जनता – संजीव प्रियदर्शी

Sanjiv

एक बार किसी राजा के कुछ सभासदों ने उनसे पूछ लिया- ‘सच्चा देवदूत, जनता क्या होती है? आजतक हमलोग इसके वास्तविक वजूद को देख-समझ नहीं पाये हैं। कृपया हमें संतुष्ट करें।’ उस देश के सभी जन अपने राजा को ‘सच्चा देवदूत’ कहकर पुकारते थे।
सभासदों के प्रश्न सुन पहले तो राजा कुछ क्षण विचारा फिर अभी बताता हूँ बोलकर अपने परिचारक से एक ऐसा मुर्गा लाने को कहा जिसे कई दिनों से भूखा-प्यासा रखा गया था।जब मुर्गा आ गया तब राजा ने उसका एक-एक पर उखाड़ना आरंभ कर दिया। हालांकि वह लघुकाय प्राणी दर्द से कुँकरुआता- बिलबिलाता, परन्तु राजा के चेहरे पर तनिक भी रहम के भाव नहीं दिखता।जब मुर्गे की सारी पाँखें उसकी देह से नोच ली गईं तब थोड़ी देर बाद उसके समक्ष कुछ अन्न के दाने फेंक दिया गया। मुर्गा घाव और वेदना से विकल होकर भी अत्यंत भूखा होने के कारण सामने फेंके गए दानों पर जैसे टूट पड़ा।
मुर्गे की इस विकट दशा देख सभासद द्रवित कंठ से बोल उठे।- ‘महाराज, यह तो मुर्गे के साथ घोर अन्याय है।’
सभासदों की बात सुन राजा बोले-‘ माननीय सभासदों,यही है आज की जनता।शासक वर्ग अनेक तरह के करों व दूसरे उपायों से जनता के लहू को निचोड़कर उसे इतना पंगु बना देते हैं ताकि वह अपनी भूख और पीड़ा के अतिरिक्त कुछ और सोचने की जुर्रत न कर सके ।’
जनता की इस करुण व्यथा देख सभासदों की आँखों से आंसू टपकने लगे थे,जबकि राजा के चेहरे पर अभी भी मुस्कान थी।

संजीव प्रियदर्शी

फिलिप उच्च मा०विद्यालय

बरियारपुर, मुंगेर

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