वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शी

एक लघुकथा कपड़े के दो डिब्बे पति मनोहर को देती हुई बोली-‘ एक में तुम्हारी पसंद के शर्ट-पैंट हैं और दूसरे में रामू के कपड़े।’ मनोहर डिब्बों को खोलने के… वचनसीमा – संजीव प्रियदर्शीRead more

जनता – संजीव प्रियदर्शी

एक बार किसी राजा के कुछ सभासदों ने उनसे पूछ लिया- ‘सच्चा देवदूत, जनता क्या होती है? आजतक हमलोग इसके वास्तविक वजूद को देख-समझ नहीं पाये हैं। कृपया हमें संतुष्ट… जनता – संजीव प्रियदर्शीRead more

पगला है- संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा सनोज दास जिस दिन नौकरी में आये,उस दिन उनके हिस्से की ऊपरी कमाई ढ़ाई सौ रुपये बनती थी।साथी अहलकार ईमानदार थे,सो बड़ा बाबू रुपये बढ़ाते हुए बोले-‘ देखिए सनोज… पगला है- संजीव प्रियदर्शीRead more

समझ- संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा पत्नी ने आकर कहा-‘ अजी सुनते हो! मनोरमा को जिस पूज्य बाबा जी की अनुकंपा से लड़का हुआ है,चलो न चलकर उनका आशीर्वाद ले लें।सुना है, वे पहुंचे हुए… समझ- संजीव प्रियदर्शीRead more

अपना-पराया- संजीव प्रियदर्शी

लघुकथा आज देर शाम रघुनाथ जब घर लौटा तो पत्नी राधिका को डरी-सहमी मकान के सामने बरसाती में पाया। कारण पूछने पर वह रोनी सूरत बनाकर बोली -‘ आज तो… अपना-पराया- संजीव प्रियदर्शीRead more

फर्ज- संजीव प्रियदर्शी

एक लघुकथा चोर-चोर का शोर सुनते ही अपनी जान पर खेलकर भाग रहे लड़के के पीछे लोग दौड़ने लगे थे। कुछ ही देर बाद सड़क पर हुजूम खड़ा था। लड़के… फर्ज- संजीव प्रियदर्शीRead more

सहपाठी का हृदय परिवर्तन (संस्मरण)
सुरेश कुमार गौरव

बात उस समय की है जब मैं दस वर्ष का था। और 1978 का साल था। तब मैं पंचम वर्ग में पढ़ता था। जहां तक मुझे याद है मेरे वर्ग… सहपाठी का हृदय परिवर्तन (संस्मरण)
सुरेश कुमार गौरव
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इनकलाब- संजीव प्रियदर्शी

ब्रिटिश हुकूमत का काल था।उस समय भारतीय समाज अनेक कुप्रथाओं से दूषित पड़ा था, जिसमें नरबलि का प्रचालन भी जोरों पर था।लोग अपने-अपने इष्टदेवों को प्रसन्न करने अथवा मन्नतें पूरी… इनकलाब- संजीव प्रियदर्शीRead more