जीवन की दुर्दशा”-श्री विमल कुमार “विनोद”

Bimal Kumar

एक छोटा सा बालक एक अमीर के घर में जन्म लेता है।जन्म के बाद सबसे पहले उसका नामकरण एक ज्ञानी पंडित जी के द्वारा कराया जाता है।पंडित जी उसका नाम राजकुमार रखते हैं।उसके बाद एक व्यक्ति याचक बनकर माँगने आता है,जिसे वह अजय नामक अमीर आदमी बहुत प्रेम से बैठाकर उसे अपने पुत्र राजकुमार का भाग्य बताने के लिये अनुरोध करते हैं।इस पर वह याजक जो कि एक ज्योतिषाचार्य भी है अजय से कहता है कि एक पिता को अपने संतान का भाग्य नहीं जानने की कोशिश करनी चाहिये।यह सोचकर वह अमीर व्यक्ति उस ज्योतिषाचार्य को कहता है कि आपको मेरे बेटा का भाग्य बताना ही होगा।इस पर ज्योतिषाचार्य जी कहते हैं कि यजमान जी एक कागज दीजिये जिस पर इस बच्चे का भाग्य लिखकर दे रहा हूँजो कि अजय देता है तथा उस पर बच्चे के बारे में लिखता है कि “आने वाला समय इस बालक के लिये कष्टदायी है,इसलिये इसे न जानने की कोशिश करें”।इस लघुकथा के लेखक श्री विमल कुमार “विनोद”जी ने इसे”जीवन की दुर्दशा”में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है,जिसे लघुकथा में आगे पढ़ें।
अजय नामक एक धनाढय व्यक्ति का इकलौता बालक जो कि जन्म लेने के चार साल बाद ही पोलियो की चपेट में आ जाता है।उसके पिताजी उस बालक का पूरा इलाज कराने का प्रयास करते हैं।अपने इकलौते पुत्र को इलाज के लिये दूर-दूर के अस्पताल में ले जाते हैं,लेकिन कहीं भी इलाज कराकर वह ठीक नहीं होता है।वह बालक जीवन में बहुत ही कष्ट करता है।पोलियो ग्रसित होने के कारण वह घिसड़-घिसड़ कर शौच जाना,कभी-कभी अपने कपड़ों पर ही मलमूत्र कर लेना।घर में किसी के नहीं रहने पर अपने भोजन पानी के लिये भी लालायित रहना तथा जीवन में तरह-तरह की समस्याओं को रो-
रोकर झेलना इसके लिये जीवन बोझ सी लग रही है।जीवन की दुर्दशा से तबाह होकर ईश्वर से अपने मौत को बार-बार वरन करना इस बच्चे की दिनचर्या सी हो गई है।।कभी- कभी आसपास के गरीब-गुरूबा परिवार के उसके हम उम्र बच्चों को खेलते कूदते देखकर अपनी बदनसीबी पर तरस खाना भी इसको पड़ रहा है।।कभी- कभी ईश्वर से यह प्रार्थना करना कि हे भगवान तूने मेरे साथ यह क्या जुल्म ढा दिया जो कि आज मैं अपनी बदनसीबी पर रोते हुये अपने आप में परेशान हूँ।कभी- कभी भगवान से यह प्रार्थना करना कि हे प्रभु मैंने कौन सा यह अपराध कर लिया है जो कि आज मेरी यह स्थिति हो गई है।
दूसरी ओर इसके पिताजी अपने जीवन के अय्यासी में डूबे हुये हैं तथा एक दूसरे को लूट खसोट करके अधिक-से-अधिक संपत्ति कमाने के चक्कर में पड़े हुये हैं।
दूसरे को परेशान करना,अपनों को भी तंग करना इनके जीवन की नीयति सी हो गई है।इसी बीच एक दिन अजय के घर पर एक गरीब मजदूर अपनी मजदूरी को माँगने गया,तभी अजय गुस्से में आकर उस मजदूर को पटक-पटक कर मारना शुरू करता है।बेचारा मजदूर उस धनाढय के मार से रोते हुये किसी तरह अपनी जान बचाकर भागता है।इसके कुछ ही देर बाद जब अजय घर में बैठकर माँस और दारू पी रहा है,उसी समय अचानक उसके इकलौते पोलियो ग्रस्त पुत्र को हिचकी आती है और उसी समय उसकी मौत हो जाती है।
जवानी में इकलौता पुत्र का बचपन से पोलियो ग्रस्त होना तथा पिता के सामने जीवन की दुर्दशा को झेलते हुये,बाप के अय्यासी के सामने मर जाना से अधिक जीवन की दुर्दशा क्या हो सकती है?
इसके बाद भी उस धनाढय व्यक्ति का अत्याचार कम नहीं होता है अपने भाई से अधिक-से-अधिक जमीन-जायदाद को लेने के लिये झगड़ा-झंझट,केस-मुकदमा करना उसका नित्य प्रतिदिन का एक धंधा सा बन गया है।दुर्भाग्य ने अजय का पीछा नहीं छोड़ा और एक दिन घर की सीढ़ी पर चढ़ते समय फिसलकर गिर पड़ता है और अजय के कमर की हड्डी टूट जाती हैइसे जब अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तो वह दर्द से कराह रहा है तथा भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवान मुझे किस अपराध की सजा दे रहे हो।मैंने कौन सा अपराध किया था जिसकी सजा देते हुये पहले तो मेरे एकलौते पुत्र को मौत के मुँह में धकेल दिया।उसके कुछ ही दिन बाद अभी मैं बेटे के मौत के दर्द से उभरा भी नहीं था कि मैं अपने ही घर की सीढ़ी से गिर गया तथा मेरे कमर की हड्डी टूट गई।आज मैं दर्द से कराह रहा हूँ, प्रभु जी मुझे मेरी किस गलती की सजा दे रहे हो,अब तो माफ कर दो,अब मुझे कितनी सजा दोगे।
इसके बाद अजय धीरे-धीरे ठीक होने लगता है तथा ठीक होने के बाद भाई-भाई के विवाद में एक दिन गुस्से में आकर अपने गरीब भाई को गोली मार देता है,जिससे उसके गरीब भाई की घटनास्थल पर ही मौत हो जाती है।उसके बाद कुछ दिनों तक तो अजय पुलिस को चकमा देता हुआ कानून की नजर से बचता रहा लेकिन एक दिन पुलिस के जाल में वह फंस कर जेल की सलाखों के अंदर में चला जाता है।उसके बाद रूपये-पैसों के बदौलत वह अदालत से रिहा तो हो जाता है,जहाँ पर जज साहब कहते हैं कि जाओ तुम रूपये के बदौलत तो रिहा हो गये,लेकिन शायद ईश्वर तुम्हें माफ नहीं करेगा।
अदालत से रिहा होकर अजय अपने लोगों के साथ दही, रसगुल्ला लेकर घर चला,दूसरी ओर इसके भाई की विधवा पत्नी सत्तूऔर नमक बाँधकर घर जा रही है।रास्ते में एक नदी थी जहाँ पर दोनों अलग-अलग जगह पर बैठकर जलपान करने लगे,तभी भगवान की न्यायपालिका से अजय के मौत का फरमान जारी होता है।हल्की बूँदा-बूँदी बारिस के साथ जोरदार बादल की गर्जना होती है और अजय के उपर बज्रपात होती है,जिससे अजय के शरीर के चिथड़े-चिथड़े हो जाते है,”जीवन की यही दुर्दशा” है।
आलेख साभार-श्री विमल कुमार “विनोद” प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा, बाँका(बिहार)।

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