भाग्य निर्माता-मधुमिता

Madhumita

भाग्य  निर्माता

          हर आत्मा अपने कर्मों से अपने भाग्य का निर्माण करता है। अपने कर्मों का जिम्मेवार भी वो खुद होता है। हमारे माता-पिता या फिर इस सृष्टि के रचयिता परमपिता परमात्मा हमारे भाग्य के जिम्मेवार नहीं होते और न ही वो किसी के कर्मफल में कोई हस्तक्षेप करते हैं।सृष्टि का नियम यही है कि हर किसी को उसके कर्मों के हिसाब से ही भाग्य रूपी फल की प्राप्ति होती है। अगर भाग्य लिखने की कलम हमारे माता-पिता या स्वयं परमात्मा के हाथों में होती तो वे हमारा सर्वश्रेष्ठ भाग्य लिखते परन्तु सृष्टि के नियमानुसार परमात्मा ने सृष्टि की रचना तो स्वयं की पर भाग्य लिखने की कलम हर किसी को उसके ही हाथों में दे दी।
जिस प्रकार पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति इस धरा पर उपस्थित हर व्यक्ति वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है ठीक उसी प्रकार हमारे कर्म हमारी सोच हमारे भाग्य को आकर्षित करती है। हम जैसा चिंतन करते हैं वैसा ही बनते हैं इसलिए हमें अपनी चिंतन शक्ति को सदा सकारात्मक रखकर अपने अच्छे भविष्य की कामना करते हुए निरंतर प्रयत्नशील बने रहना है। ऐसा करने से हमारा भविष्य बिलकुल वैसा ही बनेगा जैसा हम चाहते हैं। परिस्थितियाँ बाधा बनकर आपको रोकेगी भी परन्तु हमें शक्तिशाली बनकर परिस्थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना है। कहते हैं विघ्नों का आना part of life शक्तिशाली बन विघ्नों को पार करना art of life कहलाता है। जब तक जीवन है तब तक समस्याएँ हैं परंतु समस्याओं से घबराकर अपने जीवन को बिखरने नहीं देना है बल्कि उससे ऊपर उठकर अपनी मंजिल को प्राप्त करना है। जब विधाता ने भाग्य लिखने की कलम हमारे हाथों में दी है तो क्यों ना हम सब इसका लाभ उठाएँ और अपने भाग्य को अपनी सोच से, अपने कर्मों से बिल्कुल वैसा बनाएँ जैसा हम चाहते हैं। इसलिए सदा याद रखें हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं।

मधुमिता
मध्य विद्यालय सिमलिया
बायसी पूर्णिया (बिहार)

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