी समय मेरे सिर से पिता जी का साया छीन लिया।इसके बाद जब मेरी माता जी मेहनत-मजदूरी करके मेरा भरण-पोषण करती थी,लेकिन उसको छीनकर मुझे”टूअर” सा बना दिया।फिर मैं जब लोगों के बीच शिक्षा तथा ज्ञान की बातें करता था
तो लोग मुझे पागल समझकर मेरे शरीर पर पानी फेंक देते थे तथा पत्थर से भी मारने लगते हैं।आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ?इन सभी बातों को याद करके वह माथे के बाल को पकड़कर चीखकर रोने लगता है।वह भूख से भी तड़प रहा है तभी उसकी नजर सड़क के किनारे सड़क किनारे फेंके गये कूड़े पर जाती है,जहाँ पर कुछ कुत्ते आपस में जूठा पत्तल को चाटने के लिये छीना झपटी कर रहे हैं।कुत्तों को जूठा के ढेर पर छीना-झपटी करते हुये देखकर नरेश जो कि पागलों की तरह भोजन के लिये छीना-झपटी करते हुये पत्तल को चाटने लगता है।नरेश उन जूठे पत्तल को चाटने के बाद इकठ्ठा करके आग लगाकर जला भी देता है।नरेश को जूठे पत्तल देखकर उधर से पार होने वाले लोग नरेश को पागल कहकर पुकारता है।लोगों के द्वारा नरेश को पागल कहे जाने से नरेश के अंदर का सोया हुआ जमीर जग उठता है और उन लोगों को कहता है कि” सुनो।भाई आपलोग तो मुझे पागल कहते हैं,लेकिन आप बताइये कि”पागल कौन” है? एक आपलोग जो कि अपने को संभ्रांत कहते हैं जो कि अपने घर के जूठे पत्तल तथा कचरे को सड़क के किनारे लाकर फेंक देते हैं।दूसरी ओर एक हम हैं जो कि आपके द्वारा फेंके गये कूड़े कचरों में फेंके गये पत्तल को चाटकर अपने पेट की क्षुधा को मिटाने का प्रयास करते हैं।पत्तल चाटकर खाने के बाद मैं सड़क के किनारे फेंके गये कचरे को सलाई की तिल्ली से जलाकर उसे साफ कर देता हूँ।आखिर
“पागल कौन”?
आलेख साभार-श्री विमल कुमार
“विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा
बांका(बिहार)।

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