दिन 1982- 84 का समय-काल जब मैं अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज बाढ़ में विज्ञान-संकाय का छात्र था, आज के परिप्रेक्ष्य में उस काल को देखता हूॅं तो शिक्षा का स्तर रसातल को छूता प्रतीत होता है। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या शैक्षिक वातावरण को संभालने में सक्षम थे, सामाजिक वातावरण शैक्षिक वातावरण को अनुकूलता प्रदान करने में अपना अनुसमर्थन सहज दे रहे थे। मैं आईएससी का स्टूडेंट था, हिंदी विषय की घंटी बड़े ही हॉल में लिया जाता था। हिंदी के विद्वान प्रोफेसर हिंदी साहित्य के पटल पर ले जाकर हम सभी को मंत्र मुग्ध कर देते थे। ऐसा लगता था कि उनकी बातें सुनता ही रहूॅं। मेरा संबंध एक मध्यमवर्गीय परिवार से जुड़ा था, पढ़ाई के प्रति मेरे परिवार का रुझान कुछ अच्छा नहीं था। फिर भी फूफा जी श्री शंभू शरण सिंह (हिंदी विशेषज्ञ श्रीमती राधिका देवी उच्च विद्यालय दरवेभदौर पंडारक) जो मेरे गुरुदेव भी हैं,के सहयोग से अध्ययन अध्यापन जारी रख रहा था। मैं बाढ़ चोंदी में गरॉंय लॉज में अपने फुफेरा भाई के साथ रहकर पढ़ाई कर रहा था। लॉज के हर छात्र किसी ने किसी प्रोफेसर से ट्यूशन से जुड़े थे लेकिन मैं केवल स्वाध्याय पर अबलंबित रहकर द्वितीय श्रेणी में सफल हुआ। कॉलेज के स्टूडेंट सप्ताह में फिल्म देखना भी एक आदत-सी बना ली थी। मेरा लॉज भी इससे अछूता नहीं था किंतु बीच में मैं बाधा बन जाता था क्योंकि मुझे फिल्म देखना बुरा लगता था। सारे छात्रों ने इसका भी तोड़ ढूॅंढ लिया था मुझे भी अपने पैसे से टिकट कटा कर हाल तक पहुँचने को विवश कर दिया करते थे। ऐसा इसलिए की किसी गार्जियन को यह पता न चले कि उनके बच्चे फिल्म देखते हैं। इस प्रक्रम से गुजरते हुए मैंने एक दहाई फिल्में देख पाया था। उसके बाद फिर कभी हाल नहीं गया। कैसा था वह सामाजिक संगठन सद्भाव छात्र शिक्षक संबंध छात्र विभाग संबंध। सोचता हूॅं वो दिन-ये दिन और आगे और आगे, होंगे दिन तो कैसे?रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय दरवेभदौर पंडारक