सुरमयी का पहला पीरियड-निधि चौधरी

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सुरमयी का पहला पीरियड

सुरमयी (लिपि से)-आज बहुत कबड्डी खेली हूँ यार।
लिपि – सुरमयी सारा स्कूल तेरा मजाक उड़ा रहा है। तू पीरियड में है और तेरी पूरी ड्रेस खड़ाब हो गई है।
सुरमयी घबरा जाती है और रोते हुए – ये क्या हो गया लिपि मुझे, देख ना कोई बीमारी हो गई मुझे लगता है, क्या करूँ मैं?
लिपि – अरे पागल ये सबको आता है। तेरी मम्मी ने नहीं बताया तुझे। चल तू टॉयलेट में चल।
लिपि – देख सुरमयी आगे से सेनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल करना भूल से भी कपड़ा मत लेना। यह स्वच्छ होता है और इसमे कोई परेशानी नहीं होती।सुरमयी सबसे नज़रें छुपाते हुए घर आती है।
घर आ कर सुरमयी परेशान मुद्रा में अपनी ड्रेस धो रही थी। इतने में दादी को भनक लग जाती है कि सुरमयी को पीरियड आया है। सुरमयी को तेज भूख लग जाती है और वो रसोई की तरफ जाने लगती है।
दादी – बहुरिया समझा दे इसे पांच दिनों तक रसोई में न जाए,और पूजा घर में तो परछाई भी न पड़े।
तब ही सुरमयी की माँ आरती की थाली लाती है और सुरमयी की आरती कर उसका मुँह मीठा करती है। और कहती है कि यह घबराने की बात नहीं यह तो खुशी की बात है। और शगुन में सेंट्री नेपकिन के पैकेट को देते हुए – भले ही सुरमयी पांच दिनों तक पूजा घर मे न जाए,पर इन पाँच दिनों में पूरा परिवार सुरमयी का अधिक से अधिक खयाल रखेगा।
सुनंदा – बेटा महिलाओं के शरीर में चक्रीय (साइक्लिकल) हार्मोन्स में होने वाले बदलावों की वज़ह से गर्भाशय से नियमित तौर पर ख़ून और अंदरुनी हिस्से से स्राव होना मासिकधर्म कहलाता है।
और माँ जी एक आंकड़े के अनुसार भारत मे हर साल 60000 महिलाओं की मृत्यु सरवाइकल केंसर के वजह से हो जाती है। और इनमें 40000 माहवारी के अस्वच्छ प्रबंधन से होती है।अज्ञानता के कारण महिलाएं कई बार माहवारी के समय सैनिटरी नैपकिन का प्रयोग नहीं करतीं।वह इस समय कपड़े का प्रयोग करना ही बेहतर समझती हैं, क्योंकि यह उनके लिए आसान होता है, हालांकि इससे वह अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही होती है। इसी कारण महिलाएं कई तरह के संक्रमण की भी जल्दी शिकार हो जाती हैं। योनि में खुजली,पीला गाढ़ा स्राव, कभी-कभी हरे रंग के पानी का स्राव भी उनकी परेशानी का सबब बन जाता है। इस तरह के संक्रम बार बार होने से कई बार महिलाएं बांझपन जैसी बीमारियों की भी शिकार हो जाती हैं।
महिलाओं को चाहिए कि वो निरंतर पैड बदलती रहें।और प्रयोग किये हुए पेड को जला देना बेहतर है ताकि इससे वातावरण अशुद्ध न हो। विद्यालय में पढ़ने वाली किशोरियों के लिए सेंट्री नेपकिन की राशि भी दी जाती है। और यूनिसेफ द्वारा 28 मई को विश्व माहवारी दिवस भी मनाया जाता है। इस दौरान तुम्हे आराम के साथ बेहतर खान पान की जरूरत है।सुरमयी अब बेहतर महसूस करती है। और दादी भी समझ जाती है।आज हम सभी को सुनंदा बनने की आवश्यकता है।

निधि चौधरी

 

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6 thoughts on “सुरमयी का पहला पीरियड-निधि चौधरी

  1. बिल्कुल हर एक नारी को अपनी आने वाली नई पीढ़ी की सुरमयी को बेहतर और स्वच्छ खुशहाल जीवन देने के लिए सुनंदा बनना होगा।👌👌👌👌

