देशभक्ति-मनोज कुमार

देशभक्ति

          मास्टर दीनानाथ पंडित यूं तो गाँव के सरकारी विद्यालय से कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत हो चुके थे लेकिन उनका मानना था कि एक अध्यापक अपने जीवनकाल में कभी भी रिटायर नहीं होता इसीलिए सरकारी पेंशन पाते हुए भी वे घर पर बच्चों को निःशुल्क शिक्षादान करते थे। सभी उन्हें आदर से ‘गुरुजी’ कहा करते थे।

           आज भी घर के बारामदे में उनकी कक्षा लगी हुई थी। बारामदे की दीवारों पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद आदि कई महापुरूषों की तस्वीरें लगी हुई थी। वे लकड़ी की एक कुर्सी पर बैठे हुए थे और उनके आगे आमने-सामने बिछी दो चटाइयों पर दो-दो करके कुल चार लड़के बैठे हुए थे। उनके नाम क्रमशः मंटु, भोला, मोहन और गणेश थे। वे सभी आठवीं कक्षा के छात्र थे। आज का विषय आधुनिक इतिहास था जिसके अन्तर्गत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम नामक पाठ की पढ़ाई हो रही थी।
गुरुजी ने अपने चेहरे पर गोल चश्में को दुरूस्त किया और कहना शुरू किया- ‘‘भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में देश के नौजवानों का बहुत बड़ा योगदान था। अपने देश में एक से बढ़कर एक कई वीर सिपाही पैदा हुए। एक तरफ नरम दल में जहाँ महात्मा गांधी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भगा कर देश को आजादी दिलाई वहीं दूसरी तरफ गरम दल में सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरू जैसे क्रांतिकारी देशभक्त भी थे जिन्होंने आजादी के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहूति चढ़ा दी। इन सभी का नाम इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया।’’

