बाल कविताएँ-निधि चौधरी

Nidhi

बाल कविताएँ

          मैं बचपन से ही बाल कविताएं लिखती हूँ ठीक से याद नहीं पर शायद पाँचवी या छठी कक्षा में मेरी पहली बाल कविता छपी थी। कविताएँ लिखना मेरा स्वभाव है। कविता लिखने का अर्थ होता है, अपने अंदर झाँकना और अपने चहुं ओर की दुनिया को ध्यान से देखना। यहाँ ध्यान का अर्थ है जो तथ्य साधारण व्यक्ति के आँखों से ओझल है उसे एक कवि के द्वारा देखा जाना। एक कविता सूखे हुए पेड़ के पत्ते से लेकर कुछ खोने तक या किसी पुराने खलिहान के जंग लगे दरवाजे तक, किसी भी विषय में हो सकती है। कविता लिखने के बारे में सोचना, आपके लिए जरा सा डरावना जरूर लग सकता है, खासतौर पर तब, जबकि आपको लगता हो, कि आप उतने ज्यादा क्रिएटिव नहीं हैं या आपके अंदर कविता लिखने लायक विचार ही नहीं हैं। एक सही प्रेरणा और नजरिया अपनाकर, आप कविता लिख सकतें हैं। अब आते हैं बाल कविताओं पर। बाल कविताएँ बच्चों के मन पर बहुत प्रभाव डालती है। जिसे हमें सरल लिखने का प्रयास तो करना ही चाहिए। मेरा मानना है कि सरल शब्दों में कविताएँ लिखना कठिन है जबकि कठिन शब्दों में लिखना बेहद आसान है।
बाल साहित्य का क्षेत्र शिक्षाप्रद साहित्य के क्षेत्र में आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
कुछ बातों को हमे ध्यान रखना चाहिए बाल कविताओं को लिखने के समय :-

* हर कविता में एक कहानी हो या फिर शिक्षाप्रद बातें हो।
* बाल कविताएँ हमे छोटी छोटी पंक्तियों में लिखनी      चाहिए जिससे कि बच्चे एक बार मेें एक पंक्ति पढ़      ले।
* तुकबंदी बाल कविताओं में विशेष महत्व रखती है।    तुकबंदी के बिना बच्चे कविताओं में रुचि नहीं लेते।    इसलिए हमें विशेष ध्यान रखना है कि तुकबंदी हर      पंक्ति में अवश्य हो।
* बाल कविताएँ लिखते समय हमें भी बच्चा होना         होगा अर्थात बिल्कुल सरल भाषा का प्रयोग यहाँ       सरल से तातपर्य यह कि जिसे बच्चे आसानी से         बोल सके।

* बाल कविताएँ ऐसी हो कि बच्चे के मन पर कुछ भी    बुरा प्रभाव न पड़े। साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना    आवश्यक है कि बाल साहित्य के द्वारा हम उन्हें          अपने गौरवपूर्ण संस्कृति से जोड़े रखें।

रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता—–

चूहे ने यह कहा कि चुहिया छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से पगड़ी दो।
मटर-मूंग जो घर में है वही सब मिल खाना,
खबरदार तुमलोग बिल से बाहर मत आना।
बिल्ली एक बड़ी पाजी है रहती घात लगाए,
जाने कब वह किसे दबोचे किसे चट कर जाए।
सो जाना सब लोग लगाकर दरवाजे में किल्ली,
आज़ादी का जश्न देखने मैं जाता हूँ दिल्ली।
चूँ चूँ चूँ चूँ चूँ चूँ चूँ चूँ चूँ

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि श्रेष्ठ दिनकर जी ने बड़े ही सरल भाषा में एक बाल कविता की रचना की है। जिसमे एक कहानी छिपी हुई है। साथ ही जन्होंने बेहतरीन तुकबंदी का प्रयोग किया है। बिल्कुल लयबद्ध कविता जिसे बच्चे रोमांचित होकर पढ़े। “घात लगाना” “चट कर जाना” इत्यादि मुहावरों का अर्थ बच्चे इस कविता के माध्यम से स्वयं निकाल सकतें है। अंत में एक लिरिक्स के तरह चूँ चूँ शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि बच्चों को और आकर्षित करती है। इस प्रकार सरल और रुचिगत भाषा में एक सुंदर कविता जिसे बच्चे पसंद करेंगे।

मेरी भी एक कविता यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।

हम बच्चे प्यारे प्यारे

हम बच्चे हैं प्यारे प्यारे,
स्वच्छ बनेंगे स्वस्थ बनेंगे।

प्रातः बेला जल्दी उठते,
ईश्वर को हम नमन है करते।

सुबह सफाई दांतो की,
हर घण्टे फिर हाथों की।

हर दिन हमसब करे जो योग,
तभी तो हम सब रहे निरोग।

कटे साफ नाखून हमारे,
हम बच्चे हैैं प्यारे प्यारे।

रोज नहाएं हम बच्चे,
बाल बनाए हम बच्चे।

फास्ट फूड हमको न भाए,
पीज़ा बर्गर दूर भगाएं।

धुले साफ हो वस्त्र हमारे,
हम बच्चे है प्यारे प्यारे।

हरी सब्जियां भी हम खाते,
दूध मलाई चट कर जाते।

अगल बगल की साफ सफाई,
मिलकर हमने ही करवाई।

भारत माँ के नयन दुलारे,
हम बच्चे है प्यारे प्यारे।

निधि चौधरी।

उक्त कविता मेरे द्वारा रचित है। मैं बाल कविता लिखते समय सबसे पहले शिक्षाप्रद बातों को शामिल करते हुए तुकांत और लय को ध्यान में रखती हूं। फिर मैं अपनी कविता को कई बार बोलकर पढ़ती हूँ। इसके बाद मैं यह कविता अपने विद्यालय के बच्चों से पढ़ने को कहती हूँ। फिर छोटे बच्चों से लाउड रीडिंग मैं खुद करवाती हूँ। और जब सभी पैमानों पर कविता खड़ी उतरती है बच्चों के जुबां पर कविता चढ़ जाती है तब मैं उसे फाइनल करती हूँ। कहने का अर्थ यह कि आप झटपट कविता लिख लें और कवि कहलाए यह हास्यप्रद है। लेखन तो एक साधना है जो समय मांगती है धैर्य मांगती है। और गुणवत्तापूर्ण समय देने के पश्चात ही गुणवत्तापूर्ण कविता तैयार होती है। आप अपनी कविता को दस बार बोलकर पढ़ेंगे तो हर बार कुछ न कुछ सुधार करने की आवश्यकता महसूस होगी। और फिर एक सुंदर रचना आपके पास होगी। यह मेरे निजी विचार है हो सकता है आप इससे सहमत हो या फिर यह भी हो सकता है कि असहमत हों। लेकिन यह सारी चीज़ें करके एक कविता जरूर लिखें। और याद रखें कुछ भी लिख देना कविता नही हो जाती। बाकी लिखते रहें, साहित्य की साधना में लीन रहें, और एक विशेष बात अच्छा लिखने के लिए खूब पढ़ें।

निधि चौधरी
प्राथमिक विद्यालय सुहागी
किशनगंज

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