एक लघुकथा
कपड़े के दो डिब्बे पति मनोहर को देती हुई बोली-‘ एक में तुम्हारी पसंद के शर्ट-पैंट हैं और दूसरे में रामू के कपड़े।’ मनोहर डिब्बों को खोलने के पहले उसके रिसिप्ट देखने लगा। उसके कपड़े का मूल्य चार हजार दो सौ रुपये था जबकि रामू के दस हजार। रामू के कपड़े का बिल देखते ही उसका गुस्सा आसमान चढ़ गया। पत्नी से रोष में बोला-‘यह क्या? अब तो मेरी हैसियत एक नौकर के बराबर भी नहीं रह गई है? तुमने नौकरों को सिर चढ़ा रखा है।’ पति को क्रोध में देख सीमा मुस्कुरा कर जरा सहजता से बोली-‘ इसमें बुरा क्या है? रामू को इतने की जरुरत थी,सो ले लिया।’ मनोहर अभी कोई जवाब ढूंढता कि रामू आ गया। पहले तो वह इस उपकार के लिए सीमा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया फिर अपनी माहवारी से कपड़े के दाम कटाने का विश्वास दिला पैकेट लेकर जाने लगा। तभी सीमा उसे रोकती हुई बोली-‘ नहीं रामू, तुझे कपड़े के दाम देने की कोई जरूरत नहीं।याद है, मैंने कभी कहा था, जब तुम अपनी लाडली का विवाह करने लगोगे, कपड़े मैं दे दूंगी। बस उसी वचन का निर्वहन कर रही हूं।’ गृहस्वामीनि का अपने प्रति अगाध प्रेम देख रामू का दिल भर आया था जबकि मनोहर के मन में पत्नी के प्रति अब कोई मैल नहीं था।
संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च माध्यमिक
बरियारपुर, मुंगेर