मजदूर की माँ की दोनों आँखें नहीं है।
वो अपनी पहली कमाई से माँ के लिए लाल साड़ी लेना चाहता है। लेकीन फिर उसने सोचा, माँ को कहाँ दिखाई देनें वाला है कि साड़ी लाल है, पीली है, या सफेद।
माँ को शृंगार करना बहुत पसंद था। उसे आज भी याद है, जब वो छोटा था माँ को खूब शृंगार करते देखता। माँ सावन में ढ़ेर सारी हरी-हरी चूड़ियां पहना करती थी। जब वो आटा गूंथा करती, सब्जियों को भुना करती, तब उनकी चूड़ियां खूब खनकती थीं। आज पिता जी को गुजरे हुए 17 बरस हो गए। तब से माँ को कोई शृंगार करते नहीं देखा। सो चूड़ियां भी नहीं दे सकता। तय हुआ कि वह माँ के हाथों में पैसे ही रख देगा। अहले सुबह वह काम पर निकल गया। शाम तक खून सूखा देने वाली मेहनत कर अपनी पहली कमाई ले कर घर आया।
माँ सिकुड़ कर बिस्तर पर लेटी थी।
छू कर देखा तो शरीर ठंडा पड़ा था। माँ ने विदा ले ली थी।
बेटा आँखों में अश्रु और हाथों में कमाई लिए एकटक देख रहा था। माँ शायद देख रही थी बेबसी बेटे की, बिना आँखों के।
नाम- शिल्पी
विद्यालय- पीएम श्री मध्य विद्यालय सैनो, जगदीशपुर, भागलपुर