असफलता से सफलता तक- सुरेश कुमार गौरव

रवि एक मेहनती लेकिन साधारण छात्र था। माध्यमिक की परीक्षा में असफल होने के बाद उसकी दुनिया जैसे अंधकारमय हो गई थी। समाज के ताने, रिश्तेदारों की उपेक्षा और दोस्तों की खिल्ली ने उसे अंदर तक तोड़ दिया। वह सोचने लगा कि अब उसका भविष्य अंधकारमय है।

एक दिन वह उदास मन से रेलवे स्टेशन पर बैठा था। पास में एक कूली भारी सामान उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ रहा था। अचानक वह फिसल गया और सारा सामान बिखर गया। लेकिन कुली बिना हिम्मत हारे फिर से खड़ा हुआ, सामान समेटा और आगे बढ़ गया। रवि यह सब देख रहा था। कुली के पास जाकर उसने पूछा, “आप गिर गए थे, चोट भी लगी, फिर भी आपने हार नहीं मानी?”

कुली मुस्कुराया, “बाबू जी, अगर मैं यहीं बैठा रहूँ तो मेरा परिवार भूखा मर जाएगा। गिरना समस्या नहीं, लेकिन गिरकर न उठना असली हार होती है।”

रवि को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झकझोर दिया हो। उसने तय कर लिया कि वह अपनी असफलता से भागेगा नहीं, बल्कि दुगुनी मेहनत करेगा। वह पूरी लगन से पढ़ाई में जुट गया। अगले वर्ष उसने टॉप किया और स्कॉलरशिप के साथ एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।

वर्षों बाद, वही रवि एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गया। जिसके शोध ने देश को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। जब उसने अपनी सफलता की कहानी सुनाई, तो उसने सबसे पहले उस कूली को याद किया जिसने उसे जीवन का सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया था “गिरकर उठना ही असली जीत है!”

शिक्षा: असफलता अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत का संकेत होती है। हार मानने वाला कभी सफल नहीं होता, लेकिन जो गिरकर उठता है, वही इतिहास रचता है।

सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक

उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)

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