माँ का साया- श्री विमल कुमार “विनोद”

Bimal Kumar

रबिया नामक एक साधारण परिवार की औरत जो कि बड़े अरमान के साथ अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देने के लिये उत्साह से ओत-प्रोत होकर उसके सकुशल इस धरा पर आने की राह देख रही है।   गरीबी की मार से जूझ रही रबिया के पति जी एक साधारण मजदूर हैः।अपनी मेहनत मजदूरी से किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।

दुर्भाग्यवश अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद रबिया की मौत हो जाती है। इसके बाद उस शिशु की जिन्दगी अनाथ तथा लाचार की तरह हो जाती है।माता की मृत्यु के बाद वह बच्चा भगवान के भरोसे जीने को मजबूर हो जाता है।लेकिन भगवान की माया का कोई अंत नहीं एक तो उस बच्चे की माता जी का देहांत हो जाता है तो

दूसरी ओर कोई-न-कोई सहारा उस अनाथ बच्चे के सामने आ जाती है।वह अनाथ बच्चा जब भूख से रोने लगता है तो कोई-न-कोई आकर उस बच्चे को स्तन पान करा देती है।धीरे-धीरे वह बच्चा बड़ा होते जाता है।उसके पिता जी उस बच्चे को बोतल में दूध भरकर पिलाने के बाद अपने काम पर चले जाते हैं। इसके बाद जब उसको भूख लगती तो वह भूख से रोने लगता है।उसे रोते देखकर एक उसके कभी-कभी एक बकरी उसके पास आ जाती है।वह बच्चा उस बकरी के स्तन को देखकर उसमें मुँह लगाकर स्तनपान करने लगता है।वह बकरी भी बहुत प्यार से उस बच्चे को अपना बच्चा समझकर स्तनपान कराती है तथा वह बालक भी उस बकरी को अपनी जीवन दायिनी माता समझकर अपनी क्षुधा को मिटा लेता है।धीरे-धीरे वह बालक 

अनाथ की तरह भटकता हुआ आगे बढ़ता चला जाता है।एक दिन वह जब रास्ते में जा रहा है तभी उसको

पैर में चोट सी लग जाती है।वह दर्द से कराहकर कहता है कि “माँ मुझे ठीक कर दो न!”कहकर वह जोर-शोर से रोने लगता है।तभी उस रास्ते से एक व्यक्ति जो पार हो रहा है उस बच्चे को देखकर वह व्यक्ति

पूछता है कि आखिर तुमको क्या हुआ है?इसपर वह बालक कहता है कि मेरे पैर में बहुत जोर से चोट लग गयी है।यह देखकर वह व्यक्ति उसे दवा देता है तथा वहाँ से वह चला जाता है।इसी तरह दिन गुजरता जा रहा है एक दिन वह बालक रास्ते चलते हुये  बहुत दूर निकल गया है तथा उसको बहुत जोर से भूख लग चुकी है।वह भूख से बिलख रहा है,वह सोच रहा है कि कहीं से उसे भोजन मिल जाता,उसकी क्षुधा तृप्त सी हो जाती।उसी समय उस रास्ते से एक वृद्ध औरत पार होकर जा रही है,जो कि उस बालक को रोते हुये देखकर कुछ देर के लिये रूक जाती है।वह वृद्ध महिला उससे पूछती है कि”ऐ बालक तुम क्यों रो रहे हो”?इस पर वह बालक कहता है कि बहुत जोर की भूख लगी हुई है,माता जी कुछ खाने का है तो खाने दीजिए न!यह सुनकर उस वृद्ध औरत का दिल विह्वल सा हो जाता है।उसके बाद वह औरत उसको अपने पास रखी हुई भोजन निकाल कर खाने को दे देती है,जिससे कि उसकी पेट की क्षुधा मिट सी जाती है।

बड़ा होने के बाद उस बालक की शादी हो जाती है।अब वह अपने परिवारिक जीवन में आकर अपनी माँ को भूल चूका है।एक दिन वह टहलते हुये गाँव के बगल के एक श्मशान की तरफ जा रहा है।जैसे ही वह श्मशान में प्रवेश करता है तथा उसकी पांव वहाँ पड़ती है,उससे एक आवाज सी निकलती है,”आह”।यह सुनकर वह चौंक सा जाता है और कहता है कि कौन,कौन हो आप?यह सुनकर वहाँ पुनः एक आवाज सुनायी देती है,”तुम्हारी माँ का साया”।यह सुनकर वह कहता है कि यह कहने का मतलब क्या है?तभी एक आवाज सी आती है कि”मैं तुम्हारी माँ की तड़पती आत्मा बोल रही हूँ “जो कि बचपन में तुम्हें जन्म देने के तुरंत बाद भगवान को प्यारी हो गयी थी।इस पर वह चीखकर कहता है कि नहीं,ऐसा हो नहीं सकता है।मैंने सुना है कि मेरी माता जी का देहांत मेरे जन्म लेने के तुरंत बाद ही हो गयी थी।इस पर वह भटकती आत्मा कहती है कि”हां-हां मैं ही हूँ जो कि आज तक तुम्हारे उपर आने वाली हर विपत्ति की “साया” बनकर तुम्हारी रक्षा करती रही हूँ”। इस पर वह बालक कहता है कि इसका मतलब!तब वह आत्मा कहती है कि जब तुम बचपन मेें भूख से बिलख कर रोता था तो मैं कभी नर्स का रूप धारण कर तुम्हें स्तनपान कराती थी तो कभी”बकरी”का रूप धारण कर अपना स्तनपान कराती थी।तुमको यह पता है न,कि जब राह चलते तुम्हारे पाँव में चोट लग गयी थी तो मैं ही एक राहगीर के रूप में आकर तुम्हें दवा दे गयी थी।उसके बाद एक दिन जब तुम रास्ते में जा रहा था और तुम्हें बहुत जोर से भूख लग गयी और भूख से बिलख रहा था तो एक वृद्ध औरत के रूप में मैंने ही आकर तुम्हे भोजन कराया था।

इन सभी बातों को सुनकर तो मानो उस बालक के दिमाग का तार-तार

झंकारने लगा।इसके बाद वह उस धरती को दंडवत प्रणाम करता है।तभी एक आवाज सी सुनाई देती है कि”तू जहाँ-जहाँ चलेगा,मेरा साया साथ होगा”।

आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” शिक्षाविद।

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