  2. प्रथम दृष्टि में एक तथाकथित स्त्रियों के निजी किन्तु गम्भीर विषय पर बहुत ही स्पस्ट और सुन्दर काव्यरचना। इस रचना की जितनी भी तारीफ़ की जाएगी, वो बहुत ही कम होगी।
    गहन अध्ययन एवं चिन्तन के उपरान्त भाव की दृष्टि से विश्लेषणात्मक एवं साहित्य की दृष्टि से समीक्षात्मक टिप्पणी करेंगे।
    ।।।श्रद्धावनत।।।

  3. विश्लेषणात्मक टिप्पणी-1

    शाबाश निधि!
    Well done.

    तुम्हारी अगुवाई में एक सार्वजनिक पटल पर नारी अस्मिता को रखने हेतु तुम्हें नवाजा जाना चाहिए।
    ” स्त्रयास्मिता से जुड़ा एक गम्भीर विषयवस्तु” -साहित्य में इस मुद्दे को बहुत ही पूर्व में ही आ जाना चाहिए था। एक स्त्री की व्यथा की यथार्थ कथा।
    न जाने आयुर्वेद क्यों कहता है कि जब कोई किशोरी या कोई नारी को रजोधर्म, जिसे साधारण भाषा में श्रद्धेय कवयित्री माहवारी कह रही है, के गुजर रही हो, तो उसे

    @ चटाई पर सुलाओ,
    @अच्छे वस्त्र नहीं पहनने दो।
    @ब्रह्मचर्य का पालन कराओ।
    @अंधेरे कमरे में एकांतवास में रखो-ऐसा इसलिए कि उस अवस्था में उसपर देवगण दृष्टि डालते हैं। प्रकाशमान कमरे में किसी देवगण की नजर पड़ सकती है, जिससे अनर्थ होने की संभावना हो सकती है – कैसी सोच और विडम्बना है यह। इसीलिए आज के विकसित और वैज्ञानिक सोच के द्वारा वेदों की बहुत-सी मान्यताओं पर पप्रश्नचिह्न लगाकर उन्हें खारिज कर दिया गया है। इसीलिए वेदों की वैसी वर्जनाएँ आज के दौर में अप्रासंगिक हो गई हैं।
    @ उसे ना तो मन्दिर में और ना रसोई घर में जाने की इजाजत दी जा सकती है-
    ऐसा इसलिए कि उस अवस्था में उसके शरीर से एक प्रकार के गन्ध और रश्मि निकलती है, जिससे भोजन में विषायण उत्पन्न हो सकता है और भोजन अपवित्र हो जाएगा। आचार (राजसी आहार) को तो इससे दूर ही रखो-ऐसा इसलिए कि राजसी भोजन करने से उसकी मति कामेच्छा की ओर प्रवृत्त हो सकती है- अज़ब की मिथ्या धारणा है यह।
    सूरीनाम एक देश है, जहाँ ऐसी मान्यता है कि रजस्वला के वक़्त एक किशोरी और एक स्त्री की कामेच्छा चरम पर होती है-इसलिए इसे खूंटे से बांध कर ही रखो, वो भी उसे अकेले और अंधेरे कमरे में-आदि-आदि।
    ( क्रमशः)
    टिप्पणी का शेष भाग इसके पूरक भाग-2 में पढ़ें।
    ।।। श्रद्धावनत।।।

  4. – विश्लेषणात्मक टिप्पणी भाग-2.

    शाबाश निधि!-

    ” You are THE UNIQUE”
    ” You are THE MODEL ”
    ” You are THE WINNER”.

    तुम्हारी अगुवाई में एक सार्वजनिक पटल पर नारी अस्मिता को रखने हेतु तुम्हें नवाजा जाना चाहिए।
    ” स्त्रयास्मिता से जुड़ा एक गम्भीर विषयवस्तु” -साहित्य में इस मुद्दे को बहुत ही पूर्व में ही आ जाना चाहिए था। एक स्त्री की व्यथा की यथार्थ कथा।
    न जाने आयुर्वेद क्यों कहता है कि जब कोई किशोरी या कोई नारी को रजोधर्म, जिसे साधारण भाषा में श्रद्धेय कवयित्री माहवारी कह रही है, के गुजर रही हो, तो उसे