          चारों लड़के ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। मंटु ने अचानक हाथ उठाकर कहा- ‘‘गुरुजी, मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है।’’ कैसा सवाल? पूछो।’’ गुरुजी ने अनुमति दिया।
मंटु ने सहज जिज्ञासवश कहा- ‘‘अपना देश तो आजाद हो गया। हमारे देश के वीर सिपाही और गाँधी जी ने अंग्रेजों को देश से भगा दिया। अब हमलोगों के लिए क्या बचा है? हमलोग किसे भगाएं?’’ उसका सवाल सुनकर गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘हूँ…. ऐसा लगता है जैसे गाँधीजी और इन क्रांतिकारियों की गाथा ने तुम्हें भी देशसेवा के लिए कुछ प्रेरित किया है!’’
‘‘हाँ गुरुजी।’’ भोला ने कहा- ‘‘इन महापुरूषों की कहानी सुनकर हमारे अंदर भी देशभक्ति की भावना जोर मार रही है लेकिन हम करें क्या? लगता है हमारे करने के लिए अब तो कुछ बचा ही नहीं है।’’ मोहन बोला-‘ ‘जी हाँ गुरुजी। अब हम किस तरह से अपनी देशभक्ति दिखा सकते हैं? हमारे करने के लिए अब बचा क्या है?’’
अपने साथियों को बोलते देख गणेश से भी रहा न गया। उसने भी कह ही दिया- ‘‘कुछ ऐसा उपाय बताइये जिससे हम भी अपनी देशभक्ति दिखा सकते हैं। हममें से कोई भी अपने प्राणों की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटेगा।’’
इतना कहकर उसने अपने तीनों साथियों की तरफ देखा। सभी ने उसके समर्थन में अपना सिर हिलाया।
गुरुजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘‘वाह। यह तो बहुत ही अच्छी बात है। अंग्रेज भले ही देश छोड़कर चले गये लेकिन वे अपने पीछे कई सारी समस्यायें भी छोड़ गये हैं। अपने देश में समस्याओं की काई कमी नहीं है। करने के लिए अभी भी बहुत कुछ बाकी है।’’ चारों ने समवेत स्वर में कहा-‘ ‘उसी में से हमें कुछ बताइये गुरुजी।’’
गुरुजी ने कहा- ‘‘अंग्रेज जाते-जाते भी अपने देश में धर्म और मजहब के नाम पर लोगों के बीच फूट डाल कर चले गये। आजादी को इतने साल बीत गए। लेकिन आज भी लोग धर्म के नाम पर बँटे हुए हैं और इसके लिए एक-दूसरे के साथ खून-खराबा तक करने को तैयार हो जाते हैं। कोई यह समझने को तैयार नहीं होता कि इंसानियत और मानवता का धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। हमें लोगों में फैले धार्मिक उन्माद के इस भ्रमजाल को समझाकर दूर करना होगा।’’
मंटु बोला-‘ ‘यह कैसे हो सकता है गुरुजी? लोगों को समझाना तो बड़ा कठिन कार्य है।’’
भोला ने भी कहा- ‘‘हाँ, लोग जब बड़े-बड़े संत महात्मा की बातों को सुनकर आज तक कुछ नहीं समझे तो हमारी क्या सुनेंगे?’’
गुरुजी ने कहा- ‘‘अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में गांधीजी के पास भी कोई हथियार नहीं था। सिवाय एक लाठी के मगर उस लाठी का भी इस्तेमाल उन्होंने कभी हिंसा के लिए नहीं किया। असली हथियार तो हमारा हौसला, जज्बा और मन के भीतर की शक्ति होती है जिससे हम समाज में फैली कुरीतियों को खत्म कर सकते हैं।
मोहन ने कहा- ‘‘गुरुजी, हमें कोई आसान सा काम बताइये ना। ऐसा जो हमारे बस में हो और हम आसानी से कर भी सकें।’’ हाँ, गुरुजी। गणेश ने भी कहा- ‘‘अब ऐसे धर्म का भ्रमजाल हटाने जैसे बड़े काम तो हमारे बस का है नहीं। आप तो बस कोई ऐसा छोटा-मोटा काम बताइये जिसे दो मिनट में चटपट किया जा सकता हो।’’ गुरुजी ने अपने आवास के बाहर सड़क की ओर ईशारा करते हुए कहा- ‘‘वो रास्ते पर पड़ा हुआ गोबर देख रहे हो तुमलोग?’’
चारों लड़कों ने रास्ते पर पड़े गोबर को देखा और सहमति में सिर हिलाते हुए आश्चर्य से गुरुजी की तरफ देखा। गुरुजी ने कहा- ‘‘जाओ, जाकर उसे साफ कर आओ।’’
‘‘क्या?’’ चारों का मुंह खुला का खुला रह गया।
गुरुजी ने अपना आदेश सुना दिया था। अब देखना था कि उन चारों में पहले कौन उठता था? दो मिनट बीत गये मगर उठने की जहमत किसी ने नहीं की। कदाचित् वे इंतजार में थे कि कोई और उठकर पहले चला जाय। मगर ऐसी नौबत नहीं आई। गुरुजी शांत मुद्रा बनाए बैठे रहे। “तू जा,  मंटु ने भोला को टोका- ‘‘गोबर साफ करके आ।’’ मैं क्यूँ? भोला इनकार में बोला- “तू न बड़ा देशभक्त बनने चला था। जाकर खुद ही साफ कर।’’
मोहन ने कहा- “गणेशी ने ही दो मिनट वाला काम मांगा था। अब यही जाएगा।’’
‘‘अरे वाह!’’ गणेशी तपाक से बोला- ‘‘एक मैं ही क्यों? तुम सबने ऐसा कहा था। लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि ये रास्ते से गोबर हटाना भी भला कोई देशभक्ति का काम है? इससे कौन सी क्रांति होगी?’’ वे आपस में यूूं ही जिरह कर रहे थे कि तभी उपले बीनता एक अनपढ़ गंवार सा बच्चा उधर से गुजरा और और अपने टोकरे में गोबर उठा कर चला गया। रास्ते का गोबर अब साफ हो चुका था।
गुरुजी ने हाथ उठाकर कहा- ‘‘अब रहने दो। आपसे में लड़ो मत। इतने से ही तुमसबों की देशभक्ति की परीक्षा हो गई। कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता। जो भी काम सामने दिखाई पड़े उसे बिना किसी शर्म या झिझक के करना चाहिए। यही आज की सबसे बड़ी देशभक्ति है। अभी सड़क पर से जिस अनपढ़ बच्चे ने गोबर साफ की है दरअसल उसी ने देश की सच्ची सेवा की है और वही असली देशभक्त कहलाने लायक है। कुछ समझे कि नहीं?’’
चारों लड़कों का सिर शर्म से झुक गया। अब उन्हें देशभक्ति का असली मतलब समझ में आ गया था।

मनोज कुमार (सहायक शिक्षक)

रा. उ. म. विद्यालय कैलाशपुर ठाढी, बगहा 2, प.चम्पारण

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