एक गाँव में दो सहोदर भाई थे। एक का नाम अमित और दूसरे का सुमित था। दोनों के बीच अच्छे रिश्ते थे। शादी के पहले आपसी संबंधों में इतनी प्रगाढ़ता थी कि जब किन्हीं दो भाइयों में झगड़ा होता तो गाँव के लोग इन्हीं दो भाइयों के नज़ीर पेश करते। वास्तव में प्रेम में यदि अंतरंगता हो तो किसी से छिपाए नहीं छिपती।पिता रवि का साया तो इन दो भाइयों से बचपन में ही छिन गया था परन्तु माँ सुनीति का स्नेह अविरल रूप से इन दो भाइयों पर था।अमित पढ़ने-लिखने में कोई खास न था परन्तु उसकी समझ और उदारता अव्वल दर्जे की थी। वह शादी के योग्य हो चुका था। लड़की वाले आते तो देखते ही अमित को पसंद कर लेते, परंतु माँ सुनीति को यह दिल में लालसा थी कि उसकी पतोहू सुंदर और सुशील हो। सब कुछ देखते हुए सुनीति ने माया नाम की लड़की से बेटे अमित की शादी कराना सुनिश्चित किया। तय तिथि को बारात गई और शादी संपन्न हो गई। माया जब पहली बार ससुराल आई तब उसके हाव-भाव बड़े अच्छे थे परंतु ज्यों-ज्यों समय बढ़ता गया न जाने माया के स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। सास सुनीति यह देख आश्चर्य करती परन्तु कोई दूसरी चीज तो न थी जिसे बदला जा सके।समय के साथ सुमित की भी शादी अच्छी लड़की से संपन्न हुई। सुनीति तब तक बूढ़ी हो चुकी थी। अब उसका अपने घर पर से अधिकार लगभग समाप्त हो चुका था। उसके जीवन के सत्तर वसंत पार हो चुके थे। इधर सुमित की पत्नी आशा का स्वभाव तो अच्छा था परन्तु वह अपनी जेठानी के स्वभाव से क्षुब्ध रहा करती थी। अब भाइयों में सामंजस्य तो था परन्तु जेठानी और देवरानी में छत्तीस का आँकड़ा था। विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी केवल कार्यान्वित करने की बात थी। माँ सुनीति के गुजरने के बाद विभाजन को रोक पाना और भी असंभव जान पड़ता था। एकदिन जेठानी और देवरानी के बीच तीखी झड़प हुई। अमित और सुमित ने फैसला किया कि अब अलग होने में ही कल्याण निहित है।विभाजन के कुछ ही दिन बाद सुमित एक सड़क दुर्घटना में पड़ गया। इस कारण दाएँ हाथ की तीन उंगलियाँ उसे गवाँनी पड़ी।शरीर के अन्य जगह भी चोटें लगी थीं। दवा लंबी चली तब जाकर उसे दर्द से निजात मिली परन्तु हाथ की उंगलियाँ तो फिर से जुड़ नहीं सकती थीं सो उसके काम में बाधा आने लगी। धीरे-धीरे सुमित कर्ज के बोझ से दबने लगा। बाल बच्चे भी अभी उस लायक न थे कि कहीं से कुछ कमा कर भी ला पाएँ।आशा परिश्रम करती परन्तु अमित जैसा खेतों में पैदावार न हो पाता। दोनों भाई के खलिहान एक जगह ही हुआ करते। जहाँ अमित का खलिहान अन्न से भरा रहता वहीं सुमित के खलिहान में आधे से भी कम अन्न उपजते। अमित खेती में सभी उन्नत तरीके अपनाता, जबकि सुमित रुपए के अभाव में ऐसा न कर पाता। कभी कभार अमित को जब दया आती तो चुपके से अपने छोटे भाई को कुछ रुपए दिया करता।एक दिन चाँदनी रात में अमित ने अपनी पत्नी और बेटे की नज़र से बचकर मक्के के अपने ढेर से अपने भाई के मक्के के ढेर में मक्का रखने लगा। संयोगवश सुमित आज सवेरे भोजन कर खलिहान के पास पहुँचा ही था कि उसे कुछ आवाज सुनाई दी। वह छिपकर बड़े भाई को अपने अन्न के ढेर से उसके अन्न के ढेर में अन्न रखते देख लिया। पहले तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही न हुआ परन्तु जब सामने आया तब सारी बातें उसे समझ में आ गई। वह तुरंत अपने भाई के चरणों में गिर पड़ा। अमित ने उसे उठाते हुए बोला, भाई! तुम्हारी गरीबी देखी नहीं जाती इसीलिए मैं कुछ सहायता करना चाहता हूँ परंतु मैं तुम्हारी खुलेआम मदद नहीं कर सकता जिस कारण मैं यह तरीका अपनाकर तेरी सहायता करना चाहता हूँ और कोई बात नहीं सुमित।अपने बड़े भाई की बात पर सुमित के नेत्रों से आँसू गिरने लगे। ये आँसू गर्म थे जो रिश्ते में एक बार पुनः गर्माहट लाने को बेचैन थे। सच में बड़े भाई की उदारता ने आज सुमित को धन्य कर दिया था।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा प्रखंड- बंदरा, जिला-मुज़फ्फरपुर