    @ चटाई पर सुलाओ,
    @अच्छे वस्त्र नहीं पहनने दो।
    @ब्रह्मचर्य का पालन कराओ।
    @अंधेरे कमरे में एकांतवास में रखो-ऐसा इसलिए कि उस अवस्था में उसपर देवगण दृष्टि डालते हैं। प्रकाशमान कमरे में किसी देवगण की नजर पड़ सकती है, जिससे अनर्थ होने की संभावना हो सकती है – कैसी सोच और विडम्बना है यह। इसीलिए आज के विकसित और वैज्ञानिक सोच के द्वारा वेदों की बहुत-सी मान्यताओं पर पप्रश्नचिह्न लगाकर उन्हें खारिज कर दिया गया है। इसीलिए वेदों की वैसी वर्जनाएँ आज के दौर में अप्रासंगिक हो गई हैं।
    @ उसे ना तो मन्दिर में और ना रसोई घर में जाने की इजाजत दी जा सकती है।

    सूरीनाम एक देश है, जहाँ ऐसी मान्यता है कि रजस्वला के वक़्त एक किशोरी और एक स्त्री की कामेच्छा चरम पर होती है-इसलिए इसे खूंटे से बांध कर ही रखो, वो भी उसे अकेले और अंधेरे कमरे में-आदि-आदि।
    जबकि जीवविज्ञान नें स्पष्ट कर दिया है कि एक मादा स्तनधारी जीवों में यह प्रजनन की एक सहज एवं प्राकृतिक प्रक्रिया है। एक निश्चित समयान्तराल में मादा स्तनधारी का गर्भाशय निषेचित अंडसेचन या भ्रुण सेचन हेतु प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। नर के वृषण में उपस्थित वीर्य तरल से आये नरयुगमक (Sperm) और मादा के अण्डाशय में उपस्थित अण्ड तरल से आये अण्डाणु के संयुग्मन को निषेचन कहते हैं। ऐसे निषेचित अण्डाणु को भ्रूण कहते हैं। जब मादा के गर्भाशय में भ्रूण बन जाता है, तब यह भ्रूण प्लेसेंटा नामक योजक से गर्भाशय से जुड़ जाता है और गर्भाशय का स्तर अपने क्षरण को रोककर भ्रूण के पोषण में लग जाता है। जिससे गर्भाशय स्तर का क्षरण रुक जाता है,ऐसी स्थिति में मादा स्तनधारी एक विशेषण युक्त “वती” ,जिसका अर्थ होता है धारक/ धारी, के साथ “गर्भवती ” ,कहलाने लगती है, जिसके पेट में उसी के समान उसी की जाति के जीव प्रकृति की एक अनमोल रचना के रूप में पलने लगता है/लगते हैं- यह एक प्राकृतिक रूप से होनेवाली जैविक क्रिया है, जिसे जैववैज्ञानिक भाषा में प्रजनन (Reproduction) ,कहते हैं।
    होमोसेपियन्स ( मानव ) को छोड़ अन्य स्तनधारी का शरीर की वनावट में फर्क होता है।मानवेत्तर स्तनधारी के शरीर में गर्भाशय ,पेट, मस्तिक सब समान्तर होता है। यहाँ तक कि गर्भाशय, जिसका मुँह योनि में आकर खुलता है, का स्तर योनि के नीचे होता है, इसलिए ऐसे मादा स्तनधारी में योनि से रक्तस्राव नहीं हो पाता है, किन्तु मनुष्य, जो एक सोच-विचार करने वाला होमोसेपियन्स जाति का एक प्राणी है, के शरीर में योनि, गर्भाशय, हृदय मस्तिष्क क्रमशः ऊर्ध्वाधर स्थिति में रहता है, अर्थात् इसके शरीर में गर्भाशय योनि के ऊपर रहता है। योनि में आकर ही गर्भाशय का द्वार खुलता है, जिस कारण गर्भाशय की परत से अपोषित रक्त योनि से होकर बाहर निकलने लगता है, जिसे ही मासिक धर्म या रजोस्राव या माहवारी होना कहते हैं।
    प्रकृति की यह अनमोल जैविक प्रक्रिया, जो एक नारी को माँ अथवा जननी बनाती है, उसके प्रति लोगों की घृणित मानसिकता समझ के परे है।
    ।।। श्रद्धावनत।।।

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