भरत चरित्र में त्याग संयम धैर्य और ईश्वर प्रेम-मनोज कुमार दुबे

Manoj

भरत चरित्र में त्याग संयम धैर्य और ईश्वर प्रेम 

 

भरत राम संवादु सुनि सकल सुमंगल मूल।

सुर स्वारथी सराहि कुल बरषत सुरतरु फूल॥
धन्य भरत जय राम गोसाईं।

कहत देव हरषत बरिआईं॥
मुनि मिथिलेस सभाँ सब काहू।

भरत बचन सुनि भयऊ उछाहू॥

 

          कभी फ़ुर्सत मिलता है तो रामचरितमानस के करीब होता हूं। आज माँ को भरत जी का चित्रकूट में राम जी से मिलने की कथा सुनाया। एक भाई का एक भाई के प्रति प्रेम, उसके प्रति सम्मान का अगर अनुसरण करना हो तो भरत जैसा नायक पूरे ब्रह्मण्ड में नही मिलेगा। इन्ही गुणों के कारण गुरु वशिष्ठ ने उन्हें महात्मा जैसे संबोधन से सुशोभित किया, वही जनक जी उन्हें साधु कहकर उनके चरित्र में एक और सितारा जोड़ देते है।

भ्रातृत्व प्रेम में किसी ने अगर 14 वर्ष तपस्वी जैसा जीवन व्यतीत किया तो वह भरत जी है। जिन्होंने प्रभु के चरणपादुका को ही उनका स्वरुप मानकर अयोध्या की सेवा और सुरक्षा कर पुनः भगवान राम के आने पर उन्हे अयोध्या का राजपाठ सौप दिया। इन सबके बीच जो मुझे एक बात महत्वपूर्ण लगती है कि जब चित्रकूट से भरत जी श्री राम का आदेश लेकर अयोध्या वापस आते है तब उन्होंने एक वादा किया कि 14 वर्ष बीत जाने पर वापस आने में भैया अगर आपने एक दिन भी विलंब किया तो मैं चिता सजाकर स्वयं जलकर अपने को समाप्त कर लूंगा और जब श्री राम लंका विजय कर अयोध्या वापस आते है तब उनके श्री मुख पर भरत को देखकर एक परम संतोष का भाव होता है। आँखों मे दोनो के अश्रु की धारा होती है। एक-दूसरे के सीने चिपके होते है और मानो प्रभु श्री राम ऐसा कहते है कि भरत मुझे लंका विजय से बड़ी चिंता अपने भाई से किये वादे को था जिसे मैंने गुरुदेव की कृपा से पूरा किया। ऐसे वचन का पक्का भाई राम और भरत ही हो सकते है। वर्तमान समय में भरत चरित्र की बहुत बड़ी प्राथमिकता है। जिस स्वार्थ के कारण आज भाई-भाई जहां दुश्मन जैसा व्यवहार करते हैं वहीं भरत चरित्र में त्याग, संयम, धैर्य और ईश्वर प्रेम भरत चरित्र का दूसरा उदाहरण है। भरत का विग्रह या स्वरूप श्री राम प्रेम मूर्ति के समान है जिससे भाई के प्रति प्रेम की शिक्षा मिलती है।

इस मनुष्य जीवन में भाई व ईश्वर के प्रति प्रेम नहीं है तो यह जीवन पशु समान होता है। भरत और राम से भाई व ईश्वर से प्रेम की सीख लेनी चाहिए। रामायण में भरत जी ही एक ऐसा पात्र है जिसमें स्वार्थ व परमार्थ दोनों को समान दर्जा दिया गया है। इसलिए भरत जी का चरित्र अनुकरणीय है। भरत जी का एक-एक प्रसंग धर्मसार है। क्योंकि भरत का सिद्धांत लक्ष्य की प्राप्ति व राम प्रेम को दर्शाता है।

आज जब आधुनिक समाज में संयुक्त परिवार टूट रहे है, लोग एकाकी जीवन जीना चाहते है, यह तरीका हमारे देश की सभ्यता संस्कृति और देश के विकास के लिए बाधक है। आज कोरोना काल मे जिन लोगों के परिवार में प्रेम है उनका रहन सहन संयुक्त परिवार जैसा है। अगर कोई संकट आया तो सबने उनका साथ दिया, वही जो लोग अपने परिजनों से दूरी बनाकर रहते थे जब उन पर संकट आया तो परिजनों ने भी दूरी बनाया।

अतः हम सबको मिल-जुलकर रहना चाहिए। श्री भरत लाल, श्री राम जी, भइया लखन लाल और शत्रुघ्न जैसा हर घर मे भाइयों के बीच प्रेम रहे। कभी पुनः रामचरितमानस के किसी अलग प्रसंग के साथ मिलेंगे तब तक आपका

मनोज कुमार दुबे
राजकीय उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भादा खुर्द लकड़ी नबीगंज सिवान

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2 thoughts on “भरत चरित्र में त्याग संयम धैर्य और ईश्वर प्रेम-मनोज कुमार दुबे

  1. धन्यवाद एवं आप सभी जरूर पढ़ें यह निवेदन

  2. मेरे पिता संयुक्त परिवार के अनुरागी और बड़े भैया के लिए भरत समान थे। अनायास कैंसरग्रस्त हो गये तो पता चला कि वो उनकी सबसे बड़ी भूल थी। इस भूल का दंश आजतक हम झेल रहे। नहीं बने कोई भरत, यही कामना है मेरी।

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