व्यथित पल-रुचि सिन्हा

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शीर्षक- व्यथित पल

बात लगभग 28-30 साल
पुरानी है ।तब मेरी उम्र 13-14 साल रही होगी । किशोरावस्था में प्रवेश किया तो हार्मोनल परिवर्तन होने लगे थे।शारीरिक से लेकर मानसिक बदलाव का आभास होने लगा था फिर भी कुछ चीजें समझ से बाहर थीं।मैं एक शादी समारोह में गई थी अपने शहर से बाहर ।पूरे परिवार के साथ ,आनंद का माहौल था ।मैं भी काफी खुश थी ।लोगों के बीच नृत्य ,संगीत का कार्यक्रम चल रहा था पर ये क्या, असहज सा महसूस हुआ ।मन कुछ अच्छा नही लग रहा था ।मैं वहां से उठ बाहर आई ।फ्रॉक के पिछले हिस्से में देखा तो लाल-लाल दाग दिख रहे थे ।मैं घबराई अरे, ये क्या ?जब ठीक से देखा तो लाल रक्त ।मन मे कई तरह के प्रश्न कौंध गए पर जबाब किससे मांगूं? समझ नही पा रही थी कि ये सब क्या है ?सभी शादी के माहौल में व्यस्त थे ,डर के मारे किसी से कुछ कह भी नही पा रही थी ।आज भी जब उस दिन की कल्पना करती हूं तो जैसे कांप सी जाती हूँ।चेहरे की सारी खुशी हवा हो चुकी थी ।कोई देख न ले इस वजह से खुद को औरों की नज़रों से बचाती हुई बार -बार अपने वस्त्र बदलती रही ।डर के मारे कहीं बैठ भी नही पा रही थी कि कहीं कुछ दाग लग गए और किसी ने कुछ पूछा तो क्या जबाब दूंगी ।तब माहवारी के विषय मे जानती भी नही थी और न ही आज की तरह हम अपने माता-पिता से खुलकर बात किया करते थे।मैं काफी तनाव में थी कि क्या करूँ? करीब दो दिन तो यूँ ही कष्ट में गुजर गए फिर तीसरे दिन मैंने इधर -उधर नज़र दौड़ाई की कहीं कोई कपड़ा मिल जाये तो शायद कुछ काम बने पर कुछ मिला नही ।अंत मे मैंने एक चादर ,जिसपर हम सब बैठे थे ,चोरी से फाड़ने की कोशिश करने लगी तभी अचानक मेरी मामी ने मुझे देखा लिया और पूछने लगीं की ये चादर क्यों?मैं जबाब न दे सकी बस आंखें डबडबा गई थी ।उन्होंने फिर प्यार से पूछा ,हिम्मत कर मैंने उन्हें सब बताया।वो मुस्कुराने लगी थी और बोली -बिटिया सयानी हो चली है ।फिर उन्होंने माहवारी के विषय मे एवं उसकी स्वच्छता के महत्व को बतलाया ।उन्होंने ही समझाया की मसिक धर्म कोई बीमारी या गुनाह नही है ।यह तो महिलाओं को सम्पूर्ण नारीत्व प्रदान करता है यह एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है जो महिला के शरीर को गर्भधारण के तैयार करता है ।मन ने धीरज धरा, राहत की सांस ली ।फिर मैं और मामी पास के दुकान में गए और सेनेटरी पैड खरीद कर लाया और तब से…..
आज इतने साल बीत जाने के बाद भी जैसे उस वक़्त का खौफनाक अनुभव आज भी झकझोर देता है ।पहले मां और अब एक शिक्षक भी ,इस नाते मैं माहवारी के विषय मे हमेशा बच्चियों के प्रति काफी संवेदनशील रहती हूं ।कक्षा हो या फिर एग्जामिनेशन हॉल ,बच्चियों की जरा सी असहजता पर मैं सक्रिय हो जाती हूँ और जानने का प्रयास करती हूं कि कहीं माहवारी की परेशानी तो नही ।कई बार तो परीक्षा के क्रम में भी तत्काल पैड मंगवा बच्चियों को दिलवाया हैं कि उस परिस्थिति का प्रभाव उनके परीक्षा पर न पड़े ।
आज भी, खास कर ग्रामीण परिवेश में मासिक धर्म को कलंक और वर्जनाओं की दृष्टि से देखा जाता है । बच्चियां इन मुद्दों पर बात करने से हिचकिचाती हैं पर मैं सदैव एक माँ ,एक दोस्त की भांति उनसे माहवारी की आवश्यकता एवं उसकी स्वच्छता पर खुल कर बात करती हूं ।जो तकलीफ मैंने अज्ञानता वश पाई वो हमारे बच्चों के साथ न हो बस इस बात का हमेशा प्रयास रहता ।यह हमारी जिम्मेवारी है कि समाज मे मासिक धर्म की तमाम वर्जनाओं एवं संकोच को समाप्त करें अतः जरूरत है ,खुल कर बात करने की 🙏🙏
रुचि सिन्हा
राजकीय उच्च मध्यमिक विद्यालय चाँदपरना ,मीनापुर
मुजफ्फरपुर ।

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