” समाज के पथ-प्रदर्शक संत कबीर दास “
✍️सुरेश कुमार गौरव
संत कबीर दास को समाज सुधारक के तौर पर जाना जाता है। आज भी उनकी रचनाओं को मंदिरों और मठों में गाया जाता है।समाज के हर तबकों में उनके संदेश बोले वह सुने जाते हैं। हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को कबीर दास की जयंती मनाई जाती है।
यहां जानिए संत कबीर के जीवन से जुड़ी अनकही बातें:
हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को कबीर दास की जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश के मगहर में हुआ था। जब कबीर दास का जन्म हुआ था। उस समय समाज में चारों ओर बुराइयां फैली हुई थीं। चारों ओर पाखंड फैला हुआ था। कबीर दास जी ने अपने जीवन में समाज से पाखंड, अंधविश्वास और कुरीतियों को दूर करने की भरसक कोशिश की। यही वजह है कि उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम आडंबर और अंधविश्वास का पुरजोर विरोध करते रहे। उनके इसी रुप के कारण आज भी संत कबीर दास को प्रखर समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है।
संत कबीर दास के जन्म और उनकी जाति-धर्म को लेकर मतभिन्नताएं देखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि इनका जन्म रामानंद गुरु की आशीर्वाद से एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ था। लेकिन लोक लाज के भय से उन्होंने नन्हें कबीर को काशी के पास लहरतारा नामक ताल के पास छोड़ दिया था। इनकी नजर एक जुलाहे को पड़ी। उक्त जुलाहे ने इन्हें फिर पाला पोसा। एक और मत के अनुसार कबीर दास का जन्म से मुस्लिम थे, लेकिन उन्हें रामानंद से राम नाम का ज्ञान प्राप्त था।
कबीरदास ने कभी कोई आधिकारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी।वे निरक्षर थे। उन्होंने जितने भी दोहों की रचना की, वे केवल इनके मुख से बोले गए हैं। जो बाद में लिपिबद्ध किए गए। कबीर दास रामानंद को अपना गुरु मानते थे और जीवनभर गुरु परंपरा का निर्वाह भी करते रहे।
लेकिन शुरु में गुरु रामानंद ने कबीर दास को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था। लेकिन एक घटना ने गुरु रामानंद को आश्चर्य में डाल दिया जब रामानंद एक तालाब के किनारे स्नान कर रहे थे, तो उन्होंने संत कबीर दास को दो जगह पर एक साथ भजन गाते देखा। इसी समय उन्होंने समझा कि कबीर दास एक असाधारण व्यक्तित्व हैं। इसके बाद उन्होंने कबीर दास को अपना प्रिय और निकटतम शिष्य मान लिया।
कबीर दास अंधविश्वास के सदैव खिलाफ थे। उनके समय में समाज में एक अंधविश्वास था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वो स्वर्ग जाएगा और यदि मृत्यु मगहर में होगी वो नर्क। इस भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर ने अपना जीवन काशी में गुजारा, जबकि प्राण मगहर में त्यागे थे। वो समाज में जागरुकता फैलाना चाहते थे जिसमें वे सफल भी हुए। ऐसे थे महान विचारक संत और संदेश पुरुष कबीर दास।
कहा जाता है कि कबीर दास ने मृत्यु के समय भी लोगों को चमत्कार दिखाया था। कबीर दास को हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग मानते थे।जब उनकी मृत्यु हुई तो दोनों धर्म के लोग उनका अंतिम संस्कार करने के लिए आपस में खूब विवाद हुआ। इस विवाद के बीच जब उनके मृत शरीर से चादर हटाई गई, तो वहां फूलों का ढेर मिला। इसके बाद दोनों धर्म के लोगों ने उन फूलों का बंटवारा कर लिया और अपने-अपने रीति के अनुसार उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
समाज मैं अंधविश्वास को दूर करने वाले , कुरीतियों के घोर विरोधी ,समाज में समरसता फैलाने वाले कबीर दास की जयंती पर इन्हें शत् शत् नमन हैं।
@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)