महाविनाश”-श्री विमल कुमार “विनोद”

Bimal Kumar

पृष्ठभूमि-(अचानक बादल फटने की आवाज की खबर)
श्याम-(चिल्लाकर)भागो-भागो, जल्दी भागो,बाढ़,बाढ़,लोग पानी में बह गये,भागो-भागो।
शंकर-(आश्चर्य से)क्या हुआ भाई,
यह भागो-भागो,बाढ़-बाढ़ की आवाज कहाँ से आ रही है।
महेश-(शंकर से)नहीं जानते हो केदारनाथ में बादल फटने शुरू हो गये,प्राकृतिक आपदा की घटना घटने लगी।
शंकर-(आश्चर्य से)प्राकृतिक आपदा क्या होती है,भाई?
महेश-जब मनुष्य विकास की दौड़ में पेड़-पौधे को काटने लगते हैं,तो प्रकृति में पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हो जाता है तथा जलवायु में भी तेजी से परिवर्तन होने लगता है तथा पृथ्वी में तरह-तरह की विपदा आने लगती है, जिसमें भूस्खलन,बाढ़,समुद्र के जल स्तर में तेजी से वृद्धि होने लगती है,जो कि प्राकृतिक आपदा कहलाती है।(तीनों एक साथ मिलकर)चलो हमलोगों को पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना चाहिये।(पर्दा गिरता है)।

प्रथम अंक,प्रथम दृश्य

जंगल का दृश्य-(सरकार सड़क का निर्माण करा रही है,मजदूर लगे हुये हैं,वृक्षों को अंधाधुंध काटा जा रहा है)।
महेश-(आश्चर्य से)अरे भाई यह क्या हो रहा है,देखते हैं कि अंधाधुंध वृक्षों की कटाई की जा रही है।
शंकर-हाँ।जानते हो,सरकार सड़क बना रही है,वृक्षों की कटाई कर रही है, इसी से प्राकृतिक असंतुलन हो पैदा हो रही है जिसके चलते भूस्खलन तथा प्राकृतिक आपदा का प्रकोप नजर आने लगती है।
(तीनों मिलकर) तब तो वृक्ष की कटाई को रोकने की जरूरत है। हमलोग वृक्ष लगायेंगे,जलवायु परिवर्तन को रोकने का प्रयास करेंगे।

द्वितीय अंक,प्रथम दृश्य

भारत सरकार का कार्यालय का दृश्य-(देश में भयंकर प्राकृतिक आपदा का प्रकोप जारी है,केदारनाथ में बादल के फटने से तबाही,कोशी की विभीषिका,सुनामी का प्रकोप, समुद्र के जलस्तर में लगातार वृद्धि होने से सरकार परेशान है, मंत्रीमंडल की बैठक चल रही है)
मंत्री-प्रधान सचिव जी संपूर्ण देश में जो विभीषिका फैली हुई है, इससे बचने का कोई उपाय तो कीजिये।
प्रधान सचिव-मंत्री महोदय एक आपदा प्रबंधन विभाग का गठन किया जाय,जिसका प्रधान भारत के प्रधानमंत्री को बनाया जाय।
मंत्री -आपने ठीक ही कहा कि एक ऐसा विभाग बनाया जाय जो कि आपदा की स्थिति में लोगों की सहायता करने के लिये लोगों को त्वरित गति से सहायता कर सके।
(सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन विभाग का गठन किया जाता है, जिसके द्वारा लोगों को राहत पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है)

तृतीय अंक,प्रथम दृश्य

संसद का दृश्य-(संसद की बैठक चल रही है)
प्रधान सचिव-देश का विकास करना है,सड़कों का निर्माण करना है,जंगलों को काटकर शहर बसाना है,बड़े-बड़े विद्युत ताप गृह का निर्माण करके बिजली का उत्पादन बढ़ाना है,प्रत्येक मनुष्य को पेट्रोकेमिकल्स से चलने वाली गाड़ियों से चलने के लिये गाड़ी ॠण देना है ताकि हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में आगे बढ़ सके।
मंत्री -(फरमान जारी करते हुये)जाओ केदारनाथ के जंगलों को कटवा कर सड़क बना दो, सड़कों के किनारे के वृक्षों को काटकर सड़क का चौड़ीकरण कर दो,नदियों से बालू का अवैध उठाव कर बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं का निर्माण कर लो और फिर वातानुकूलित भवनों में रहो और वातानुकूलित गाड़ियों में चलो।

“दृश्य परिवर्तन”

शहर का दृश्य-(गर्मी,प्रदूषण ने लोगों का जीवन जीना दूभर कर रखा है,पराली के जलाने से भारी प्रदूषण फैल रहा है,पृथ्वी के ताप और दाब में असंतुलन उत्पन्न हो गया है)
(महानगर के लोग आपस में)
लगता है कि बढ़ती हुई गर्मी, प्रदूषण,तेजी से फैलते धूलकण तथा तेज गति से हो रही जलवायु परिवर्तन ने तो हमलोगों का जीवन जीना ही हराम कर दिया है।
एक आदमी-हाँ,हाँ गर्मी से लू लगकर अनेकों लोग मर गये।
तेजी से जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार तेज आँधी तथा मुसलाधार बारिश के कारण अनेकों घर गिर गये,लगता है यह
प्राकृतिक विपदा का ही कारण है।
दूसरा आदमी-महाविनाश,भयंकर तबाही,जलमग्न होती हुई पृथ्वी का सतही भाग।
पहला आदमी-कोई तो बचाओ, लोग लगातार मर रहे हैं(उसी समय देववाणी सुनने को मिलती है)जैसा करम करोगे वैसा फल देगा भगवान।तुम जितनी तेजी से विकास करोगे उतनी तेजी से तुम्हारा विनाश होगा,आज भी संभलो बर्बादी तुम्हारे सर पर नाच रही है,ठहर जाओ,कुछ सोचो।

अंतिम दृश्य

—————————
शहर का उजड़ा हुआ दृश्य-
(भयंकर तबाही पसरी हुई है,लोग महाविनाश की मार से तड़प रहे हैं,कोई एक दूसरे को बचाने वाला नहीं है,आपदा प्रबंधन विभाग भी लोगों को सहायता करने में असमर्थ महसूस कर रहा है)।
शंकर-(महेश से)आह मुझे बचा लो महेश भैया,मुझे बचा लो।
महेश-(तड़पते हुये चीखकर)नहीं ,नहीं मैं स्वंय इस आपदा की विभीषिका से जल रहा हूँ।मैं तुम्हें नहीं बचा पाऊँगा।
(बहुत से लोग प्राकृतिक आपदा से बर्बादी के शिखर पर पहुँचकर मरने को मजबूर हैं।(तभी नेपथ्य से)अब भी संभल जाओ, तुम्हारे सिर पर मौत खेल रही है। बेजुबान वृक्षों को मत काटो,नदियों से अवैध बालू मत उठाओ,कोयला से चलने वाले विद्युत ताप गृहों को बंद करो,सौर ऊर्जा का प्रयोग करो,नहीं तो संपूर्ण सृष्टि बाढ़, भूस्खलन,प्रदूषण की चपेट में आकर समाप्त हो जायेगी।
(पर्दा गिरता है)समाप्त।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद”प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा,बांका(बिहार)

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply