अहंकार-रीना कुमारी

अहंकार

          मनुष्य के आनंदमय जीवन में काले बादल की तरह छा जाने वाली कोई चीज है तो वह, है “अहंकार”। अहंकार एक ऐसा शत्रु है जो जीवन रूपी लहलहाते खेत पर ओले की तरह बरस जाने वाली चीज है जो पता नहीं मनुष्य के अंदर कब समा जाता है और उनके सुन्दर, सरल और समता जीवन में विषमता की काली रेखाएँ खींच देती है जिससे मनुष्य का पतन होना शुरु हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस मनुष्य के मन में अंहकार रुपी शत्रु आच्छदित हो जाता है, वह मनुष्य विनाश की ओर चला जाता है।

          अतः अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। अहंकार ही क्रोध को जन्म देता है। अहंकार के कारण ही मनुष्य बहुत बड़े-बड़े पाप भी करते हैं। प्रायः देखा गया है कि मनुष्य के अहंकार करने से उसके धन, जन, स्वास्थ्य सभी चले जाते हैं। इतिहास इसका गवाह है :- चाहे रावण हो या बालि। चाहे कंस हो या दुर्योधन। इनसबों ने थोड़ा भी अहंकार को मन में पनपने दिया कि विनाश हो गया। अतः अहंकार एक अभिशाप है इस अभिशाप को अपने भीतर प्रवेश ही नहीं करने देना चाहिए।

          सारे जीवों की सृष्टि करने वाला एक ही है वो परमात्मा है। वो तो दयावान है, उनके हृदय में करूणा और दया है। ईश्वर के हृदय में अहंकार का कोई स्थान नहीं है फिर हम मनुष्य को इतना अहंकार क्यों? जब सृष्टि के रचयिता को अहंकार नहीं तो मनुष्य को थोड़ी सी उपलब्धि पर इतना अहंकार क्यों? थोड़ी दौलत, थोड़ा सम्मान, थोड़ा ज्ञान पा ले तो मनुष्य अपने आपको बेताज-बादशाह समझने लगते हैं।

अहंकार के दो रूप होते हैं- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।

प्रत्यक्ष में मनुष्य का अहंकार दिख जाता है। मनुष्य के अंदर सर्वश्रेष्ठता की भावना उत्पन्न हो जाती है। ठीक इसके विपरीत अहंकार जो अप्रत्यक्ष है, वह है कि कोई मनुष्य अपने घर में जो भी है खाकर सो जाता है किंतु दूसरे से माँगने नहीं जाता है तो यह अहंकार नहीं, यह स्वाभिमान है। अतः अपने अन्दर स्वाभिमान को जिंदा रखना चाहिए क्योंकि ये स्वाभिमान ही मनुष्य को महान बनाता है।स्वाभिमान और विनम्रता का समावेश जहाँ हो ये मनुष्य को वैभवशाली बनाता है।

          अतः अपने हृदय में अहंकार को कभी भी पनपने नहीं देना चाहिए। विनम्रता और स्वाभिमान जैसे शब्दों को अपने अन्दर जागृत रखनी चाहिए। हमें सदा अनुशाशन में रहना चाहिए। हमारे छात्रों और शिक्षकों को भी कभी भी अहंकार को अपने अंदर नहीं पनपने देना चाहिए। अपना चरित्र हमेशा उदार रखना चाहिए। उदार चरित्र वालों के लिए पूरी पृथ्वी ही परिवार के समान होता है।

इसी संदर्भ में एक संस्कृत में श्लोक चरितार्थ है-अयं निजः परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम्।
उदार चरिताणां तु वसुधैव कुटुम्बकम।
अतः हमें उदार रहना चाहिए।

रीना कुमारी ( शिक्षिका)
प्रा० वि० सिमलवाड़ी पश्चिमटोला 
बायसी, पूणियाँ, बिहार

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6 thoughts on “अहंकार-रीना कुमारी

  1. बहुत सुंदर सृजन रीना जी….बिल्कुल सही कहा आपने…. अति उत्तम👌👌👌👌👌👌💐💐💐💐

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