माहवारी समस्या भ्रांतियां निदान-रूचिका

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मासिक चक्र या माहवारी क्या है?

10 से 15 वर्ष की आयु की लड़की के अंडाशय हर महिने एक विकसित डिम्ब उतपन्न करना शुरू कर देते हैं जो अंडवाहिका नली द्वारा नीचे जाता है जो कि अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है।जब अंडा गर्भाशय में पहुँचता है उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है।ऐसा इसलिए होता है कि यदि अंडा उर्वरित हो जाये तो वह बढ़ सके और शिशु के जन्म के लिए उसके स्तर विकसित हो सके।यदि उस डिम्ब का पुरुष के शुक्राणु से सम्मिलन न हो तो वह स्राव बन जाता है जो कि योनि से निष्कासित हो जाता है,जिसे मासिक धर्म या माहवारी कहते हैं।
मासिक धर्म आमतौर पर 3-5 दिन तक चलते हैं और सामान्यतया 28 से 35 दिन के अंतराल पर आते हैं।यह आमतौर पर 8 से 17 वर्ष की आयु के दौरान प्रारंभ होती है ।सामान्यतया किसी लड़की की 11 से 13 वर्ष की आयु में मासिक धर्म प्रारंभ होते हैं और तकरीबन 3 से 5 दिन या 2 से 7 दिन तक चलते हैं।

मासिक धर्म के लक्षण
रक्तस्राव के अलावा मासिक धर्म के कुछ लक्षण भी उसके दौरान या बाद में भी दिखाई दे सकते हैं।
पेट में ऐंठन
पेट के निचले हिस्से में दर्द
पेट में सूजन
पीरियड्स से पहले कब्ज
मुँहासे
थकान
मूड में बदलाव
सिरदर्द
पेट फूलना
भोजन की कमी
स्तन दर्द
दस्त

पैड कितने समय में बदलें
मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना अतिआवश्यक होता है,यह आपके स्वास्थ्य और अन्य बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है।
भारत में आज भी कितनी महिलाएं मासिक धर्म के दौरान कपड़ा पत्तों और अन्य आसमान पदार्थो का उपयोग करती हैं,जो उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है।
इसलिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
रक्त से भींगने से पहले पैड बदल लें।
अपने प्रवाह के लिए सबसे कम शोषक पैड का उपयोग करें।
यदि कोई पुनःउपयोग पैड का उपयोग करती हैं तो उसे अच्छे से साफ करके प्रयोग करें।
योनि और आस पास के स्थान को स्वच्छ रखें
कभी भी एक साथ दो पैड का उपयोग न करें।
आरामदायक और साफ अंडरवियर पहनें।
मासिक धर्म और मासिक चक्र से जुड़ी समस्याएं-:
कभी कभी शारिरिक बदलावों और पोषक तत्वों के कारण कुछ समस्याएं भी उतपन्न हो जाती हैं,जो इस प्रकार हैं।
पीरियड्स के समय में भारी रक्तस्राव
पीरियड्स के दर्द
अप्रत्याशित या अनियमित पीरियड्स
परिमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम
ये सभी समस्याएं चिड़चिड़ापन उदासी महसूस करा सकती हैं और पेट में सूजन ,स्तनों में ढीलापन और दर्द का कारण बन सकती हैं।
माहवारी और समाज की सोच-महावारी जैसे विषयों पर बात करना आज भी समाज द्वारा बुरा माना जाता है।यही कारण है कि माहवारी को लेकर कई गलतफहमियां लंबे अरसे से चली आ रही हैं।
जैसे पीरियड्स के दौरान अछूत माना जाना,पूजा घर में प्रवेश निषेध, अचार नही छूना ,स्कूल नही जाने देना या फिर नहाने नही देना।
लेकिन घर माँ या घर के बुजुर्गों की होनी चाहिए कि किशोरावस्था में पहुँचने वाली लड़कियों को माहवारी और उनसे होने वाले बदलाव से अवगत कराएं।
हालाँकि अब स्थितियाँ बेहतर हो रही हैं स्कूलों में भी मीना मंच के माध्यम से लड़कियों को इनके बारे में इनसे जुड़ी समस्याओं के बारे में अवगत कराया जा रहा है।
माहवारी एक प्रकृति प्रदत्त प्रक्रिया है,इसको लेकर कोई भी झिझक संकोच नही होनी चाहिए और खुल कर इस पर बात करने का मौका मिलना चाहिए।

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